राख विषय पर हाइकु- रमेश कुमार सोनी
1
मोक्ष ढूंढने
चला – चली की बेला
राख हो चला ।।
2
राख का डर
जिंदगी ना रुकती
मौत है सखी ।।
3
पानी जिंदगी
अग्नि , राख की सखी
नहीं निभती ।।
4
राख बैठे हैं
भूखे – प्यासे बेचारे
शमशान गाँव ।।
5
राख तौलते
सब राख के भाव
तेरा ना मेरा ।।
6
राख हो जाने
जिंदगी का श्रृंगार
चार दिन का ।।
7
राख में उगे
आशा के दूब हरे
श्रम का भाग्य ।।