कविता
इस वसुधा पर इन्सान वहीं
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धन,वैभव,पदविद्या आदिका जिसको हैअभियाननहीं।
सत्य अनुपम शरणागत इस वसुधा पर इन्सान वहीं।
सत्य धर्म फैलाने आला,
विषय पीकर मुस्काने वाला,
अबला अनाथ उठाने वाला,
प्यार, स्नेह लुटाने वाला
परहित में मर जाने वाला।
अपना और परायाका जिसकेउर अंदर भान नहीं।
सत्य अनुपम शरणागत इस वसुधा पर इन्सान वहीं।
पर पीर को जो जानता,
पर नारी को माँ मानता,
निज कर्म को नित छानता,
पर द्रव्य को पत्थर मानता,
विषयों में मन नहीं सानता,
सब में प्रभु को पहचानता।
निज महानता स्तुतिका जिस घट अंदर भान नहीं।
सत्य अनुपम शरणागत इस वसुधा पर इन्सान वहीं।
मिथ्या जगत से हो निसार,
प्रभुभक्ति हो जिसका आधार,
सद्भाव ,सद्गुण , सत्य सार,
कीर्ति ,प्रीति की शीतल व्याल,
वेद ज्ञान का दे के उजियार,
जग से मिटाये अंधकार।
मन कर्म वचनसे एकहृदय हरहालत में मुस्कान सही।
सत्य अनुपम शरणागत इस वसुधा पर इन्सान वहीं।
सुख शान्ति मिलेगी महामानवके,
पद चिन्हों को अपना कर,
गीता गंगा सद्गुरु चरणों में,
नम्र निज माथा झुकाकर,
हर्षित होगा फिर भारत वर्ष,
विश्व गुरु पदवी पाकर।
प्रभुनाम का कलरव करें कवि बाबूराम महान वहीं।
सत्य अनुपम शरणागत इस वसुधा पर इन्सान वहीं।
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बाबूराम सिंह कवि
बडका खुटहाँ,विजयीपुर
गोपालगंज( बिहार)841508
मो ॰ नं॰ – 9572105032
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