कलम के सिपाही -मुंशी प्रेमचंद जी

कलम के सिपाही -मुंशी प्रेमचंद जी

मुंशी प्रेमचंद


मेरे मूर्धन्य मुंशी प्रेमचंद जी
थे बड़े ” कलम के सिपाही “
अब…….”भूतो न भविष्यति”
हे ! मेरे जन जन के हमराही !

उपन्यास सम्राट व कथाकार
जनमानस के ये साहित्यकार,
गरीब-गुरबों की पीड़ा लिखते
थे अन्नदाता के तुम पैरोकार !

समस्याएँ,,,,संवेदनाओं का
करते थे मार्मिक शब्दांकन,
‘झंकृत और चमत्कृत’ रचना
होते भावविभोर चित्रांकन !

ये रूढ़िवादी परम्पराओं का
करते थे गज़ब..का विवेचन ,
कुरूतियों से निकालने का
करते चिंतन और उन्मोचन !

इनकी कालजयी रचनाओं से
गुंजित हो उठा साहित्य गगन,
जन्मदिन पर धनपतराय को
मेरा अनेकोनेक सादर नमन !

— *राजकुमार मसखरे*

कविता बहार

"कविता बहार" हिंदी कविता का लिखित संग्रह [ Collection of Hindi poems] है। जिसे भावी पीढ़ियों के लिए अमूल्य निधि के रूप में संजोया जा रहा है। कवियों के नाम, प्रतिष्ठा बनाये रखने के लिए कविता बहार प्रतिबद्ध है।

Leave a Reply