एक पेड़ की दो शाखाएं

एक पेड़ की दो शाखाएं

एक पेड़ की दो शाखाएं ,
एक हरी तो एक सुखी ।
एक तनी तो एक झुकी।।
ऐसे ही जीवन में दो पहलू है
कोई जश्ने चूर है तो कोई दुखी।।
जब तक होठों में प्यास है ।
तब तक कोई उदास है ।।
खिलते हैं होंठ फिर से
जब प्यास बुझी बुझी ।।
ऐसे ही ….

जब दुनिया ही गोल है ,
फिर पैसे का क्या मोल है ?
समय ही अनमोल है ,तो
क्यों है तू रुकी रुकी ।।

ऐसे ही जीवन……

मनीभाई नवरत्न

यह काव्य रचना छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले के बसना ब्लाक क्षेत्र के मनीभाई नवरत्न द्वारा रचित है। अभी आप कई ब्लॉग पर लेखन कर रहे हैं। आप कविता बहार के संस्थापक और संचालक भी है । अभी आप कविता बहार पब्लिकेशन में संपादन और पृष्ठीय साजसज्जा का दायित्व भी निभा रहे हैं । हाइकु मञ्जूषा, हाइकु की सुगंध ,छत्तीसगढ़ सम्पूर्ण दर्शन , चारू चिन्मय चोका आदि पुस्तकों में रचना प्रकाशित हो चुकी हैं।

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