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  • तितली पर बाल कविता / पद्म मुख पंडा

    तितली पर बाल कविता / पद्म मुख पंडा

    तितली पर बाल कविता / पद्म मुख पंडा


    रंग बिरंगी तितली रानी
    आई हमरे द्वार
    मधुलिका ने उसको देखा,
    उमड़ पड़ा था प्यार!
    गोंदा के कुछ फूल बिछाकर,
    स्वागत किया सुहाना,
    तितली रानी, तितली रानी!

    तितली पर बाल कविता / पद्म मुख पंडा

    मधुर कंठ से गाना!
    तेरा मेरा नाता तो है,
    बरसों कई पुराना!
    आई हो अभ्यागत बनकर,
    अभी नहीं तुम जाना,
    शहद और गुलकंद रखा है,
    बड़े मज़े से ख़ाना!
    घर में तुम्हें खोजते होंगे,
    जाकर, कल फ़िर आना!

    स्वरचित एवम् मौलिक
    पद्म मुख पंडा ग्राम महा पल्ली जिला रायगढ़ छत्तीसगढ़

  • कागजी तितली / डी कुमार –अजस्र

    कागजी तितली / डी कुमार –अजस्र

    कागजी तितली / डी कुमार –अजस्र

    ठिठुरन सी लगे ,
    सुबह के हल्के रंग रंग में ।
    जकड़न भी जैसे लगे ,
    देह के हर इक अंग में ।।

    कागजी तितली / डी कुमार –अजस्र

    उड़ती सी लगे,
    धड़कन आज आकाश में।
    डोर भी है हाथ में,
    हवा भी है आज साथ में।

    पर कागजी तितली…..
    लगी सहमी सी
    उड़ने की शुरुआत में ।
    फैलाये नाजुक पंख ,
    थामा डोर का छोर…
    हाथ का हुआ इशारा,
    लिया डोर का सहारा …
    डोली इधर से उधर,
    गयी नीचे से ऊपर
    भरी उमंग से ,
    उड़ने लगी
    जब हुई उड़ती तितलियों के ,
    साथ में ,
    बतियाती जा रही है ,
    पंछियों के पँखों से ….
    होड़ सी ले रही है,
    ज्यों आसमानी रंगो से
    हुई थोड़ी अहंकारी,
    जब देखी अपनी होशियारी ।
    था दृश्य भी तो मनोहारी,
    ऊँची उड़ान थी भारी ।

    डोर का भी रहा सहारा ,
    हाथ करता रहा इशारा ,
    तभी लगी जाने किसकी नजर ,
    एक पल में जैसे थम गया प्रहर ,
    लग रहे थे तब हिचकोले ,
    यों लगा जैसे संसार डोले ।

    डोर से डोर थी ,
    अब कट गयी ।
    इशारे की बिजली भी ,
    झट से गयी ।
    अब तो हवा भी न दे पायी सहारा
    घड़ी दो घड़ी का था ,
    अब खेल सारा ।
    ऊँची ही ऊँची उड़ने वाली ,
    अब नीचे ही नीचे आयी ।
    जो आँखे मदमा रही थी ,
    अब तक…..
    उनमें अंधियारी थी छायी ।

    तभी उसे लगा ,
    अचानक एक तेज झटका
    डोर लगी तनी सी,
    लगे ऐसा जैसे मिल गया ,
    जो सहारा था सटका।
    डोर का पुनः मिल रहा था ,
    ‘ अजस्र ‘ सहारा ।
    हाथ और थे पर ,
    मिल रहा था बेहतर इशारा ।
    फिर उडी आकाश में ,
    तब बात समझ ये आई
    बिना सहारे ,बिना इशारे ,
    न होगी आसमानी चड़ाई ।
    जीवन सार समझ आया तो,
    वो हवा में और अच्छे से लहराई।

     ✍️✍️ *डी कुमार –अजस्र (दुर्गेश मेघवाल, बून्दी/राज.)
  • सर्वश्रेष्ठ बाल कविता

    सर्वश्रेष्ठ बाल कविता

    सर्वश्रेष्ठ बाल कविताएँ

    सर्वश्रेष्ठ बाल कविता येँ

    Hindi Poem ( KAVITA BAHAR)

    बचपन के पल

    दिन आते रहे,
    दिन जाते रहे,
    बचपन के दोस्त
    दिनोंदिन मिलते रहे,

    नटखट कारनामें
    यादों में बदलते रहे,
    वक़्त के तकाज़े से
    सभी जुदा होते रहे,
    सालोंसाल गुज़रते रहे,
    कुछ दोस्त मिलते रहे,
    कुछ दोस्त गुमशुदा
    गुमनाम होते रहे,
    काश ये बचपन के
    नायाब पल ठहर जाते !
    बचपन के दोस्त
    मुझे फिर मिल जाते।

    कवि : श्री राजशेखर सी    
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

    घंटा पर कविता

    घंटा बोला, चलो मदरसे,

    निकलो, निकलो, निकलो घर से।

    बोला, चलो मदरसे, जल्दी निकलो, अपने घर से ।

    कपड़े पहनो, बस्ता ले लो,

    जल्दी निकलो, अपने घर से ।

    जल्दी निकलो, अपने घर से,

    घंटा बोला, चलो मदरसे

    गप्पू गपोड़ पर कविता

    एक था, गप्पू गपोड़,

    उसके जैसा कोई न जोड़।

    एक दिन, खाकर बोर,

    गप्पू बोला, वो रहा मोर।

    सबने मुड़कर, देखा चाहा,

    कोई न था, कुछ न था।

    वापस मुड़कर देखा चोर,

    गप्पू भागा, लेकर बोर।

    कैसा था, गप्पू गपोड़,

    उसके जैसा कोई न जोड़।

    चीजों पर कविता

    लड्डू, लट्टू, कच्ची ईंट,

    ताला, चाबी, पक्की ईंट।

    कली, कागज और करेला,

    कच्चा मटका, गुड़ का भेला ।

    शीशी, पन्नी, चाय की छन्नी,

    पंजी, दस्सी और चवन्नी ।

    कैंची, फावड़ा, गाय का गिरमा,

    टोपी, जूता, आँख का सुरमा ।

    इब्नबतूता पर कविता

    इब्न बतूता, पहन के जूता,

    निकल पड़े, तूफान में।

    थोड़ी हवा, नाक में घुस गयी,

    घुस गयी, थोड़ी कान में।

    कभी नाक को, कभी कान को,

    मलते, इब्नबतूता ।

    इसी बीच में निकल पड़ा,

    उनके पैरों का जूता

    उड़ते-उड़ते, जूता उनका,

    जा पहुँचा, जापान में।

    इब्न बतूता, खड़े रह गए,

    मोची की, दुकान में।

    गोल वस्तु पर कविता

    गोल-गोल, गोल-गोल,

    सूरज गोल, चन्दा गोल,

    सिक्का गोल, चक्का गोल,

    और क्या-क्या, होता गोल,

    नहीं मालूम, तो घूमो गोल।

    नहीं मालूम तो घूमो गोल।

    गोल-गोल, गोल-गोल,

    अब रूक जाओ, बैठो गोल।

    गोल, गोल, गोल, गोल,

    गहरा कुँआ, गोल-गोल,

    रात का चंदा, गोल-गोल

    खिड़की, दरवाजे . . . .?

    नहीं मालूम तो धूमो गोल

    डोकरी माँ पर कविता

    डोकरी मां, डोकरी मां, …क्या करे है?

    बेटा, सुई ढूँढ हूँ।

    माँ, सुई को क्या करोगी?

    बेटा, थैली सिऊँगी।

    माँ, थैली का क्या करोगी?

    बेटा उसमें रूपये रखूँगी ।

    माँ, तू रूपयों का क्या करोगी?

    बेटा, एक भैंस खरीदूँगी।

    माँ, भैंस का क्या करोगी?

    बेटा, भैंस से दूध लगाऊँगी।

    माँ, दूध का क्या करोगी?

    बेटा, दूध से दही जमाऊँगी।

    माँ, दही का क्या करोगी?

    बेटा, बिलोकर मक्खन निकालूँगी।

    माँ, मक्खन का क्या करोगी?

    बेटा, मक्खन से घी बनाऊँगी।

    माँ, घी का क्या करोगी?

    हम सब मिलकर घी खायेंगे।

    तब तो बड़ा मजा आयेगा, हा, हा, हा।

    लालाजी पर कविता

    लालाजी, लालाजी,एक लड्डू दो।

    लड्डू जो चाहिये, तो. चार आने दो।

    लालाजी, लालाजी, पैसे नहीं ।

    पैसे नहीं हैं, तो लड्डू नहीं ।

    लालाजी, लालाजी,

    आपकी मूँछें, कितनी लम्बी हैं?

    आपकी मूँछें, कितनी प्यारी हैं?

    आपकी मूँछें, कितनी सुन्दर हैं?

