दिखा दे अपनी मानवता- शशिकला कठोलिया

दिखा दे अपनी मानवता

लेकर कोई नहीं आया ,
जीवन की अमरता ,
क्षणभंगुर संसार में ,
दिखा दे अपनी मानवता ।

देशकाल जाति पाति की ,
दीवारों को तोड़कर ,
छुआछूत ऊंच नीच की ,
सबी विविधता को हर ,
हर इंसान के मन से ,
मिता दे विविधता,
 क्षणभंगुर संसार में ,
दिखा दे अपने मानवता ।

हंसना है तो ऐसे हंसो,
हंसे तुम्हारे साथ दिन धूल भी,                     
चलना है तो ऐसे चलो ,
कुचल ना जाए पग से फूल भी,                                
अमीर गरीब की भाव हटाकर,                               
भर दो सब में समानता ,
क्षणभंगुर संसार में ,
दिखा दे अपनी मानवता ।

क्या लेके तुम आए थे ,
क्या लेके तुम जाओगे ,
कर ले नेक काम तू बंदे ,
वरना बहुत पछताओगे ,
जीवन है अनमोल ,
त्याग से अपनी दानवता ,
क्षणभंगुर संसार में ,
दिखा दे अपनी मानवता ।

करले मानवता की पहचान ,
मत कर शक्ति पर अभिमान ,
प्रेम रस भर दे जीवन में ,
ना दिखा तू कायरता ,
क्षणभंगुर संसार में ,
दिखा दे अपनी मानवता ।

जग में सारे इंसान को ,
इंसान जान अपना लो ,
जितना ज्यादा बांट सको,
तुम बांटो अपने प्यार को ,
हर इंसान को एक कर ,
भर दो सब में समरसता ,
क्षणभंगुर संसार में ,
दिखा दे अपनी मानवता ।

श्रीमती शशिकला कठोलिया,
 शिक्षिका , अमलीडीह डोंगरगांव
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

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