हर शाम सुबह होने का देती है पैगाम।

हर शाम सुबह होने का देती है पैगाम

हर शाम सुबह होने का देती है पैगाम।
उम्मीदें रखो दिल पर छोड़ो ना लगाम।

आंधी आ जाए ,घरोंदे टूट जाए।
आंधी थमने दो, जो हुआ रहने दो।
फिर से बनाओ अपना मुकाम ।।
हर शाम सुबह होने का देती है पैगाम।

माथे पे पसीना आकर सुख जाए ।
मेहनत ऐसी कि आलस झुक जाए ।
हाथ चले तब तक जब मिले अंजाम ।
हर शाम सुबह होने का देती है पैगाम।

नई किरणें लिए सूर्य का धूप
खिलते जाएंगे इसमें कई रूप।
हर रूप का होगा नया नाम।।
हर शाम सुबह होने का देती है पैगाम।

मनीभाई नवरत्न

यह काव्य रचना छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले के बसना ब्लाक क्षेत्र के मनीभाई नवरत्न द्वारा रचित है। अभी आप कई ब्लॉग पर लेखन कर रहे हैं। आप कविता बहार के संस्थापक और संचालक भी है । अभी आप कविता बहार पब्लिकेशन में संपादन और पृष्ठीय साजसज्जा का दायित्व भी निभा रहे हैं । हाइकु मञ्जूषा, हाइकु की सुगंध ,छत्तीसगढ़ सम्पूर्ण दर्शन , चारू चिन्मय चोका आदि पुस्तकों में रचना प्रकाशित हो चुकी हैं।

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