हे महिषासुर मर्दिनी

हे महिषासुर मर्दिनी

हे महिषासुर मर्दिनी ! 
आज फिर धरा पर आना होगा , 
नारी के मान , नारी की गरिमा का
वसन फिर बचाना होगा ,
छिपे बैठे है असुर कितने
मच्छरों सदृश मौकापरस्त कितने ,
ढूंढ-ढूंढ कर उन दुश्शासनों को
मिट्टी में मिलाना होगा , 
हे महिषासुर मर्दिनी ! 
आज फिर …………
हे नारी ! समय नही अब रोने का
इतिहास गवाह है और नही अब खोने का, 
बेशक स्नेह – त्याग की प्रतिमूर्ति तुम
वक्त पड़े तो रूप विकराल धरती तुम , 
हे मां कालिके ! हे मां चंडिके ! 
हे मां शारदे ! हे मां भद्रिके ! 
आओ माते कर के सिंह की सवारी
हे आदिशक्ति ! रग-रग बसों , पड़ूं दुर्जनों पे भारी , 
वजुद निज का पहचानों हे जननी !
निज आन की लड़ाई तुमको ही लड़नी ,
संभल जाओ रे तुच्छ पशुता के बंदे , 
निश्चित ही अब दूर नही तेरे काल के फंदे, 
एक-एक नारी अब अवतार धरेगी 
चुन-चुन कर असुर धड़ अलग  करेगी, 
तेरी आसुरी दुनिया में तब हाहाकार  मच जायेगा
भाल तेरा जब तुझको ही चढ़ाया जायेगा ,
तुम साथ हो न , हे  मां भवानी ! 
गिन-गिन कर सबक सिखाना होगा ,
जिन निकृष्टों ने  मां – भगिनी का अपमान किया
उन दृष्टि पतितों को भस्मिभूत कराना होगा ,
हे महिषासुर मर्दिनी ! 
आज फिर धरा पर आना होगा ।

जितेश्वरी साहू सचेता
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

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