क्षुधा पेट की बीच सड़क पर

क्षुधा पेट की बीच सड़क पर

क्षुधा पेट की, बीच सड़क पर।
दो नन्हों को लायी है।।
भीख माँगना सिखा रही जो।
वो तो माँ की जायी है।।
हाथ खिलौने जिसके सोहे।
देखो क्या वो लेता है।
कोई रोटी, कोई सिक्का,
कोई धक्का देता है।।
खड़ी गाड़ियों के पीछे ये।
भागे-भागे जाते हैं।
करे सफाई गाड़ी की झट।
गीत सुहाने गाते हैं।।
रोटी की आशा आँखों में।
रोकर बोझा ढोते हैं।
पानी पीकर, जूठा खाकर,
या भूखा ही सोते हैं।।
डॉ. सुचिता अग्रवाल”सुचिसंदीप”
तिनसुकिया, असम
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

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