कलयुग के पापी
भूखी नजर कलयुग के पापी
असंख्य आँखों में आँसू ले आई!
लालची नजर *सूर्पनखा* की
इतिहास में नाक कटा आई!!
मैली नजर *जयंत काग* के
नयन एक ही बच पाई!!!
बिना नजर के *सूरदास* को
*कृष्ण-लीला* पड़ी दिखाई!!
नजर में श्रद्धा *मीरा* भरकर
तभी गले विष उतार पाई!!
तीसरी नजर *शिवशंम्भु* की
*कामदेव* को पड़ी न दिखाई!!
तकती आँखें *शबरी* रखकर
युगों युगों तक नजर बिछाई!!
खुली नजर *अहिल्या* की
जब धूलि *राम* के पग पाई!!
नजर प्रेम की *राधा* रखी
संग नाम *कृष्णा* जोड़ लाई!!
रखिये नजर *सुमित्रानंदन* सी,
जो *सीता* के सिर्फ पायल पहचान पाई!
– – राजेश पान्डेय *वत्स*
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