Author: कविता बहार

  • बसंत आया दूल्हा बन

    बसंत आया दूल्हा बन     

    बसंत आया दूल्हा बन,
    बासंती परिधान पहन।
    उर्वी उल्लासित हो रही,
    उस पर छाया है मदन।।

    पतझड़ ने खूब सताया,
    विरहा में थी बिन प्रीतम।
    पर्ण-वसन सब झड़ गये,
    किये क्षिति ने लाख जतन।।

    ऋतुराज ने उसे मनाया,
    नव कोपलें ,नव पल्हव।
    फिर से बनी नव यौवना ,
    मही मनमुदित है मगन।।

    वसुंधरा पर हर्ष छाया ,
    सभी मना रहे हैं उत्सव।
    सोलह श्रृंगारित है धरा
    लग रही है आज दुल्हन।।

    नोट- धरती के पर्यायवाची-उर्वी,क्षिति, मही,वसुंधरा, धरा

    मधु सिंघी,नागपुर(महाराष्ट्र)

  • ऋतुराज बसंत

    ऋतुराज बसंत


    ऋतुराज बसंत प्यारी-सी आई,
    पीले पीले फूलों की बहार छाई।
    प्रकृति में मनोरम सुंदरता आई,
    हर जीव जगत के मन को भाई।

    वसुंधरा ने ओढ़ी पीली चुनरिया,
    मदन उत्सव की मंगल बधाइयाँ ।
    आँगन रंगोली घर द्वार सजाया,
    शहनाई ढ़ोल संग मृदंग बजाया ।

    बसंत पंचमी का उत्सव मनाया,
    माँ शारदे को पुष्पहार पहनाया।
    पुष्प दीप से पूजा थाल सजाया,
    माँ की आरती कर शीश झुकाया।

    शीश मुकुट हस्त वीणा धारिणी,
    ज्ञान की देवी है सरगम तरंगिणी।
    विमला विद्यादायिनी हंसवाहिनी,
    ‘रिखब’को दिव्य बुद्धि प्रदायिनी।

    @ रिखब चन्द राँका ‘कल्पेश
    जयपुर।

  • ऋतुराज का आगमन

    ऋतुराज का आगमन

    ऋतुराज बसंत लेकर आये
    वसंत पंचमी, शिवरात्रि और होली
    आ रही पेड़ों के झुरमुट से
    कोयल की वो मीठी  बोली ।


    बौरों से लद रहे आम वृक्ष
    है बिखर रही महुआ की गंध
    नव कोपल से सज रहे वृक्ष
    चल रही वसंती पवन मंद ।


    पलाश व सेमल के लाल-लाल फूल
    भँवरे मतवाले का मधुर गान
    सौन्दर्य बिखेरती मौसम सुहावना
    और बागों में फूलों की शान ।


    राग बसंत  की  मधुर गीत
    वसंतोत्सव, मदनोत्सव का खूमार
    प्रकृति झूम उठती वसंत आगमन से
    और हरियाली करती है श्रृंगार ।


    ✍बाँके बिहारी बरबीगहीया

  • सुंदर पावन धरा भारती

    सुंदर पावन धरा भारती

    सुंदर पावन धरा भारती ।
    आओ उतारें हम आरती ••२


    नवचेतना के द्वार खोल अब
    सुनें कविता सृजन की आवाज
    खत्म हो हैवानियत की इन्तहां
    इंसानियत का ही हो आगाज
    सुंदर पावन धरा भारती ।
    आओ उतारें हम आरती ••२


    नतमस्तक हो हम सभी
    अर्पण करें पूजा के फूल
    न कोई पीड़ा, न कुंठा
    मन में चुभते न कोई शूल
    सुंदर पावन धरा भारती ।
    आओ उतारें हम आरती ••२


    मैं सब कुछ कर जाऊँगी
    भारती को अर्पण अपना
    भोर होने वाली है यहाँ
    अब पूरा होने वाला है सपना
    सुंदर पावन धरा भारती ।
    आओ उतारें हम आरती ••२


    अनिता मंदिलवार सपना

  • जब याद तुम्हारी आती है

    जब याद तुम्हारी आती है

    जब याद तुम्हारी आती है
    मन आकुल व्याकुल हो जाता है
    तुम चांद की शीतल छाया हो
    तुम प्रेम की तपती काया हो।


    तुम आये भर गये उजाले
    सफल हुए सपने जो पाले
    द्वार हंसे, आंगन मुसकाये
    भाग्य हो गये मधु के प्याले ।


    तुम हो सावन की रिमझिम फुहार
    तुम फागुन के रंग रसिया
    जिन क्षणों तुम साथ  रहे हो
    वहीं पर मेरे मधु मास हुए हैं।

    तुम दूर रहो या पास रहो
    तुम्ही प्रेम का एहसास हो
    इस बहती जीवन धारा में
    तुम जीने की आस हो।

    कालिका प्रसाद सेमवाल
    मानस सदन अपर बाजार
    रुद्रप्रयाग उत्तराखंड 246171