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हरे यादों के पन्ने-सुकमोती चौहान “रुचि”

हरे यादों के पन्ने

किया याद है कौन , हिचकियाँ मुझको आई ।
गुजरे अरसे बाद , कसक हिचकोले खाई ।
जिल्द पुराने झाड़ , हरे यादों के पन्ने ।
अधर खिला मुस्कान , नेत्र जल मीठे गन्ने ।
कुछ यादें जीवन के अमर , अनायास ही उभरते ।
निराकार अव्यक्त ये , मानस पट पर विचरते ।

आया बचपन याद , सहेली मिली पुरानी ।
बड़े दिनों के बाद , हुई बातें रूहानी ।
इमली जामुन बेर , आम पर वो चढ़ जाना ।
फुगड़ी हो या दौड़ , शर्त में तर्क लगाना ।
तैराकी तालाब की ,सारी बातें याद में ।
फिर से बचपन आ गया , दोनों के संवाद में ।

मीठी सारी याद , सँजोये रखती मन में ।
बिखेरते सतरंग , यही मेरे जीवन में ।
अब भी हँसी फुँहार , फुटे जीवन में मेरे ।
जब जब छिड़े प्रसंग , उमड़ते भाव घनेरे ।
जीवन की थाती यही , अनुभव की पाती यही ।
योदों की बारात में , कुछ बातें हैं अनकही ।



*सुकमोती चौहान “रुचि”*
*बिछिया,महासमुन्द*

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