मनीभाई नवरत्न के दोहे

मनीभाई नवरत्न के दोहे

1)
मित सुख दे भ्राता- पिता , सपूत भी सुख दे मित।
सुखी होती  वो नारी ,   जो सुख दे पति नित।।
2)
धन संचय कर ना साधु ,धन का नहि होती ठौर।
आज इसके पास है ,कल हो जाए किसी और।।
3)
धन की महिमा है बड़ी, धन से ही विपदा टरे।
धन नहीं आज तेरे संग ,कल को तू भूख मरे।।
4)
आगे बढ़ने की चाह में, टांग खींचे जो कोय।
आगे बढ़ लें कोई औरन और वो पीछे होय।।
5)
जो दिखे सो बिके हैं ,अजब खेल रे माया का ।
मन को देखे ना कोई, ध्यान रहे सबको काया का ।
6)
सब चाहै उड़ने आसमां में, चाहे ना कोई जमीं ।
जिस दिन पर टूटेंगे , गिरेंगे इसी जमी।
7)

तन के सुखै सुख है मन के सुख है सुख।
धन के सुखै  सुख नहि मिटे कभी ना भूख ।

8)
जस पावे तन खावै जस खावै तस गावै।
कपटी मन गावै नहि, पर के ही नित खावें ।

9)
समय जो आया सो जाएगा, समय की ना यारी ।
आज तेरे जो संग है , कल रहेगी उसकी बारी ।

10) खुदा खुदा तो सब कहे, खुदा को जाने ना कोय।
जब मन खुदा जान गया, दीन कभी ना रोय।

मनीभाई नवरत्न

यह काव्य रचना छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले के बसना ब्लाक क्षेत्र के मनीभाई नवरत्न द्वारा रचित है। अभी आप कई ब्लॉग पर लेखन कर रहे हैं। आप कविता बहार के संस्थापक और संचालक भी है । अभी आप कविता बहार पब्लिकेशन में संपादन और पृष्ठीय साजसज्जा का दायित्व भी निभा रहे हैं । हाइकु मञ्जूषा, हाइकु की सुगंध ,छत्तीसगढ़ सम्पूर्ण दर्शन , चारू चिन्मय चोका आदि पुस्तकों में रचना प्रकाशित हो चुकी हैं।

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