हम तुम दोनों मिल जाएँ

हम तुम दोनों मिल जाएँ

शादी
shadi

मुक्तक (१६मात्रिक) हम-तुम

हम तुम मिल नव साज सजाएँ,
आओ अपना देश बनाएँ।
अधिकारों की होड़ छोड़ दें,
कर्तव्यों की होड़ लगाएँ।

हम तुम मिलें समाज सुधारें,
रीत प्रीत के गीत बघारें।
छोड़ कुरीति कुचालें सारी,
आओ नया समाज सँवारें।

हम तुम मिल नवरस में गाएँ,
गीत नए नव पौध लगाएँ।
ढहते भले पुराने बरगद,
हम तुम मिल नव बाग लगाएँ।

मंदिर मसजिद से भी पहले,
मानवता की बातें कहलें।
मुद्दों के संगत क्यों भटके,
हम तुम मिलें भोर से टहलें।

हम तुम सागर सरिता जैसे,
जल में जल मिलता है वैसे।
स्वच्छ रखे जलीय स्रोतों को,
वरना जग जीवेगा कैसे।

देश धर्म दोनो अवलंबन,
मानव हित में बने सम्बलन।
झगड़े टंटे तभी मिटेंगे,
आओ मिल हो जायँ निबंधन।

प्राकृत का संसार निभाएँ,
सृष्टि सार संसार चलाएँ।
लेकिन तभी सर्व संभव हो,
जब हम तुम दोनो मिल जाएँ।
. _______
बाबू लाल शर्मा, “बौहरा” विज्ञ

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *