प्यार एक दिखावा

प्यार एक दिखावा न कसमें थीं न वादे थेफिर भी अच्छे रिश्ते थेआखों से बातें होती थींकुछ कहते थे न सुनते थेन आना था न जाना थाछत पर छुप कर मिलते थेवो अपनी छत हम अपनी छतबस दूर से देखा करते थेअब कसमें है और वादे हैऔर प्यार एक दिखावा हैआखों से कुछ कहना मुश्किलहोंठ … Read more

प्रीत की रीत

प्रीत की रीत चंद्र गगन में आधा हो ,प्रिय से मिलन का वादा हो ,बनता है इक गीत|निस दिन अंखियां बरसी हो ,पिया मिलन को तरसीं होंबढ़ती है तब प्रीत|जब सारी रस्में निभानीं हो,छोटी जिंदगानीं हो,सजती है तब  प्रीत की रीत|सपनें देखें संग संग में ,प्यार पले दोनों मन में ,बनते तब वे सच्चे मीत|दिल … Read more

तीन ताँका – प्रदीप कुमार दाश

तीन ताँका नेकी की राहछोड़ते नहीं पेड़खाये पत्थरपर देते ही रहेफल देर सबेर । जेब में छेदपहुँचाता है खेदसिक्के से ज्यादागिरते यहाँ रिश्तेअचरज ये भेद । डूबा सूरजडूबते वक्त दिखारक्तिम नभलौट रहे हैं नीड़अनुशासित खग ।        ~ ● ~ □ प्रदीप कुमार दाश “दीपक”

प्रजातंत्र पर कविता

प्रजातंत्र पर कविता जहरीला धुंआ है चारो ओर,मुक्त हवा नहीं है आज,पांडव सर पर हाथ धरे हैं,कौरव कर रहे हैं राज! समाज जकड़ा जा रहा है,खूनी अमरबेल के पंजों में,नित्य फंसता ही जा रहा है,भ्रष्टाचार के शिकंजों में! आतंक का रावणअट्टहास कर रहा है,कहने को है प्रजातंत्र,अधिकारों का हनन,कोई खास कर रहा है! शासन की … Read more

सुनो एक काम करते हैं

सुनो एक काम करते हैं सुनो एक काम करते हैं दोनों भाग जाते हैंचलेंगे उस जगह पे हम जहां सब मुस्कुराते हैंबहारों का हंसी मौसम जहाँ हर रोज़ रहता होपपीहे पीहू पीहू के जहाँ पे गीत गाते हैं दूर तक फैला हो अम्बर क्षितिज सा इक नज़ारा होबीच खेतों के सुंदर सा वहीं इक घर … Read more