कोरोनावायरस पर कविता ( Corona kavita )

कोरोनावायरस कविता : कोरोनावायरस कई प्रकार के विषाणुओं (वायरस) का एक समूह है जो स्तनधारियों और पक्षियों में रोग उत्पन्न करता है। यह आरएनए वायरस होते हैं। इनके कारण मानवों में श्वास तंत्र संक्रमण पैदा हो सकता है जिसकी गहनता हल्की (जैसे सर्दी-जुकाम) से लेकर अति गम्भीर (जैसे, मृत्यु) तक हो सकती है।

यहाँ पर आपको कोरोना कविता ( Corona kavita ) कुछ दिए जा रहे हैं जिससे आपको कोरोना से सम्बंधित जानकारी मिलेगी .

कोरोना और ज़िंदगी-चंदेल साहिब

कोरोना से ऐ इंसान तू अब मत घबरा,
श्रद्धा व सबूरी का एक दीप तो जला।

मौत तो निश्चित है चंदेल आनी एक दिन,
हर पल ख़ौफ से अब ख़ुद को न सता।

रब की बनाई सृष्टि से न कर भेदभाव,
सावधानी से ख़ुद व समाज का कर बचाव।

बहुत शक्तिशाली है ह्यूमन इम्यून सिस्टम,
स्वयं भी जाग एवं दुनिया को भी जगा।

कोरोना से ऐ इंसान तू अब मत घबरा,
श्रद्धा व विश्वास का एक दीप तो जला।

कोरोना से युद्ध -डिजेन्द्र कुर्रे

उनकी खातिर प्रार्थना,
मिलकर करना आज।
जो जनसेवा कर रहे,
भूल सभी निज काज।
भूल सभी निज काज,
प्राण जोखिम में डाले।
कोरोना से युद्ध ,
चले करने दिलवाले।
कह डिजेन्द्र करजोरि,
सुनो उनके भी मन की।
बस सेवा का भाव,
हृदय में बसती उनकी।।

डिजेन्द्र कुर्रे

कोरोना विषय पर कविता – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

इंसानियत की आजमाईश है कोरोना
कहता है कोरोना कहता है कोरोना

अपने बड़ों का सम्मान कर न
एक दूसरे को नमस्ते और राम – राम करो न

उड़ा ले जाऊंगा मैं तुमको सूखे पत्तो न की तरह
स्वयं पर अभिमान करो न

संस्कृति , संस्कारों पर विश्वास धरो न
एक दूसरे पर अविश्वास करो न

रिश्तों की डोर की पकड़ को बनाए रखो
इंसानियत का ज़ज्बा बनाये रखो न

मुसीबत के इस दौरे – कोरोना में
उस खुदा पर एतबार करो न

कहता है कोरोना कहता है कोरोना

धर्म कर्म की राह चलो न
वर्णशंकर प्रजाति से
इस धरा को प्रदूषित करो न
अपने धर्म पर विश्वास करो न

मंदिर, चर्च, गुरूद्वारे और मस्जिद तेरे लिए हैं
उस खुदा से अपना दर्द एक बार कहो न

चंद पुष्प उसके चरणों में अर्पित कर दो
और उस खुदा से गुजारिश करो
इस कोरोना से हमें मुक्त करो न

इस कोरोना से हमें मुक्त करो न
इस कोरोना से हमें मुक्त करो न

सिरमौर कोरोना -राजाभइया गुप्ता ‘राजाभ’


वायरस दल का बना सिरमौर कोरोना।
साथ लाया त्रासदी का दौर कोरोना।।

चीन से आकर जगत में पैर फैलाये,
बन महामारी डराये और कोरोना।

आक्रमण छुपकर करे फिर कष्ट दे भारी,
आज जीवन लीलता ज्यों कौर कोरोना।

भेद बिन पीड़ित सभी को कर रहा अब तो,
हो गया है क्रूर कितना पौर कोरोना।

सावधानी से नियम जो पाल लेता है,
हार उससे छोड़ दे निज ठौर कोरोना।

दूर जब ‘राजाभ’ करता संक्रमण अपना,
पास आने को न करता गौर कोरोना।


रचयिता-राजाभइया गुप्ता ‘राजाभ’
लखनऊ.

कोरोना अब तुम कब जाओगे –रमेश लक्षकार लक्ष्यभेदी


इतना तो सता लिया हमें
और कितना सताओगे
कोरोना, सच-सच बतलाना
अब तुम कब जाओगे ?



जिस किसी को पाश में जकड़ा
तो पहले उसका गला पकड़ा
किसी को न तुम छोड़ रहे हो
पतला-दुबला हो या मोटा-तगडा़



इतना तो रूला दिया
और कितना रुलाओगे
कोरोना, सच-सच बतलाना
अब तुम कब जाओगे ?



बाजार खाया, रोजगार खाया
धन्धा खाया, व्यवसाय खाया
नौकरीयाँ खाई, मजदूरी खाई
अब शेष क्या रह गया भाई ?जाओगे



पहले ही बहुत छीन लिया तुमने
क्या सब कुछ छीनकर जाओगे
कोरोना, सच-सच बतलाना
अब तुम कब जाओगे ?



नवीन रिश्तों-नातों को खाया
बैंड-बाजों-बारातों को खाया
हसीन सपनों को भी निगला
फिर भी तेरा मन न पिघला ।



तुम कब? कैसे? पिघलोगे
हमें भी कुछ तो बताओगे
कोरोना सच-सच बतलाना
अब तुम कब जाओगें ?



जन-जीवन कितना गया बदल
कोई आज गया, कोई गया कल
आकाश को भी यही रहा खल
रवि असमय ही क्यों गया ढल ?



निराशा का तिमिर तो फैल गया
अब और कितना फैलाओगे
कोरोना, सच-सच बतलाना
अब तुम कब जाओगे?

