डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के प्रति निराला की कविता

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डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के प्रति निराला की कविता

उगे प्रथम अनुपम जीवन के
सुमन-सदृश पल्लव-कृश जन के ।


गंध-भार वन-हार ह्रदय के,
सार सुकृत बिहार के नय के ।


भारत के चिरव्रत कर्मी हे !
जन-गण-तन-मन-धन-धर्मी हे !


सृति से संस्कृति के पावनतम,
तरी मुक्ति की तरी मनोरम ।


तरणि वन्य अरणि के, तरुण के
अरुण, दिव्य कल्पतरु वरुण के ।


सम्बल दुर्बल के, दल के बल,
नति की प्रतिमा के नयनोत्पल ।


मरण के चरण चारण ! अविरत
जीवन से, मन से मैं हूँ नत ।।
‘निराला’

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