नमन करूँ मैं- बाबूलाल शर्मा

नमन करूँ मैं- बाबूलाल शर्मा

नमन
. ( 16,14)

नमन करूँ मैं निज जननी को,
जिसने जीवन दान दिया।
वंदन करूँ जनक को जिसने
जीवन का अरमान दिया।

नमन करूँ भ्राता भगिनी सब ,
संगत रख कर स्नेह दिया।
गुरु को नमन दैव से पहले
वाचन लेखन ज्ञान दिया।
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मानुष तन है दैव दुर्लभम,
अनुपम यही सौगात है।
दैव,धरा,गुरु,भ्राता,भगिनी,
परिजन पिता या मात है।

गंगा गैया,गिरि, गणेश, गज
गायन गगन का गात है।
बमभोले,बाबा, बजरंगी,
ब्रह्मा, या बिष्नु, बात है।
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भानु भवानी,भगवन भक्तों,
भ्रात भृत्य को नमन करूँ।
बाग बगीचे वन उपवन जल,
सागर, थल ,को चमन करूँ।

चन्द्र, सितारे,भिन्न पिण्ड,तरु,
पशु,खग,दुख का शमन करूँ।
जीव जगत,निर्जीव सभी सह,
राष्ट्र शत्रु का दमन करूँ।
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नमन करूँ सब भूले भटके
जन गण मन संविधान को।
जय जवान,अर,जय किसान के,
मचलते मानस मान को।
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नमन करूँ कण कण में बसते,
उस दैवीय अभिमान को।
अपने और सभी के गौरव
मेरे निज स्व अभिमान को।
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बाबू लाल शर्मा “बौहरा”

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