कवि रमेश लक्षकार लक्ष्यभेदी बिनोता

कोरोना काल- मधु सिंघी

जो भी सोचें समझें पहले , जीवन की उपयोगी शाम।।
काल मिला हमको चिंतन का , सोच समझकर करना काम।

मानव जाति पड़ी संकट में , हाहाकार करे हर ग्राम।।
कोरोना सबको सिखलाता , एक रहो मिल कर हो काम।

पहले सब हिलमिल रहते थे , आज अकेले बीते शाम।
जान पड़ी है अब सांसत में , क्या सूझे अब कोई काम।।

बदला काल यही अब देखो , रोजाना करना व्यायाम।
बदलो अब तो जीवन शैली, आवश्यक है अब ये काम।।

साफ सफाई ज्यादा रखना , सासों पर करना है ध्यान ।
ऐसी है ये अलग बिमारी , जिंदा रखना अपनी जान ।।

साँसों का सौदा होता है , देखें होती जीवन शाम।
दूर रहो पर मिलकर रहना , आना हमको सबके काम।।

जीवन जीना एक कला है , सीखें इसको लेना काम।
रह जायेगी कोरी यादें , लेंगे सब अपना फिर नाम।।


मधुसिंघी (नागपुर)

रोग बड़ा कोरोना आया – बाबा कल्पनेश

रोग बड़ा कोरोना आया,लाया भारी हाहाकार।
रुदन-रुदन बस रुदन चतुर्दिक्,छाया प्रातः ही अँधियार।।
बंद सभी दरवाजे देखे,मिलने जुलने पर भी रोक।
पत्थर दिल मानव का देखा,शीश पटकता जिस पर शोक।।

लहर गगन तक उठती-गिरती,देखा लहर-लहर उद्दाम।
दूरभाष पर कल बतियाया,गया मृत्यु के अब वह धाम।।
अपने जन का काँध न पाया,विवश खड़े सब अपने दूर।
अपने-अपने करतल मींजे,स्वजन हुए इतने मजबूर।।

घर के भीतर कैद हुए सब,वैद न कर पाए उपचार।
अधर-अधर सब मास्क लगाए,दिखे अधिक मानव हुशियार।।
प्रथम लहर आयी थी हल्की,धक्का रही दूसरी मार।
हट्टे-कट्टे स्वस्थ दिखे जो,गिरते वे भी चित्त पिछार।।

इतनी आफत कभी न आई,मानव हुए सभी लाचार।
शिष्टाचार सभी जन भूले,सामाजिकता खाये मार।।
गए-गए सो दूर गये जो,जो हैं उन्हें मिले धिक्कार।
सब जन निज लघुता में सिमटे,विवश कर रही है सरकार।।

नये सिरे से छुआ-छूत का,खुलता देख रहा हूँ द्वार।।
भले मुबाइल व्हाट्स एप पर,दीखे सुंदर शिष्टाचार।
पर अपने जीवन में मानव,लगा भूलने निज व्यवहार।।
सरक रहा है मानवता का,बना बनाया दृढ़ आधार।।

जितना डरा हुआ है मानव,कलम बोलती केवल हाय।
देह रक्त के संबंधों पर,रही भयानकता मड़राय।।
कोरोना की काली छाया,करती बहुत दूर तक मार।
कौन यहाँ इसका अगुवा है,देने वाला इतना खार।।

बाबा कल्पनेश
सारंगापुर-प्रयागराज

डरे कोरोना भागे – दुर्गेश मेघवाल

सौ करोड़ , हां, सौ करोड़ हम,
दुनियां में हुए आगे ।
एक सुरक्षा कवच बना ,
जहां ,डरे कोरोना भागे ।
ताली , थाली, लॉकडाउन सब ,
जनता के बने हथियार ।
दुनियां केवल ताकती रह गई,
वैक्सीन हमारी हुई तैयार ।
शासन भी मुस्तैद खड़ा रहा,
सजग प्रशासन जागे ।
सौ करोड़ , हां, सौ करोड़ हम,
दुनियां में हुए आगे ।
एक सुरक्षा कवच बना ,
जहां ,डरे कोरोना भागे ।

कुछ सख्ती,कुछ प्यार मोहब्बत,
साथ सभी का बना रहा ।
एक-एक का मिला सहयोग ,
हाथ सभी का लगा रहा ।
सब मिल एक प्रयासों से ही ,
हम असीम ऊंचाइयां लांघे।
सौ करोड़ , हां, सौ करोड़ हम,
दुनियां में हुए आगे ।
एक सुरक्षा कवच बना ,
जहां ,डरे कोरोना भागे ।

साठ ,पैतालीस, अठारह का ,
समय निर्धारण मिसाल बना ।
मात्र उम्र नहीं समता का भी ,
जनता-मन विश्वास जमा ।
वयस्क सभी ही बने सुरक्षित,
जब टीका-कोरोना लागे ।
सौ करोड़ , हां सौ करोड़ हम,
दुनियां में हुए आगे ।
एक सुरक्षा कवच बना ,
जहां ,डरे कोरोना भागे ।

बचपन भी हो निकट भविष्य ,
सुरक्षा चक्र के घेरे में ।
सभी भारतीय तब ही सुरक्षित ,
कोरोना के पग-फेरे से ।
स्वस्थ हो भारत ,सदा सुरक्षित,
‘अजस्र ‘ दुआ यही मांगे ।
सौ करोड़ , हां, सौ करोड़ हम,
दुनियां में हुए आगे ।
एक सुरक्षा कवच बना ,
जहां ,डरे कोरोना भागे ।

✍️डी कुमार–अजस्र(दुर्गेश मेघवाल,बून्दी/राज.)


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