    बेटा जी, बेटाजी, इधर आओ।

    चार लड्डू चाहिये तो, चार लड्डू लो ।

    रेलगाड़ी पर कविता

    छुक छुक छुक छुक गाड़ी आई,

    आगे से हट जाना भाई।

    हट जाना भाई, बच जाना भाई,

    छुक छुक छुक छुक गाड़ी आई।

    काला काला धुआँ उड़ाती,

    फक फक फक फक शोर मचाती।

    गाड़ी आई गाड़ी आई,

    आगे से हट जाना भाई।

    कुत्ता पर कविता

    कुत्ता इक रोटी को पाकर,

    खाने चला गाँव से बाहर।

    नदी राह में उसके आई,

    पानी में देखी परछाईं।

    लिये है रोटी कुत्ता दूजा,

    डराके छीनू, उसने सोचा।

    लेकिन उसकी किस्मत खोटी,

    भौंका ज्यों ही, गिर गई रोटी।

    नींद पर कविता

    मैं तो सो रही थी, मुझे मुर्गे ने जगाया,

    बोला कुकहूँ कूँ कूँ हूँ।

    मैं तो सो रही थी,

    मुझे बिल्ली ने जगाया,

    बोली-म्याऊँ म्याऊँ म्याऊँ ।

    मैं तो सो रही थी,

    मुझे मोटर ने जगाया,

    बोली -पो पों पों।

    मैं तो सो रही थी,

    मुझे अम्मा ने जगाया,

    बोली- उठ उठ उठ |

     छोटे बच्चे पर कविता

    छोटे बच्चे नाचें-गाएँ,

    गाल बजाये टेसूरा।

    छोटे बच्चे खेलें-खाएँ,

    तोंद फुलाये टेसूरा।

    छोटे बच्चे शोर मचायें,

    रो-रो आये टेसूरा।

    छोटे बच्चे पढ़े-पढ़ायें,

    मौज उड़ाये टेसूरा।

    छोटे बच्चे नाचें- गाएँ,

    गाल बजाये टेसूरा।

    फौजों पर बाल कविता

    पी पी पी पी डर डर डम,

    नन्हें मुन्ने सैनिक हम।

    सी है फौज हमारी,

    पर उसमें है ताकत भारी ।

    बड़ी-बड़ी फौजें झुक जाती,

    जब ये अपना जोर दिखाती।

    पी पी पी पी डर डर डम,

    नन्हें मुन्ने सैनिक हम।

    मुर्गा पर कविता

    मुर्गा बोला कुक्कडू कूं,

    चल मेरे भैया रूकता क्यूँ ।

    कुत्ता भौंके, भों-भों-भों,

    अटकी गाड़ी पौं- पौं-पौं।

    बकरी आई, बिल्ली आई,

    मैं-मैं आई, म्याऊँ – म्याऊँ आई।

    धक्की गाड़ी धौं-धौं-धौं,

    चल दी गाड़ी पौं- पौं-पौं।

    बैलों की गाड़ी पर कविता

    एक चली बैलों की गाड़ी,

    जुते हुए दो बैल अगाडी,

    बैठी थी कुल तीन सवारी,

    चार बजे से की तैयारी,

    पाँच मील पर लगा है मेला,

    छ दिन से है रेलम पेला,

    सात गाँव के लोग हैं आते,

    आठ दिनों तक धूम मचाते,

    नौ दिन तक मेला चलता,

    दसवें दिन फिर कुछ नहीं मिलता।

    गुड़िया पर कविता

    बाल कविता 1

    डाक्टर देखो भली प्रकार,

    मेरी गुड़िया है बीमार ।

    कल था बरसा छम-छम पानी,

    भीगी उसमें गुड़िया रानी।

    गीले कपड़े दिए उतार,

    फिर भी गुड़िया है बीमार

    उसे लगाना थर्मामीटर,

    ओ हो इतना तेज बुखार ।

    सौ से भी ऊपर है चार,

    देता हूँ मैं इसको पुड़िया

    डाक्टर ले ली मैंने पुड़िया,

    ले जाती मैं अपनी गुड़िया।

    बाल कविता 2

    गुड़िया मेरी रानी है,बन्नो बड़ी सयानी है।

    गुन-गुन गाना गाती है, ताथई नाच दिखाती है।

    हँसती रहती है दिन रात, करती है वह मीठी बात।

    ठुमक ठुमक कर आती है. कंधे पर चढ़ जाती है।

    झंडा मुझे बना देना, तीन रंगों से सजा देना।

    लाल किले पर जाऊँगा,जयहिन्द जयहिन्द गाऊँगा।

    तितली पर कविता

    रंग-बिरंगे पंख तुम्हारे, सबके मन को भाते हैं।

    कलियाँ देख तुम्हें खुश होतीं फूल देख मुसकाते हैं ।।

    रंग-बिरंगे पंख तुम्हारे, सबका मन ललचाते हैं।

    तितली रानी, तितली रानी, यह कह सभी बुलाते हैं ।।

    पास नहीं क्यों आती तितली, दूर-दूर क्यों रहती हो?

    फूल-फूल के कानों में जा धीरे-से क्या कहती हो?

    सुंदर-सुंदर प्यारी तितली, आँखों को तुम भाती हो।

    इतनी बात बता दो हमको हाथ नहीं क्यों आती हो?

    इस डाली से उस डाली पर उड़-उड़कर क्यों जाती हो?

    फूल-फूल का रस लेती हो, हमसे क्यों शरमाती हो?

    – नर्मदाप्रसाद खरे

    कबूतर पर बाल कविता

    गुटरूँ-गूँ

    उड़ा कबूतर फर-फर-फर,
    बैठा जाकर उस छत पर।
    बोल रहा है गुटरूँ-गूँ,
    दाने खाता चुन चुन कर

    कबूतर / सोहनलाल द्विवेदी

    कबूतर
    भोले-भाले बहुत कबूतर
    मैंने पाले बहुत कबूतर
    ढंग ढंग के बहुत कबूतर
    रंग रंग के बहुत कबूतर
    कुछ उजले कुछ लाल कबूतर
    चलते छम छम चाल कबूतर
    कुछ नीले बैंजनी कबूतर
    पहने हैं पैंजनी कबूतर
    करते मुझको प्यार कबूतर
    करते बड़ा दुलार कबूतर
    आ उंगली पर झूम कबूतर
    लेते हैं मुंह चूम कबूतर
    रखते रेशम बाल कबूतर
    चलते रुनझुन चाल कबूतर
    गुटर गुटर गूँ बोल कबूतर
    देते मिश्री घोल कबूतर।

    सोहनलाल द्विवेदी

    चंदा मामा पर कविता

    चन्दा मामा चन्दा मामा,
    करते हो तुम कैसा ड्रामा।
    कभी सामने आते हो,
    कभी छुप छुप जाते हो।

    छुप छुप कर मुझे देखते,
    बादलों की चादर ओढ़े।
    सितारों के मध्य चलकर,
    मुझको बड़ा खिजाते हो।

    आओ लुका छिपी खेलें,
    बादलों के पीछे मिलें।
    मुझे ढूंढो मैं तुम्हें ढूंढू,
    क्यों रूठ जाते हो?

    मेरे घर कभी आओ ना,
    खुश हो जाएगी मेरी माँ।
    हलवा पूड़ी संग संग खाएंगे,
    हर दिन मुझे रिझाते हो।

    मैं बादलों के पार जाऊँ,
    तुमको अनेक खेल बताऊँ।
    पर तुम तक पहुँचूँ कैसे,
    राह नहीं बताते हो।

    साधना मिश्रा, रायगढ़, छत्तीसगढ़

    चंदा मामा दूर के
    चंदा मामा दूर के

    पुए पकाये बूर के |
    आप खाएँ थाली में।
    मुन्नी को दें प्याली में ॥
    प्याली गयी टूट
    मुन्नी गयी रूठ॥
    चंदा के घर जाएँगे।
    लाएँगे नई प्यालियाँ ॥
    मुन्नी को मनाएँगे।
    बजा बजा कर तालियाँ ॥

    कुत्ता पर बाल कविता

    लालची कुत्ता

    कुत्ता इक रोटी को पाकर,
    खाने चला गाँव से बाहर।
    नदी राह में उसके आई,
    पानी में देखी परछाई।
    लिये है रोटी कुत्ता दूजा,
    डराके छीनू, उसने सोचा।
    लेकिन उसकी किस्मत खोटी,
    भौका ज्यों ही गिर गई रोटी।

    गुड़िया पर बाल कविता

    गुड़िया मेरी रानी है,
    बन्नो बड़ी सयानी है।
    गुन-गुन गाना गाती है,
    ता-थई नाच दिखाती है।
    हँसती रहती है दिन रात,
    करती है वह मीठी बात।
    ठुमक ठुमक कर आती है,
    कंधे पर चढ़ जाती है।

    कविता 1

    वह देखो वह आता चूहा,
    आँखों को चमकाता चूहा
    मूँछों से मुस्काता चूहा,
    लंबी पूँछ हिलाता चूहा
    मक्खन रोटी खाता चूहा,
    बिल्ली से डर जाता चूहा

    कविता 2

    आज मंगलवार है
    चूहे को बुखार है
    चूहा गया डॉक्टर के पास
    डॉक्टर ने लगाई सुई….
    चूहा बोला उई उई ……

    कविता 3

    एक था चूहा,फुदकते रेंगते

    उसे मिली चिन्दी,चिन्दी लेकर वो गया

    धोबी दादा के पास,उससे कहा धोबी दादा.धोबी दादा

    मेरी चिन्दी को धो दो,उसने कहा मैं नी धोता .

