विश्व पृथ्वी दिवस / देवेन्द्र चरन खरे आलोक

earth-day

विश्व पृथ्वी दिवस / देवेन्द्र चरन खरे आलोक

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पृथ्वी हमें पैदा करती है।
भूख उदर की भी हरती है।।
जो कुछ भी उत्पन्न हुआ है।
सब इसकी ही रही दुआ है।।


गोदी में हम सब खेले हैं।
खुशियों के लगते मेले हैं।।
जल जंगल पर्वत मालाएँ।
गीत इसी के मधुरिम गाएँ।।


सबको शिक्षा भी देती है।
यह परिवर्तन की  प्रेरक भी।
पुण्य पाप की है देयक भी।।
यहीं स्वर्ग है यहीं नर्क है ।
करती हममें नहीं फर्क है ।।


हमें शरण देकर रखती है ।
पालन माता सी करती है ।
रज कण सबके भले हेतु है।
जीव प्रवर्तन बनी सेतु है।।


बार- बार हम जन्म यहाँ लें।
इच्छा है कुछ भार उठा लें।।
जननी की सेवा भी करना ।
इसकी शिक्षाओं पर चलना ।।


जहाँ जरूरत उतना लेंगे।
दोहन करने को दल देंगे।।
क्षरण मृदा का नहीं कभी हो ।
जंगल जन के लिए सभी हो।।


शोभा झरने नदी झील की ।
हम में आभा वही शील की।।
ऊर्जा हमें प्रदान करो माँ।
स्वर्ग यही हर बार वरो माँ।

     – देवेन्द्र चरन खरे आलोक लखनऊ