धर्म पर कविता- रेखराम साहू
धर्म जीवन का सहज आधार मानो,
धारता है यह सकल संसार मानो।
लक्ष्य जीवन का रहे शिव सत्य सुंदर,
धर्म का इस सूत्र को ही सार मानो।
देह,मन,का आत्म से संबंध सम्यक्,
धर्म को उनका उचित व्यवहार मानो।
दंभ मत हो,दीन के उपकार में भी,
दें अगर सम्मान तो आभार मानो।
भूख का भगवान पहला जान भोजन,
धर्म पहला देह का आहार मानो।
व्याकरण भाषा भले हों भिन्न लेकिन,
भावना को धर्म का उद्गार मानो।
हो न मंगल कामना इस विश्व की तो,
ज्ञान को भी धर्म पर बस भार मानो।
प्रेम करुणा को सरल सद्भावना को,
धर्म-मंदिर का मनोहर द्वार मानो।
हैं अतिथि,स्वामी नहीं संसार के हम,
चल पड़ेंगे बाद दिन दो चार मानो।
रेखराम साहू