फील गुड हिंदी कविता
भूख में मनुज देखो,
पेट बाँध सोता है।
जीने के लिये वह,
बेटा बेटी खोता है।
भारत महान है,
अस्सी बेईमान है।
कहुँ अब कैसे कि,
फील गुड होता है।
रोज रोज दंगे यहाँ,
रेप मर्डर होता है।
बंदुक चलाने वाले,
बन गये नेता हैै।
मंदिर दुकान है,
भटके नौजवान है।
कहुँ अब कैसे कि,
फील गुड होता है।
शेर सब शिकार होकर,
पिंजरे में रोता है।
वर्दी पहनकर,
सियार बांस होता है।
शोषित किसान है,
कुंठित बुद्विमान है।
कहुँं अब कैसे,
फील गुड होता है।
अनिल कुमार वर्मा, सेमरताल
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