इस फूल में कांटा है

इस फूल में कांटा है ,
सौदा ए दिल घाटा है ।
बाहर से रौनक लगे
अंदर से सन्नाटा है।।
चुमना चाहो इन्हें , तो ये चुभेेंगे।
हर बात पे तुम्हें , ये तौलेंगे ।
इनके तेवर है लंबे …..
हम भले ही नाटा हैं।
सौदा ना कर घाटा है ।
इस फूल……..
कोरे कागज पे, कोई भी लिखता है ।
स्याह की बूंद भी,ज्यादा दिखता है।
कागज सा हमें फाड़के
मारा किसी ने चाटा है ।
सौदा ना कर घाटा है ।
इस फूल……..
आज तक हमने, एक चुना था ।
संग जीवन के, सपना बुना था ।
पर वह भले ठहरे…
हमको जग में बांटा है ।
सौदा ना कर घाटा है।
इस फूल…….

©मनी भाई,बसना, महासमुंद, छत्तीसगढ़

मनीभाई नवरत्न

यह काव्य रचना छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले के बसना ब्लाक क्षेत्र के मनीभाई नवरत्न द्वारा रचित है। अभी आप कई ब्लॉग पर लेखन कर रहे हैं। आप कविता बहार के संस्थापक और संचालक भी है । अभी आप कविता बहार पब्लिकेशन में संपादन और पृष्ठीय साजसज्जा का दायित्व भी निभा रहे हैं । हाइकु मञ्जूषा, हाइकु की सुगंध ,छत्तीसगढ़ सम्पूर्ण दर्शन , चारू चिन्मय चोका आदि पुस्तकों में रचना प्रकाशित हो चुकी हैं।

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