पीड़ाएँ

पीड़ाएँ

पिंजरा  चला  छोड़  कर , पंछी अनंत दूर ।
यादें  ही  अब  शेष  हैं , परिजन  हैं  बेनूर ।।

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आँसू से रिश्ता घना ,  आँखों  ने ली जोड़ ।
निर्मोही क्यों हो गये , ले गये सुख निचोड़ ।।
गहनें सिसक रहे सजन , रूठे  सब श्रृंगार ।
माथे की  ये  बिंदिया , पोंछ गये दिलदार ।।


मन की बातें चुप हुई , तन की सुधि बिसराय ।
अब  तो केवल  स्वप्न में ,साजन  आवे जाय ।।
भूली  बिसरी  याद  को , रखी  तिजोरी  ढ़ाँक ।
अब तो फक़त निहारते , सपने अनगिन फाँक ।।


चलके तुम कर्तव्य पथ  , वतन शहीद कहाय ।
मुश्किल जीवन सतह पर , कैसे ठहरा जाय ।।
विधवा  शहीद  की बनी , गर्व करे  यह  देश ।
धवल वस्त्र जो मिला , शुचिता  का गणवेश ।।
               ~   रामनाथ साहू ” ननकी “
                    मुरलीडीह  (  छ. ग. )

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