गणपति को विघ्ननाशक, बुद्धिदाता माना जाता है। कोई भी कार्य ठीक ढंग से सम्पन्न करने के लिए उसके प्रारम्भ में गणपति का पूजन किया जाता है।
भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी का दिन “गणेश चतुर्थी” के नाम से जाना जाता हैं। इसे “विनायक चतुर्थी” भी कहते हैं । महाराष्ट्र में यह उत्सव सर्वाधिक लोक प्रिय हैं। घर-घर में लोग गणपति की मूर्ति लाकर उसकी पूजा करते हैं।
जय गणपति जय जय गणनायक
जय गणपति जय जय गणनायक
विघ्न विनाशक शुभ फलदायक
शंकर सुवन भवानी नंदन
हे गणनायक ! शुभ अभिवंदन
1
जो भी सुमिरे सांझ सकारे
उसके तुमने काज सँवारे
पान पुष्प लड्डू ही भायें
ये सब प्रात: काल चढ़ाएं
मोदक भोग लगायें चन्दन
हे गणनायक ! शुभ अभिवंदन
2
अंधों को जो दृष्टि दिलाए
कोढ़ी सुन्दर काया पाए
बाँझन को संतान का सुख हो
दुखियों से ओझल सब दुख हो
ऐसे लम्बोदर का वंदन
हे गणनायक ! शुभ अभिवंदन
3
दारा जिनकी ऋद्धि सिद्धि
बुद्धि विवेक के जो हैं अधिपति
लाभ और शुभ पुत्र रतन है
एक दन्त भुज चार मगन है
माथे पर सिंदूर का लेपन
हे गणनायक ! शुभ अभिवंदन
4
जो कपीथ जम्बू फल खाए
मूसा वाहन जिसको भाये
कार्तिकेय हैं भाई जिनके
जो विघ्नेश जगत दुख हरते
देवों के हैं देव गजानन
हे गणनायक ! शुभ अभिवंदन
5
दूब और सिंदूर अर्पित हो
लड्डू मेवा से जो मुदित हो
विघ्नेश्वर का चरण कमल हो
शीश झुकाते सब मंगल हो
अष्ट सिद्धि नव निधि का मज्जन
हे गणनायक ! शुभ अभिवंदन
रमेश
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