धरती हमारी माँ
हमको दुलारती है
धरती हमारी माँ।
आँचल पसारती है
धरती हमारी माँ।
बचपन मे मिट्टी खायी
फिर हम बड़े हुए।
जब पाँव इसने थामा
तब हम खड़े हुए।
ममता ही वारती है
धरती हमारी माँ।
हमको दुलारती है
धरती हमारी माँ।
तितली के पीछे भागे
कलियाँ चुने भी हम।
गोदी में इसकी खेले,
दौड़े,गिरे भी हम।
भूलें सुधारती है
धरती हमारी माँ।
हमको दुलारती है
धरती हमारी माँ।
अन्न धन इसी से पाकर
जीते हैं हम सभी।
पावन हैं इसकी नदियाँ
पीते हैं जल सभी।
जीवन संवारती है
धरती हमारी माँ।
हमको दुलारती है
धरती हमारी माँ।
धरती का ऋण है हम पर
आओ चुकाएं हम।
फैलायें ना प्रदूषण
पौधे लगायें हम।
सुनलो पुकारती है
धरती हमारी माँ।
हमको दुलारती है
धरती हमारी माँ।
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नाम:—सुश्री गीता उपाध्याय
पता:—रायगढ़ (छ.ग.)