    चूहा बोला – चावडी में जाऊँगा,चार सिपाही लाऊँगा

    तुझको मार पीटवाऊँगा,और मैं तमाशा देखूँगा

    धोबी दादा घबराया,उसने उसकी चिन्दी धो दी.

    चिन्दी लेकर वो गया,रंगरेज के यहाँ

    रंगरेज दादा ..रंगरेज दादा

    मेरी चिन्दी को रंग दो, उसने कहा – मैं नी रंगता

    चूहा बोला चावडी में जाऊँगा,चार सिपाही लाऊँगा

    तुझको मार पीटवाऊँगा,और मैं तमाशा देखूँगा

    रंगरेज घबराया,उसने फट से उसकी चिन्दी रंग दी.

    बाद में वो गया दरजी दादा के पास,दरजी दादा .दरजी दादा

    मेरी चिन्दी को सी दो,उसने कहा – मै नी सीता

    चूहा फिर बोला – चावडी में जाऊँगा

    चार सिपाही लाऊँगा,तुझको मार पीटवाऊँगा

    और मै तमाशा देखूँगा,दरजी घबराया उसने टोपी सिल दी.

    टोपी लेकर वो गया गोटे दादा के पास

    गोटे दादा गोटे दादा,मेरी टोपी को गोटा लगा दो

    गोटे दादा तुरन्त बोला,मै नी लगाता

    चूहे ने फट से कहा – चावडी में जाऊँगा

    चार सिपाही लाऊँगा,तुझको मार पीटवाऊँगा

    और मै तमाशा देखूँगा,गोटे दादा घबराया

    उसने टोपी को तुरन्त गोटा लगा दिया.

    टोपी पहनकर चूहा,जा बैठा ऊँचे पेड़ पर

    वहाँ से निकली राजा की स्वारी

    वह देख चूहा बोला –

    राजा – – – – – -राजा उपर ,छोटे – – – – -छोटे नीचे

    सुनकर राजा को आया गुस्सा

    चूहे को देख वह बोला,मुझे छोटा बोलता है

    सिपाहियों से कहा – जाओ उसकी टोपी ले आओ

    सिपाही टोपी ले आया

    चूहा तुरंत बोला – राजा भिखारी

    हमारी टोपी ले ली,राजा को फिर आया क्रोध

    उसने टोपी फेंक दी,टोपी उठाकर चूहा फिर बोला –

    राजा हमसे डर गया – – – – –

    हमारी टोपी दे दी .

    कविता 4

    चूहे चाचा

    चूहे चाचा पहन पजामा,
    दावत खाने आए।

    साथ में चुहिया चाची को भी,
    सैर कराने लाए।

    दावत में कपड़ों की कतरन,
    कुतर-कुतर कर खाएँ।

    चूहे चाचा कूद-कूद कर
    ढम ढम ढोल बजाएँ।

    डाकिया पर बाल कविता

    देखो एक डाकिया आया,
    साथ में अपना थैला लाया।
    खाकी टोपी खाकी वर्दी,
    आकर उसने चिट्ठी फेंकी।
    संदेशा शादी का लाया,
    शादी पर हम भी जाएँगे।
    खूब मिठाई खाएँगे ॥

    पतंग पर बाल कविता

    सर-सर-सर-सर उड़ी पतंग
    फर-फर-फर-फर उड़ी पतंग ॥
    इसको काटा,
    उसको काटा।
    खूब लगाया,
    सैर-सपाटा।
    अब लड़ने में जुटी पतंग

    बिल्ली पर बाल कविता

    मेरी बिल्ली, काली-पीली।
    पानी से वह हो गई गीली ॥
    गीली होकर लगी कॉपने।
    आँछी-आँछी लगी छींकते ॥
    मैं फिर बोली कुछ तो सीख
    बिन रूमाल के कभी न छींक।

    मछली पर बाल कविता

    मछली रानी, मछली रानी,
    बोल, नदी में कितना पानी।
    थोड़ा भी है, ज्यादा भी है,
    मैं कितना बतलाऊँ पानी।
    मुझको तो है थोड़ा पानी,
    पर तुमको है ज्यादा पानी।

    मुर्गा पर बाल कविता

    मुर्गा बोला कुकड़ू, कूँ,
    चल मेरे भैया रूकता क्यूँ
    कुत्ता भौके, भौ-भौं-भौं,
    अटकी गाड़ी पौं- पौं-पौ।
    बकेरी आई, बिल्ली आई,
    मैं-मैं आई, म्याऊँ म्याऊँ आई
    धक्की गाड़ी धौं-धौं-धौं,
    चल दी गाड़ी पौ-पौं-पौ।

    मुर्गी की शादी

    दम दम दम दम ढोल बजाता कूद-कूद कर बंदर
    राम-राम पुंगरू बाँध नाचता भालू मस्त कलन्दर॥
    कुहू कुहू कू कोयल गाती मीठा-मीठा गाना।
    मुर्गी की शादी में है बस दिन भर मीज उड़ाना ॥

  • बारिश पर कविता हिन्दी में

    बारिश पर कविता हिन्दी में

    यहां बारिश पर कविता हिन्दी में दिए जा रहे हैं आप इनको पढ़के आनंद लें।

    बारिश का मौसम

    सर सर सरसराता समीर
    चम चम चमकती चपला
    थम थम कर टपकती बूँदें
    अनेक सौगात लाती बहारें
    प्रेम का, खुशियों का
    बारिश के मौसम का।

    घनश्याम घिरे नभ घन में
    हरित धरा राधे की आँचल
    घनघोर बरसता पानी मध्य में
    लगता ज्यों खीर सागर बीच में
    बड़ी अड़चने हैं मिलन का
    बारिश के मौसम का।

    रिमझिम – रिमझिम लगी फुहार
    आई सावन की रसभरी बहार।
    थम – थमकर बहती बयार
    सावन की मनोहारी दृश्य से
    टूटा ध्यान योगी का
    बारिश के मौसम का।

    मूसलाधार जल वृष्टि के बाद
    प्रकृति के रूप सँवर निखरे
    ताल सरोवर पूरे, उछले
    पथ कीचड़ से लथपथ सने
    मुश्किलें भारी कहीं जाने का
    बारिश के मौसम का।

    मघा नक्षत्र की तीखी बौछार
    तन पर पड़ते हैं झर – झर
    स्पर्श की मधुर अहसास पल- पल
    मजा ही कुछ और होता है
    सावन में भीगने का
    बारिश के मौसम का।

    धसे धरा पर बीज जो
    सीना चिर बाहर निकले
    तिनके बिखरे हैं यहाँ – वहाँ
    हरी चूनर ओढ़ा सारा जहां
    सर्वत्र नज़ारा है हरियाली का
    बारिश के मौसम का।

    जब लगती दिन – रात की झड़ी
    थमती नहीं हरदम बरसती
    बाहर निकलना रुक जाता है
    घर के चबूतरे में बैठ तब
    आनंद लिया करते है वर्षा का
    बारिश के मौसम का।

    सुकमोती चौहान रुचि
    बिछिया, बसना , महासमुंद

    बारिश पर मुक्तक (सरसी छन्द)

    सुखद सुहाने ऋतु पावस में, पुलकित है हर गात,
    नदियाँ कलकल ताल लबालब, रिमझिम है बरसात,
    खिली हरित परिधान धरा, कौतुक करे समीर,
    मोहित हो धरती पर दिनकर, रंग बिखेरे सात।

    गीता द्विवेदी

    आओ प्रकृति की ओर

    आओ चलें  हम प्रकृति  की ओर,
    हमें कुछ कहती है, करती है शोर ।
    नित नित करो प्रकृति की सेवा,
    प्रकृति  देती है, जीवों  को मेवा ।।

    स्वस्थ जीवन शुद्ध हवा के लिए,
    दो वृक्ष लगाओ प्रकृति के लिए ।
    प्रकृति मां है  मां कह कर बुलाओ,
    अपना फर्ज निभाकर दिखलाओ ।।

    रखो पर्यावरण को शुद्ध सदा,
    बीमारियाँ नहीं मिलेगी यदा कदा ।
    सांसों में होगा चंदन का वास,
    पर्यावरण को तुम बना दो खास ।।

    पेड़ लगाओ जीवन बचाओ,
    हरियाली मन को मोह लेगी ।
    हरी-भरी होगी तेरी जीवन शैली,
    धरती माता न होगी फिर मैली ।।

