देश पर कविता
हे ! मातृभूमि तेरी रक्षा में,
हम अपना प्राँण लुटाएंगे।
तन-मन-धन सब अर्पित कर,
हम तेरा मान बढ़ाएंगे।
देश के खातिर कफन बाँधके,
सरहद पर सब डट जाएँगे।
समय आए जब आहुति का,
तब प्राँण होम कर जाएंगे।
पले-बढ़े जिस धरती पर,
अन्न जहाँ का खाया है।
खून सींचकर हम अपनी,
फर्ज धरा का निभाएंगे।
रविबाला ठाकुर
स./लोहारा, कबीरधाम, छ.ग.