बापू पर कविता
भारत ने थी पहन ली, गुलामियत जंजीर।
थी अंग्रेज़ी क्रूरता, मरे वतन के वीर।।
काले पानी की सजा, फाँसी हाँसी खेल।
गोली गाली बरसते, भर देते थे जेल।।
याद करे जब देश वह, जलियाँवाला बाग।
कायर डायर क्रूर ने, खेला खूनी फाग।।
मोहन, मोहन दास बन, मानो जन्मे देश।
पढ़लिख बने वकीलजी,गुजराती परिवेश।।
देखे मोहन दास ने, साहस ऊधम वीर।
भगत सिंह से पूत भी, गुरू गोखले धीर।।
बापू के आदर्श थे, लाल बाल अरु पाल।
आजादी हित अग्रणी, भारत माँ के लाल।।
अफ्रीका मे वे बने, आजादी के दूत।
लौटे अपने देश फिर, मात भारती पूत।।
गोल मेज मे भारती, रखे पक्ष निज देश।
भारत का वो लाडला, गाँधी साधू वेश।।
गोरे काले भेद का, करते सदा विरोध।
खादी चरखे कातकर, किए स्वदेशी शोध।।
कहते सभी महातमा, आजादी अरमान।
बापू अपने देश का, लौटाएँ सम्मान।।
गाँधी की आँधी चली, हुए फिरंगी पस्त।
आजादी दी देश को, वे पन्द्रह अगस्त।।
बँटवारे के खेल में, भारत पाकिस्तान।
गांधीजी के हाथ था, खंडित हिन्दुस्तान।।
आजादी खुशियाँ मनी, बापू का सम्मान।
राष्ट्रपिता जनता कहे, बापू हुए महान।।
तीस जनवरी को हुआ,उनका तन अवसान।
सभा प्रार्थना में तजे, गाँधी जी ने प्रान।।
दिवस शहीदी मानकर,रखते हम सब मौन।
बापू तेरे देश का, अब रखवाला कौन।।
महा पुरुष माने सभी, देश विदेशी मान।
मानव मन होगा सदा, बापू का अरमान।।
बापू को करते नमन,अब तो सकल ज़हान।
धन्य भाग्य माँ भारती, गांधी पूत महान।।
बाबू लाल शर्मा,”बौहरा”
सिकंदरा,दौसा,राजस्थान