    वर्षा देगी हमें, बूँदों की बौछार,
    खुशहाली होगी, होगा सुखद संसार ।
    हंसती हुई फसलें, मन को हर्षाएँगी,
    जगत के कण-कण, फिर मुस्कुरायेंगे ।।

    न  होगा  तपती धूप का प्रकोप,
    पेड़-पौधे मदमस्त हो झूमें नाचेंगे ।
    ताल तलैया मांदर  बजायेंगी ,
    मिलकर मीन दादुर तान‌ छेड़ेंगे ।।

    अनुपम होगी यह पृथ्वी मेरी,
    दिखेगी जैसी है वो रमा की सहेली ।।
    उजड़े मन में होगी बागों की बहार,
    खिल जायेगी आशाओं की कली ।।

    सुख समृद्धि अन्न धन से भरी धरा,
    रत्न से सुशोभित होती देखो जरा ।
    नीर-छीर का सागर से गहरा नाता,
    हरियाली जीव-जन्तु को है भाता ।।

    जब भी बारिश हँसते हुए आयेगी,
    देख खुशी खेतों में अंकुर फुटेंगे ।
    मन में होंगे उमंगों के तराने,
    ग्रीष्म में तरु मधुमास को लायेंगे ।।

    कुहूक-कुहूक गुंजेगी मीठी बोली,
    कोयल के संग-संग‌ मैं तो दोहराऊंगी ।
    आओ सुनो ननकी मिश्री की बात,

    प्रकृति से प्रकृति के साथ जुड़ जाऊंगी ।।

    ननकी पात्रे ‘मिश्री’
    [बेमेतरा, छत्तीसगढ़]

    बरसा आगे छत्तीसगढ़ी गीत


    गरजे बादर घनघोर,होगे करिया अंधियार…बादर छा गे–
    बिजुरी चमके अकास,बुझ गे भुंइया के प्यास…बरसा आगे—।।–।।


    नाचें रुख राई बन…..कूदें गर्रा घाटा…सूखा मर गे
    देवी देवंता आशीष..गिरे सूपा के धार…तरिया भर गे–।।–।।

    पीपर होंगे मतवार…भीजे डोली औ खार…पिंयरा परगे–
    कोयली कुहू कुहू…भवरा भूँउ..भूँउ….भुंइया तरगे—।।–।।

    खेते नांगर बईला…किसान होंगे हरवार… बीजा बिछ गे—
    ठंडा जीवरा परान…ठीना.फसल फरवार… आशा हो गे….।।–।।

    नाचे मन के मंजूर..होही धान भरपूर…आषाढ़ बार गे….
    सावन भादों के आस..तर गे धरती पियास…बरसा आ गे…।।–।।

    डॉ0 दिलीप गुप्ता

    प्रथम फुहार पर कविता

    आया शुभ आषाढ़, बदलने लगे नजारे |
    भीषण गर्मी बाद, लगे घिरने घन प्यारे ||
    देखे प्रथम फुहार, रसिक अपना मन हारे |
    सौंधी सरस सुगंध, मुग्ध हैं कविवर सारे ||
    सूचक है ग्रीष्मांत का, सुखद प्रथम बरसात यह |
    चंचल चितवन चाप को, मिला महा सौगात यह ||

    टपकी पहली बूँद, गाल पर मेरे ऐसे |
    अति अपूर्व अहसास, अमृत जलकण हो जैसे ||
    थिरक रहा मन मोर, हुआ अतिशय मतवाला |
    कृष्ण रचाये संग, रास लीला बृजबाला ||
    धरती लगती तृप्त है , गिरे झमाझम मेह है |
    शांत चराचर जग सभी, बरसा भू पर नेह है ||

    हरा भरा खुशहाल, मातु धरती का आँचल |
    उगे घास चहुँ ओर, गरजते घन घन बादल |
    हरियाली चहुँ ओर, हरित धरती की चूनर |
    प्रकृति करे श्रृंगार, लगा पत्तों की झूमर |
    धरती माँ के कोख में, फसल अकुंरित हो रहे |
    गर्भवती धरती हुई, सब आनंदित हो रहे ||

    सुकमोती चौहान रुचि

    पावस पर कविता

    पावस पनघट आज छलक रहा है।
    झर    रहा    नीर        बूँद  –  बूँद,
    प्रिय  स्मृति  से  मन    भींग रहा है।

    मैं  विरहिणी             प्रिय-प्रवासी,
    घन  पावस         तम-पूरित  रात।
    झूम-झूम   घन    बरस      रहे हैं,
    अलस – अनिद्रित  सिहरता गात।
    किसे  बताऊं         विरह-वेदना,
    सुख निद्रा से   जग रंग   रहा   है।

    झर    रहा    नीर        बूँद  –  बूँद,
    प्रिय  स्मृति  से  मन    भींग रहा है।

    झरती बूंदें,           तपता   तन है,
    विरह- विगलित   व्यथित मन है।
    चपला  चंचला      घन   गर्जन है,
    स्मृति-रंजित      उर स्पंदन   है।
    किसे दिखाऊँ      विकल चेतना,
    चेतन  विश्व तो    ऊंघ   रहा  है।

    झर रहा नीर          बूँद –  बूँद,
    प्रिय स्मृति से   मन  भींग रहा है।

    साधना मिश्रा,   रायगढ़-छत्तीसगढ़

    बादलो ने ली अंगड़ाई

    बादलो ने ली अंगड़ाई,
    खिलखलाई यह धरा भी!
    हर्षित हुए भू देव सारे,
    कसमसाई अप्सरा भी!

    कृषक खेत हल जोत सुधारे,
    बैल संग हल से यारी !
    गर्म जेठ का महिना तपता,
    विकल जीव जीवन भारी!
    सरवर नदियाँ बाँध रिक्त जल,
    बचा न अब नीर जरा भी!
    बादलों ने ली अंगड़ाई,
    खिलखिलाई यह धरा भी!

    घन श्याम वर्णी हो रहा नभ,
    चहकने खग भी लगे हैं!
    झूमती पुरवाई आ गई,
    स्वेद कण तन से भगे हैं!
    झकझोर झूमे पेड़ द्रुमदल,
    चहचहाई है बया भी!
    बादलों ने ली अंगड़ाई,
    खिलखिलाई यह धरा भी!

    जल नेह झर झर बादलों का,
    बूँद बन कर के टपकता!
    वह आ गया चातक पपीहा,
    स्वाति जल को है लपकता!
    जल नेह से तर भीग चुनरी,
    रंग आएगा हरा भी!
    बादलों ने ली अंगड़ाई,
    खिलखिलाई यह धरा भी!

    बाबू लाल शर्मा

    रिमझिम रिमझिम गिरता पानी

    रिमझिम रिमझिम गिरता पानी
    छमछम नाचे गुड़िया रानी
    चमक रही है चमचम बिजली
    छिप गईं है प्यारी तितली
    घनघोर घटा बादल में छाई
    सबके मन में खुशियाँ लाई
    नाच रहे हैं वन में मोर
    चातक पपीहा करते शोर
    चारों तरफ हरियाली छाई
    सब किसान के मन को भाई।

    अदित्य मिश्रा

    आया बरसात

    उमस भरी गर्मी को करने दूर,
    लेकर सुहावनी हवाऐं भरपूर।
    भर गया जल जो स्थान था खाली,
    सुखे मरूस्थल में भी छा गई हरियाली।
    भीग गए हर गली डगर – पात,
    मन को लुभाने, आया बरसात।

    कोयल कुहके पपीहा बोला,
    मोर नृत्य का राज खोला।
    काली घटा बदरा मंडरा गई,
    देख बावरी हवा भी शरमा गई।
    दामिनी करने लगी धरा से बात,
    मन को लुभाने, आया बरसात।

    कीट – पतंग और झींगुर की आवाज,
    आनंदित है प्राणी वर्षा का हुआ आगाज।
    सर्प – बिच्छू शुरू किए जीवन शैली,
    धरा के छिद्र से चींटियों की रैली।
    मेंढक की धुन से हो वर्षा की सौगात,
    मन को लुभाने, आया बरसात।

    भीगे धरा का एसा है वृतांत,
    साथ में है जीव कोई नहीं एकांत।
    सुखे हरे पत्तों में आयी मुस्कान,
    लेकर हल खेत चले किसान।
    करे स्वागत वर्षा का मानव जात,
    मन को लुभाने, आया बरसात।

    मछलियों की लगा जमघट,
    पक्षी – मानव करें धर – कपट।
    बच्चों की अनोखी कहानी,
    नाच उठे देख वर्षा का पानी।
    होती है सुन्दर मनभावन रात,
    मन को लुभाने, आया बरसात।

    कावड़ियों का ओंकारा,
    रथ – यात्रा का जयकारा।
    कुदरत का अनोखा रूप,
    कभी वर्षा कभी धूप।
    सोंचे मन बह जाऊँ हवा के साथ,
    मन को लुभाने, आया बरसात।

