निराला प्रकृति- कुंडलिया छंद
निराला प्रकृति निराला रूप प्रकृति का , लगता है चितचोर।भाये मन को ये सदा , करता भाव विभोर।।करता भाव विभोर , सभी को खूब लुभाता।फैला चारों ओर , मनुज दोहन करवाता ।।रखना ‘मधु’ यह ध्यान , बनें हम नहीं निवाला।प्रकृति का रहे साथ , करें कुछ काम निराला।। मधुसिंघी नागपुर (महाराष्ट्र)