घर मंदिर पर कविता
त्याग और सहयोग जहाँ हो
घर वो ही कहलाता है।
इक दूजे में प्यार बहुत हो
घर मंदिर बन जाता है।।1।।
आँगन में किलकारी गूँजे
घर बच्चों से भरा रहे।
नारी का सम्मान जहाँ हो
प्रेम और सहयोग रहे।।2।।
बड़े दिखाए स्वयं बड़प्पन
छोटे आज्ञाकारी हो।
आपस में सहयोग भाव हो
जहाँ नही लाचारी हो।।3।।
संस्कारो का मान जहाँ हो
मिलजुलकर सहयोग करें।
ईर्ष्या द्वेष नही हो मन में
घर में खुशियाँ सदा भरे।।4।।
अतिथि होता जहाँ देवतुल्य
हर जन आश्रय पाता है।
शांति और सहयोग भाव हो
घर तीरथ बन जाता है।।5।।
अपने और पराए का भी
भेद न कोई करता है।
सुख दुख में सहयोगी बनकर
भाव बंधु का रखता है।।6।।
सदाचार का पालन करते
अपना धर्म निभाते है।
सहयोग भाव हर मन मे हो
घर मंदिर कहलाते हैं।।7।।
© डॉ एन के सेठी