    – अकिल खान

    बरस मेघ खुशहाली आए

    बरसे जब बरसात रुहानी,
    धरा बने यह सरस सुहानी।
    दादुर, चातक, मोर, पपीहे,
    फसल खेत हरियाली गाए,
    बरस मेघ, खुशहाली आए।।

    धरती तपती नदियाँ सूखी,
    सरवर,ताल पोखरी रूखी।
    वन्य जीव,पंछी हैं व्याकुल,
    तुम बिन कैसे थाल सजाए,
    बरस मेघ, खुशहाली आए।।

    कृषक ताकता पशु धन हारे,
    भूख तुम्हे अब भूख पुकारे,
    घर भी गिरवी, कर्जा बाकी,
    अब ये खेत नहीं बिक जाए,
    बरस मेघ, खुशहाली आए।।

    बिटिया की करनी है शादी,
    मृत्यु भोज हित बैठी दादी।
    घर के खर्च खेत के हर्जे,
    भूखा भू सुत ,फाँसी खाए,
    बरस मेघ, खुशहाली आए।।

    कुएँ बीत कर बोर रीत अब,
    भूल पर्व पर रीत गीत सब।
    सुत के ब्याह बात कब कोई,
    गुरबत घर लक्ष्मी कब आए,
    बरस मेघ, खुशहाली आए।।

    राज रूठता, और राम भी,
    जल,वर्षा बिन रुके काम भी।
    गौ,किसान,दुर्दिन वश जीवन,
    बरसे तो भाग्य बदल जाए,
    बरस मेघ, खुशहाली आए।।

    सागर में जल नित बढ़ता है,
    भूमि नीर प्रतिदिन घटता है।
    सम वर्षा का सूत्र बनाले ,
    सब की मिट बदहाली जाए,
    बरस मेघ, खुशहाली आए।।

    कहीं बाढ़ से नदी उफनती,
    कहीं धरा बिन पानी तपती।
    कहीं डूबते जल मे धन जन,
    बूंद- बूंद जग को भरमाए,
    बरस मेघ ,खुशहाली आए।।

    हम भी निज कर्तव्य निभाएं,
    तुम भी आओ, हम भी आएं,
    मिलजुल कर हम पेड़़ लगाएं,
    नीर संतुलन तब हो जाए,
    बरस मेघ , खुशहाली आए।।

    पानी सद उपयोग करे हम,
    जलस्रोतो का मान करे तो।
    धरा,प्रकृति,जल,तरु संरक्षण,
    सारे साज– सँवर तब जाए,
    बरस, मेघ खुशहाली आए।।

    बाबू लाल शर्मा,बौहरा

    आया है बरसात

    आया है बरसात का मौसम,
    धोने सब पर जमीं जो धूल।
    चाहे ऊंचे बाग वृक्ष हों ,
    या हों छोटे नन्हें फूल।

    चमक रही अट्टालिकाएं,
    परत चढ़ी है मैल की ।
    बर्षा जल से धूल घुल जाय,
    अब तो पपड़ी शैल की।

    मन मंदिर भी धूमिल है,
    शमाँ भरा है धूंध से।
    देव भी अब चाह रहे हैं,
    पपड़ी टूटे जल बून्द से।

    मानवता भी लंबी चादर,
    ओढे है मोटी मैल की।
    दिव्यज्ञान बारिश हो तो,
    परत कटे अब तैल की।

    छाया वाले तरु भी देखो,
    हो गए हैं बड़े कटीले।
    ममता रूपी बून्द मिलेगा,
    छाया देंगे बड़े सजीले।

    प्रदूषण की मैल जमीं है,
    मानव नेत्र महान पर।
    इस बर्षा सब धूल घुल जाए,
    जमीं जो देश जहाँन पर।

    आशोक शर्मा,कुशीनगर,उ.प्र.

    उमड़ घुमड़ घन घिर सावन के

    उमड़ घुमड़ घन घिर सावन के,
    नभ से जल बरसाएँ।
    तपन हुई शीतल बसुधा की,
    सब के मन हरषाएँ ।।

    श्याम घटाअम्बर पर छाएँ,
    छवि लगती अति प्यारी।
    मघा मेघ अमृत बरसाएँ,
    मिटे प्रदूषण भारी ।।
    धुले गरल कृत्रिम जीवन का,
    प्रेम प्रकृति का पाएँ।
    उमड़ घुमड़ घन घिर सावन के,
    नभ से जल…..(1)

    हे घनश्याम मिटा दो तृष्णा,
    धरती और गगन की।
    बरसाओ घनघोर मेघ जल,
    देखो खुशी छगन की।।
    करदो पूर्ण मनोरथ जलधर,
    चातक प्यास बुझाएँ ।
    उमड़ घुमड़ घन घिर सावन के,
    नभ से जल……. (2)

    मन्द पवन झकझोरे लेती,
    चलती है इठलाती।
    शीत ताप वर्षा रितु पाकर,
    प्रकृति चली मदमाती।।
    सावन में घनश्याम पधारो,
    गीत खुशी के गाएँ।
    उमड़ घुमड़ घन घिर सावन के,
    नभ से जल…. (3)
    रमेश शर्मा

    रिमझिम वर्षा बूँद का संग्रह करो अपार



    पानी बरसे नित्य ही,
    आये दिन बरसात।
    जल से प्लावित है धरा,
    लगे फसल मत घात।।

    बादल आज घुमड़ रहे,
    करे ध्वनित अति शोर।
    बर्फ गिरे बरसात में,
    देख चकित हैं मोर।।

    वर्षा जल से तरु हरित,
    रूप शोभायमान।
    हरे भरे चहुँ ओर से,
    दिव्य दिखे खलिहान।।

    नित्य कृषक कर प्रार्थना,
    ईष्ट विनय करजोर।
    देख बरसते मेघ को,
    होता भाव विभोर।।

    रिमझिम वर्षा बूँद का,
    संग्रह करो अपार।
    कहे रमा ये सर्वदा,
    बुझे प्यास संसार।।

    मनोरमा चन्द्रा

    समझ ले वर्षारानी

    १३ मात्रिक मुक्तक
    . (वर्षा का मानवीकरण)

    बरस अब वर्षा रानी,
    बुलाऊँ घन दीवानी।
    हृदय की देखो पीड़ा,
    मान मन प्रीत रुहानी।

    हितैषी विरह निभानी,
    स्वप्न निभा महारानी।
    टाल मत प्रेम पत्रिका,
    याद कर प्रीत पुरानी।

    प्राण दे वर्षा रानी।
    त्राण दे बिरखारानी।
    सूखता हृदय हमारा,
    देह से नेह निभानी।

    तुम्ही जानी पहचानी,
    वही तो बिरखा रानी।
    पपीहा तुम्हे बुलाता,
    बनो मत यूं अनजानी।

    हार कान्हा से मानी,
    सुनो हे मन दीवानी।
    स्वर्ग में तुम रहती हाँ,
    तो हम भी रेगिस्तानी।

    सुनो हम राजस्थानी,
    जानते आन निभानी।
    समझते चातक जैसे,
    निकालें रज से पानी।

    भले करले मनमानी,
    खूब करले नादानी।
    हारना हमें न आता,
    हमारी यही निशानी।

    मान तो मान सयानी,
    यादकर पुरा कहानी।
    काल दुकाल सहे पर,
    हमें तो प्रीत निभानी।

    तुम्हे वे रीत निभानी,
    हठी तुम जिद्दी रानी।
    रीत राणा की पलने,
    घास की रोटी खानी।

    जुबाने हठ मरदानी,
    जानते तेग चलानी।
    जानते कथा पुरातन,
    चाह अब नई रचानी।

    यहाँ इतिहास गुमानी।
    याद करता रिपु नानी।
    हमारी रीत शहादत,
    लुटाएँ सदा जवानी।

    सतत देते कुर्बानी,
    हठी हे वर्षा रानी।
    श्वेद से नदी बहाकर,
    रखें माँ चूनर धानी,

    प्रेम की ऋतु पहचानी,
    लगे यह ग्रीष्म सुहानी।
    याद बाते सब करलो,
    करो मत यूँ शैतानी।

    निभे कब बे ईमानी,
    चले ईमान कहानी।
    आन ये शान निभाते,
    समझते पीर भुलानी।

    बात की धार बनानी,
    रेत इतिहास बखानी।
    तुम्ही से होड़ा- होड़ी,
    मेघ प्रिय सदा लगानी।

    व्यर्थ रानी अनहोनी,
    खेजड़ी यों भी रहनी।
    हठी,जीते कब हमसे,
    साँगरी हमको खानी।

    हमें, जानी पहचानी,
    तेरी छलछंद कहानी।
    तुम्ही यूँ मानो सुधरो,
    बचा आँखों में पानी।

    जँचे तो आ मस्तानी,
    बरसना चाहत पानी।
    भले भग जा पुरवैया,
    पड़ी सब जगती मानी।

