बज उठी रण-भेरी / शिवमंगलसिंह ‘सुमन’
मां कब से खड़ी पुकार रही,
पुत्रों, निज कर में शस्त्र गहो ।
सेनापति की आवाज हुई,
तैयार रहो, तैयार रहो।
आओ तुम भी दो आज बिदा,
अब क्या अड़चन, अब क्या देरी ?
लो, आज बज उठी रण-भेरी।
अब बढ़े चलो अब बढ़े चलो,
निर्भय हो जय के गान करो।
सदियों में अवसर आया है,
बलिदानी, अब बलिदान करो।
फिर मां का दूध उमड़ आया बहनें देतीं मंगल-फेरी !
लो, आज बज उठी रण-भेरी।
जलने दो जौहर की ज्वाला,
अब पहनो केसरिया बाना ।
आपस की कलह-डाह छोड़ो,
तुमको शहीद बनने जाना ।
जो बिना विजय वापस आये मां आज शपथ उसको तेरी !
लो, आज बज उठी रण-भेरी।