ज्ञान दो वरदान दो माँ
सत्य का संधान दो।
बिंदु से भी छुद्रतम मैं
कृपा का अवदान दो।
अवगुणों को मैं समेटे
माँ पतित पातक हूँ मैं।
मोह माया से घिरा हूँ,
निपट पशु जातक हूँ मैं।
अज्ञानता मन में बसाये ।
अहम,झूठी शान हूँ मैं।
लाख मुझ में विषमताएं।
गुणी तुम अज्ञान हूँ मैं।
है तिमिर सब ओर माता,
ज्योति का आधान दो माँ।
ज्ञान दो वरदान दो माँ,
सत्य का संधान दो माँ।
कुटिल चालें चल रही हैं।
पाप पाशविक वृतियां।
प्रेम के पौधे उखाड़ें ।
घृणा पोषक शक्तियां।
सत्य के सपने सुनहरे।
झूठ विस्तृत हैं घनेरे।
पोटरी में सांप लेकर।
फैले हैं अपने सपेरे।
ज्ञानमय अमृत पिला कर,
अभय का तुम दान दो माँ।
ज्ञान दो वरदान दो माँ,
सत्य का संधान दो माँ।
चिर अहम को हरके माता
इस शिशु को तुम धरो माँ।
यह जगत पीड़ा का जंगल।
घाव मन के तुम भरो माँ।
बुद्धि दो माँ, वृत्ति दो माँ
ज्ञान का संसार दो।
मनुज बन मैं जी सकूं,
गुण का वो आधार दो।
मैं शिशु तुम माँ हो मेरी
ज्ञान स्तनपान दो
ज्ञान दो वरदान दो माँ
सत्य का संधान दो माँ।
लेखनी अविरल चले माँ,
सत्य शुद्ध विचार हों।
दीन दुखियों की कराहें
भाव के आधार हों।
लालसा न मान की हो
अपमान का कोई भय न हो।
सबके लिये सद्भावना हो
मन कभी दुखमय न हो।
हे दयामयी शरण ले लो,
सदगुणी संज्ञान दो माँ।
ज्ञान दो वरदान दो माँ
सत्य का संधान दो माँ।
सुशील शर्मा