    याद कर प्रीत पुरानी,
    झुके तो बिरखारानी।
    सुनो हम मरुधर वाले,
    रहे तो रह अनजानी।

    मान हम रेगिस्तानी,
    बरसनी वर्षा रानी।
    मल्हारी मेघ चढ़े हैं।
    समझ ले वर्षा रानी।

    बाबूलाल शर्मा

    धरती का सीना भिगोती है बारिश


    धरती का सीना भिगोती है बारिश।
    फूलों की मोती पिरोती है बारिश।
    अमृत बन प्यास बुझाती है बारिश ।
    कभी सैलाब लाके डुबोती है बारिश।
    मन मोर को भी लुभाती है बारिश ।
    नीड़ में छुपे पंछी को डराती है बारिश ।
    अन्न उगाकर जिंदगी संवारती है बारिश।
    कभी काली प्रतिमा से चिल्लाती है बारिश।
    रिमझिम छम छम गूंजती है बारिश ।
    कल कल झर झर कर झूमती है बारिश ।
    बाग के गुलशन उजाड़ती है बारिश।
    सिमटी हुई कली खिलाती है बारिश ।
    गंदगी भरे जग को नहलाती है बारिश।
    मच्छर मक्खी से महामारी फैलाती है बारिश ।
    कभी दोस्त कभी दुश्मन होती है बारिश ।
    प्रकृति से हाथापाई करती है बारिश।

    मनीभाई नवरत्न

  • स्वतंत्रता दिवस पर कविता

    स्वतंत्रता दिवस पर कविता

    स्वतंत्रता दिवस पर कविता :- हर वर्ष 15 अगस्त को मनाया जाता है। सन् 1947 में इसी दिन भारत के निवासियों ने ब्रिटिश शासन से स्‍वतंत्रता प्राप्त की थी। यह भारत का राष्ट्रीय त्यौहार है। पूरे भारत में अनूठे समर्पण और अपार देशभक्ति की भावना के साथ स्‍वतंत्रता दिवस मनाया जाता है। देश के प्रथम नागरिक और देश के राष्ट्रपति स्वतंत्रता दिवस की पूर्वसंध्या पर “राष्ट्र के नाम संबोधन” देते हैं। इसके बाद अगले दिन दिल्‍ली में लाल किले पर तिरंगा झंडा फहराया जाता है, जिसे 21 तोपों की सलामी दी जाती है। इसके बाद प्रधानमंत्री देश को संबोधित करते हैं। आयोजन के बाद स्कूली छात्र तथा राष्ट्रीय कैडेट कोर के सदस्य राष्ट्र गान गाते हैं। लाल किले में आयोजित देशभक्ति से ओतप्रोत इस रंगारंग कार्यक्रम को देश के सार्वजनिक प्रसारण सेवा दूरदर्शन (चैनल) द्वारा देशभर में सजीव (लाइव) प्रसारित किया जाता है। स्वतंत्रता दिवस की संध्या पर राष्ट्रीय राजधानी तथा सभी शासकीय भवनों को रंग बिरंगी विद्युत सज्जा से सजाया जाता है, जो शाम का सबसे आकर्षक आयोजन होता है।

    स्वतंत्रता दिवस पर कविता
    स्वतंत्रता दिवस पर कविता

    स्वतंत्रता दिवस पर कविता

    स्वतंत्रता की मुस्कान

    दो सौ वर्षों की गुलामी के बाद,
    हमारा भारत देश हुआ आजाद।
    गांधी – भगतसिंह थे जैसे वीर,
    कोई था गरीब कोई था अमीर।
    देश की आजादी के लिए भारतीय हुए कुर्बान,
    बड़ी शिद्दत से मिली है, स्वतंत्रता की मुस्कान।

    अंग्रेजी अधिकारीयों की तानाशाही,
    हिन्दुस्तान पर जुल्म का कहर ढाई।
    चारों तरफ था अन्याय – अत्याचार,
    हिंसा से करते गोरे हुकूमत का प्रचार।
    देश की आजादी के लिए लोगों ने दी बलिदान।
    बड़ी शिद्दत से मिली है, स्वतंत्रता की मुस्कान।

    लक्ष्मीबाई- दुर्गावती जैसी नारी – शक्ति,
    लोगों को सिखाया देश-प्रेम की भक्ति।
    सुभाषचंद्र बोस चंद्रशेखर की ऐसी थी कहानी,
    नाम सुनकर कांपते अंग्रेज और मांगते थे पानी।
    आजादी के लिए लाचार था भारत का इंसान,
    बड़ी शिद्दत से मिली है, स्वतंत्रता की मुस्कान।

    संघर्ष को आगे बढ़ाए स्वतंत्रता – सेनानी,
    हो गए शहीद लेकिन कभी हार न मानी।
    मंगल पांडे खुदीराम बोस का था श्रेष्ठ योगदान,
    बड़ी शिद्दत से मिली है, स्वतंत्रता की मुस्कान।

    संघर्ष – बलिदान है आजादी का सूत्र,
    कई स्त्रियों ने गंँवाई वीर भाई – पुत्र।
    हमें आजादी मिली है कई संघर्षों के बाद,
    मेरे देश वासियों इसे रखना तुम आबाद।
    सभी महापुरुषों का मैं करूं सहृदय गुणगान,
    बड़ी शिद्दत से मिली है, स्वतंत्रता की मुस्कान।

    15 अगस्त को लहराओ शान से तिरंगा,
    न करो हिन्दुस्तान में धार्मिक द्वेष – दंगा।
    हिन्दू-मुस्लिम और सिख – ईसाई,
    हम आपस में हैं सब भाई – भाई।
    परोपकार से तुम भी बनालो अपनी पहचान,
    बड़ी शिद्दत से मिली है, स्वतंत्रता की मुस्कान।

    अकिल खान

    यूं ही नहीं ये तिरंगा महान है

    यूं ही नहीं ये तिरंगा महान है।
    यही तो मेरे देश की पहचान है।
    हो गए कितने ही प्राण न्यौछावर इसके सम्मान में,
    आज भी इस तिरंगे के लिए सबकी एक हथेली पर जान है।
    मेरे दिलो जिस्मों जान से ये सदा आती है,
    ये तिरंगा ही तो मेरा ईमान है।
    मिट गए देश के खातिर कैसे -कैसे देश भगत यहाँ,
    गांधी,तिलक,सुभाष व जवाहर जैसे फूल इस तिरंगे की पहचान है।
    भूला नहीं सकता कभी ये देश इन वीर जवानों को,
    भगत सिंह,राज गुरु,सुखदेव जैसे वीर जवान इस तिरंगे के लिए हुए कुर्बान है।
    घटा अमृत बरसाती है , फिज़ा गीत सुनाती है, धरा हरियाली बिछाती है,
    कई रंग कई मज़हब के होकर भी सबके हाथो में,

    एक ही तिरंगा और सबकी ज़ुबान पर एक ही गान है।
    उत्साह की लहर शांति की धारा बहाती है नदियां,
    हम भारतीय की पहचान बताती ये धरती सुनहरी नीला आसमान है।
    करते है वतन से मुहब्बत कितनी ना पूछो हम दीवानों से,
    वतन के नाम पर सौ जान भी कुर्बान है।
    एक ही तिरंगे के साये में कई तरह के फूल खिलते व खुशबू महकती है,
    रंग,नस्ल, जात, मज़हब भिन्न- भिन्न होकर भी एक ही धरा के हम बागबान है।
    लिखी जाती है मुहब्बत की कहानियां पूरी दुनिया में,
    मगर मुहब्बत का अजूबा ताज को बताकर मिलता हिंदुस्तान को स्वाभिमान है।
    ज़मी तो इस दुनिया में बहुत है पैदा होने के लिए,
    “तबरेज़” तू खुशनसीब है जिस ज़मी पर पैदा हुआ वो हिंदुस्तान है।

    तबरेज़ अहमद
    बदरपुर नई दिल्ली

    लहराता तिरंगा बजता राष्ट्रीय गान

     

    कहीं लहराता तिरंगा
    बजता राष्ट्रीय गान कहीं
    कहीं कहीं देश के नारे
    शहीदों का सम्मान कहीं

    पूजा थाली दीप सजाकर
    चली देश की ललनाएँ!!
    भैया द्वारे सूत खोलकर
    रक्षा की ले रही दुआएँ।।

    रंग बिरंगी सजी थी राखी
    भीड़ लगी थी बाजारों में! 
    खिली खिली देश की गली
    दो दो पावन त्यौहारों मे! 

    दोनों प्रहरी  इस  मिट्टी के
    संजोग ये कैसा आज है आई? 
    इधर बहन की रक्षक बैठे
    उधर सीमा पर सैनिक भाई!

    जाता सावन दुख भी देता
    फिर न मिलेगा ऐसा रूप! 
    पल न बीते भादों आता
    ऐसा इनका जोड़ी अनूप!!

