चांदनी रात / क्रान्ति

चांदनी रात / क्रान्ति द्वारा रचित

चांदनी रात / क्रान्ति

चांदनी रात में
पिया की याद सताए
मिलने की चाह
दिल में दर्द जगाए।।

हवा की तेज लहर
जिगर में घोले जहर
कैसे बताऊं मैं तुम्हें
सोई नहीं मैं रातभर।।

दिल के झरोखे में
दस्तक देती हवाएं
देखकर हंसे मुझपर
दिल के पीर बढ़ाए।।

दिल पर रख के पत्थर
दर्द अपना छुपाया है
कैसे बताऊं तुझको मैं
तू कितना याद आया है।।

क्रान्ति,सीतापुर,सरगुजा,छग

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