    गोल थाल सी निकली चंदा
    सावन पुन्नी अति मनभावन! 
    शिवशंकर का नमन करे सब
    बम बम भोले मंत्र है पावन! 

    शाम सबेरे दिन भर आनंद
    लो फिर आ गयी है रात! 
    वत्स कहे शुभ रात्रि सभी को
    राम लला को नवाकर माथ!

                – राजेश पान्डेय वत्स

    तिरंगा हाथ में ले काफिला जब गुजरता है

    तिरंगा हाथ में ले काफिला जब – जब गुजरता है ।
    जवानी जोश जलवा देख शत्रु का दिल मचलता है।।

    कसम है हिन्दुस्तां की जां निछावर फिर करेंगे हम,
    नज़र कोई दिखा दे तो लहू रग – रग उबलता है ।

    महक सोंधी मिट्टी की जमीं मेरी सदा महकाये ,
    सलामत खूब हिन्दोस्तां रहे झिल-मिल चमकता है।

    जरूरत यदि पड़े तो सर कटा दें देश की खातिर ,
    जवां इस देश पर कुरबान होने को तरसता है ।

    अमन का ताज भारत पे खिले हरदम दुआ करते ,
    तिरंगे फूल से आजाद गुलशन अब महकता है।

    दुआ हो गर खुदा का हम जनम हर बार लेंगे अब ,
    झुकाते शीष हम आशीष हरदम ही झलकता है ।

    कहे दिल से “धरा” भी ,फ़क्र करते हैं वतन पर हम ,
    तिरंगा हिन्द का अब चाँद पर भी फहरता है।

    धनेश्वरी देवांगन धरा
    रायगढ़ छत्तीसगढ़

    राष्ट्रीय पर्व पर कविता

    तीन रंगों का मैं रखवाला खुशहाल भारत देश हो।
    मेरी भावनाओं को सब समझें ऐसा यह सन्देश हो।

    जब-जब होता छलनी मेरा सीना मैं भी अनवरत रोता हूँ ।
    मेरे दिल की तो समझो मैं भी कातर और ग़मज़दा होता हूँ।
    सब के मन को निर्मल कर दो प्यार का समावेश हो।
    मेरी भावनाओं को सब समझें मेरा यह सन्देश हो।
    तीन रंगों का मैं ….

    जब मेरी खातिर लड़ते-लड़ते मेरे सपूत शहीद हो जाते हैं |
    मेरी ही गोद में सिमटकर वे सब मेरे ही गले लग जाते हैं।
    बोझिल मन से ही सही उन्हें सहलाऊँ ऐसा मेरा साहस हो।
    मेरी भावनाओं को सब समझें मेरा यह सन्देश हो।
    तीन रंगों का मैं ….

    जाकर उस माता से पूछो जिसने अपना लाल गँवाया है।
    निर्जीव देह देखकर कहती  मैंने एक और क्यों न जाया है |
    तेरे जैसी वीरांगनाओं से ही देश का उन्नत भाल हो।
    मेरी भावनाओं को सब समझें मेरा यह सन्देश हो।
    तीन रंगों का मैं ….

    मेरे प्यारे देश को शूरवीरों की आवश्यकता, अनवरत रहती है ।
    उन प्रहरियों की सजगता के  कारण ही, सुरक्षित रहती धरती है ।
    आ तुझे गले लगाऊँ, तुझ पर अर्पण सकल आशीर्वाद हों ।
    मेरी भावनाओं को सब समझें मेरा यह सन्देश हो।
    तीन रंगों का मैं ….

    मैं भी सोचा करता हूँ पर इस व्यथा को किसे सुनाऊँ मैं।
    छलनी होता मेरा सीना अपनी यह पीड़ा किसे दिखाऊँ मैं।
    देश की खातिर देह उत्सर्ग हो यही सबका अंतिम  प्रण हो।
    मेरी भावनाओं को सब समझें मेरा यह सन्देश हो।
    तीन रंगों का मैं ….

    श्रीमती वैष्णो खत्री
    (मध्य प्रदेश)

    *पुलवामा हमले में शहीद  को अश्रुपूरित विनम्र श्रद्धांजलि

    आतंकी हमले की निंदा करके ये रह जाएंगे।
    और शहीदों की अर्थी पर पुष्प चढ़ाकर आएंगे।।

    इससे ज्यादा कुछ नहीं करते ये भारत के नेता हैं।
    आज देश का बच्चा-बच्चा इन को गाली देता है।।

    सीमा पार से आतंकी कैसे हमले कर जाते हैं?
    दिनदहाड़े देश के 40 जवान मर जाते हैं।।

    सत्ता के सत्ताधारी अब थोड़ी सी तो शर्म करो।
    एक-एक आतंकी को चुनकर के फांसी पे टांक धरो।।

    घटना सुनकर के हमले की दिल मेरा थर्राया है।
    सोया शेर भी आज गुफा से देखो कैसे गुर्राया है?

    सैनिक की रक्षा हेतु अब कदम बढ़ाना ही होगा।
    संविधान परिवर्तित कर कानून बनाना ही होगा।।

    कितनी बहिनें विधवा हो गई और कितनों का प्यार गया।
    उस माँ पर क्या बीती होगी जिसका फूलों सा हार गया।।

    जितने हुए शहीद देशहित उनको वंदन करता हूं।
    उनके ही चरणों में मैं अपने शीश को धरता हूँ।।

    दे दी हमें आजादी पर कविता

    दे  दी  हमें  आजादी  तो ,
    भुला   देंगे  क्या  उनको l
    रहने  को न  मिला चैन से,
    हिन्दोस्तां   में   जिनको ll

    खाईं जिन्होंने गोलियाँ ,
    अनाज    के    बदले I
    हँस   फाँसी  स्वीकारी ,
    सुख – चैन  के बदले ll


    गिल्ली , मैच , ताँश न भायी ,
    खेल    किया   बन्दूक   से l
    दुश्मन  मुक्त  कराया  भारत ,
    खून  किया  जब  खून  से ll

    पड़ा मूलधन ब्याज चुकी न ,
    नमन    करें    हम   उनको l
    रहने  को  न  मिला  चैन से ,
    हिन्दोस्तां      में    जिनको ll

    जरा निकलकर बाहर आओ ,
    अपनी    इस    तस्वीर   से  I
    उस भारत  को  फिर से देखो ,
    सींचा  जिसको  खूँ – नीर से ll


    नशा  भयंकर  बिना  मधु  के ,
    आजादी       के       खातिर l
    कभी नींद औ भूख लगी न ,
    राष्ट्र   भक्ति    के      शातिर ll

    आओ ‘माधव’ तुम्हें  बुलाता ,
    नत    मस्तक  है      उनको l
    रहने  को  न  मिला  चैन  से ,
    हिन्दोस्तां     में    जिनको  Il

    सन्तोष कुमार प्रजापति “माधव”

    मेरा देश महान

    मेरा देश महान भैया !
    मेरा देश महान ।।
    सिर पर मुकुट हिमालय का है
    पावँ पखारे सागर

    पश्चिम आशीर्वाद जताता
    पूरब राधा  नागर
    हर पनघट से
    रुन झुन छिड़ती
    मधुर मुरलिया तान ।।

    नदिया झरने हर दम इसके
    कल कल सुर में गावे
    कनक कामिनी वनस्पति भी
    खिल खिल कर इठलावे

    हर समीर हो
    सुरभित महके
    बिखरे जान सुजान ।।

    इसकी हर नारी सावित्री
    हर बाला इक राधा
    नूतन अर्चन के छन्दों पर
    साँस साँस को साधा

    प्रेम से पूजते
    मानव पत्थर
    बन जाते भगवान ।।

    इसकी योगिक शक्ति को
    हर देश विदेश सराहावे
    इसकी संस्कृति को देखो
    झुक झुक शीश नवावे

    जन गण मन का
    भाग्य विधाता
    गए तिरँगा गान ।।

    रीति रिवाज अलग हैं  इसके
    अलग अलग हैँ भाषा
    भारतवासी कहलाने की
    किन्तु एक परिभाषा

    मिल जुल कर
    खेतों में काटती
    मक्का गेहूँ धान ।।

    घायल की गति घायल जाने
    मीरा कहे दीवानी
    चुनरी का दाग छुड़ाऊँ कैसे

    खरी कबीर की बानी
    मेरो मन कहाँ सुख पावे
    सही सूर का बान ।।

    चहल पहल शहरों में इसके
    गाँवो में भोलापन
    जंगल मे नव जीवन इसके

    बस्ती में कोलाहल
    कण कण में
    आकर्षण इसके
    हर मन मे एक आन ।।

    सुशीला जोशी
    मुजफ्फरनगर

    सबसे बढ़कर देशप्रेम है

    प्रेम की वंशी, प्रेम की वीणा।
    प्रेम गंगा है……प्रेम यमुना ।।

    प्रेम धरा की मधुर भावना।
    प्रेम तपस्या,प्रेम साधना ।।

    प्रेम शब्द है,प्रेम ग्रंथ है ।
    प्रेम परम् है,प्रेम अनंत है।।

    प्रेम अलख है,प्रेम निरंजन ।
    प्रेम ही अंजन,प्रेम ही कंचन।।

    प्रेम लवण है , प्रेम खीर है ।
    प्रेम आनंद औ’प्रेम ही पीर है।।

    प्रेम बिंदु है,प्रेम सिंधु है ।
    प्रेम ही प्यास,प्रेम अंबु है।।

    प्रेम दुःखदायी,प्रेम सहारा ।
    प्रेम में डूबो.. मिले किनारा ।।

    प्रेम धरा की मधुर आस है ।
    प्रेम सृजन है,प्रेम नाश है ।।

    प्रेम मानव को ‘मानव’ बनाता ।
    प्रेम शिला में.. ईश्वर दिखाता ।।

    प्रेम दया है,प्रेम भाईचारा।
    प्रेम स्नेही….प्रेम दुलारा ।।

    प्रेम प्रसून है,प्रेम गुलिस्तां ।
    प्रेम से बनता पूरा हिंदोस्ताँ ।।

    जित देखिए प्रेम ही प्रेम है
    पर सबसे बढ़कर देशप्रेम है ।।

    निमाई प्रधान ‘क्षितिज’

    प्राणों से प्रिय स्वतंत्रता….

    शहीदों के त्याग,तप की अमरता
    हमें प्राणों से प्रिय है स्वतंत्रता!
    धमकी से ना हथियारों से,
    हमलों से अत्याचारों से,
    न डरेंगे,न झुकेंगे राणा की संतान हैं
    विजयी विश्व तिरंगा हमारी,
    आन, बान, शान हैं!
    अगणित बलिदानों से,
    अर्जित है स्वतंत्रता
    हमें प्राणों से…….
    नफरतों की आग से,फूंकते रहो बस्तियां,
    अफवाहों से,भय से बढ़ाते रहो दूरियां,
    गीता,कुरान संग पढ़ेंगे,
    मंदिर-मस्जिद दिलों में रहेंगे,
    सीने पर जुल्म की,
    चलाते रहो बर्छियां,
    अश्रु,स्वेद रक्त सिंचित स्वतंत्रता,
    हमें प्राणों से……
    पैगाम अमन के देती रहूंगी,
    हर रोज संकल्प ये लेती रहूंगी,
    लहू से गीत आजादी के,
    वन्देमातरम लिखती रहूंगी,
    किसी कीमत पर स्वीकार नहीं परतंत्रता,
    हमें प्राणों से प्रिय है स्वतंत्रता….


    डॉ. पुष्पा सिंह’प्रेरणा’
    अम्बिकापुर, सरगुजा(छ. ग.)

    मेरा देश सिखाता है

    हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख ईसाई,
    हर मजहब से नाता है।
    सब धर्मों की इज्ज़त करना,
    मेरा देश सिखाता है।

    इक दूजे के बिना अधूरे,
    हिन्दू मुस्लिम रहते हैं।
    खुद को मिलकर के बड़े,
    गर्व से हिन्दुस्तानी कहते हैं ।
    दीवाली में अली जहां हैं,
    शब्द राम का रमजानों में आता है
    सब धर्मों की इज्ज़त करना,
    मेरा देश सिखाता है।

    आजादी में की लड़ी लड़ाई ,
    हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख ईसाई ने।
    सीने पर गोली खायीं हर,
    मजहब की तरुणाई ने ।
    आजादी का श्रेय देश में,
    हर मजहब को जाता है।
    सब धर्मों की इज्ज़त करना,
    मेरा देश सिखाता है।

    हिन्दू मस्जिद जाता है,
    मुस्लिम भी मंदिर जाते है।
    भारतवासी होने के ,
    मिलकर संबंध निभाते हैं।
    हमको एक देखकर के,
    दुश्मन भी भय खाता है
    सब धर्मों की इज्ज़त करना,
    मेरा देश सिखाता है।  
                             रचयिता
                            किशनू झा

    आज तिरंगा लहरायेगा

    आज तिरंगा लहरायेगा
    आजादी की शान।
    इसके नीचे पूरे होंगे
    दिल के सब अरमान।
    जय जय हिन्दुस्तान।
    जय जय वीर  जवान।।

    हुई गुलामी सहन नहीं तब,
    फूँक शंख आजादी का।
    अलख जगी भारत मे घर-घर,
    खून खौल गया वीरों का।
    सिर पर कफन बाँध कर निकले
    होने को बलिदान।

    आज…..।
    इस….।
    जय…..।जय….।

    वीर सावरकर ,तात्या टोपे,
    झाँसी की लक्ष्मी बाई।
    भगत सिंह आजाद वीर ने
    दुश्मन को ललकार लगाई।
    आजादी के महायज्ञ में
    हुए सभी बलिदान।।

    आज….।इस…।
    जय…।जय…।

    भारत के कोने-कोने में,
    जंग छिड़ी आजादी की।
    छोड़े घर -परिवार  रिश्ते,
    राह  चले आजदी की।
    सभी एक मंजिल के राही
    हिन्दू मुसलमान।।

    आज…..।इस…।
    जय…।जय…।

    अनमोल अपनी आजादी,
    बच्चों! तुम रखवाली करना।
    जाति धर्म का भेद भुलाकर,
    सदा एक होकर रहना।
    यही एकता देगी जग में
    भारत को पहचान।।

    आज….।इस….।
    जय….।जय….।

    पुष्पाशर्मा”कुसुम”

    वह भारत देश हमारा है


    जहाँ तिरंगा लहराता,
    मंदिर मस्जिद गुरुद्बारा है,
    वह भारत देश हमारा है ••••


    उत्तर में गिरिराज हिमालय
    दक्षिण सागर लहराते ,
    राम कृष्ण गौतम गाँधी की,
    दसों दिशा गाथा गाते ,
    अविरल बहती जिस छाती में
    माँ गंगा की धारा है ,
    वह भारत देश हमारा है!


    भेदभाव है नहीं जहाँ पर
    सब जिसको माँ कहते हैं,
    एक डोर मन बँधे जहाँ पर
    जय भारत सब कहते हैं ,
    प्रेम शाँति “गणतंत्र” हमारा
    दिया विश्व को नारा है,
    वह भारत देश हमारा है


    वेद पुराण बसे कण-कण में
    विश्व गुरु कहलाता है,
    योग ज्ञान सारी दुनियाँ को
    जो भारत सिखलाता है,
    मानवता ही सत्य धर्म है
    जो भारत सिखलाता है
    फैला है जिस देश से”नीलम”
    आज यहाँ उजियारा है,
    वह भारत देश हमारा है!!
                  नीलम सोनी
             सीतापुर,सरगुजा (छत्तीसगढ़)

    हिन्दूस्तां वतन है

    हिन्दूस्तां वतन है, अपना जहां यही है।
    यह आशियाना अपना, जन्नत से कम नहीं है।
    उत्तर में खड़ा हिमालय, रक्षा
    में रहता तत्पर।

    चरणों को धो रहा है, दक्षिण
    बसा सुधाकर।
    मलयागिरि की शीतल, समीर बह रही है।
    हिन्दू स्तां…।यह….।

    फल -फूल से लदे, तरुओं की शोभा न्यारी,
    महकी  हुई है ,प्यारी केसर की खिलती क्यारी।
    कलरव पखेरुओं का, तितली उछल रही है।
    हिन्दू स्तां….।यह…।

    अनमोल खजानों से ,वसुधा
    भरी है सारी।
    खेतों मे  बिखरा सोना, होती
    है फसलें सारी।
    ये लहलहाती फसलें, खुशियाँ लुटा रही है।
    हिन्दू स्तां …।यह…।

    मिट्टी में इसकी हम सब, पलकर बड़े हुये हैं।
    आने न आँच देंगे, ऐसा ही प्रण लिये हैं।
    मिट जायें हम वतन पर,
    तमन्ना यह रही है।

    हिन्दू स्तां वतन है, अपना जहां यही है।
    यह आशियाना अपना,
    जन्नत से कम नहीं है।

    पुष्पा शर्मा ” कुसुम’

    तिरंगे की शान पर कविता

    सिर्फ तिरंगा फहराने से,
    बढ़ेगी कैसे हमारी शान।
    जिन्होंने दी है कुर्बानियाँ,
    उनका करें सदा सम्मान।।

    फले-फूले परिवार उनके,
    जो देश के लिए कुर्बान।
    पूरा समाज शिक्षित बने,
    सबके हों पूरे अरमान।।

    प्रगति पथ पर बढ़ते रहें,
    पूरी दुनिया में पहचान।
    विज्ञान फलित होता रहे,
    मिले ज्ञान को सम्मान।।

    हक बराबर सबको मिले,
    सबके लिए ये संविधान।
    ना जाति ना वर्गभेद रहे,
    हो अधिकार एक समान।।

    मधु राजेंद्र सिंघी

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