कलयुग के पापी -राजेश पान्डेय वत्स

कलयुग के पापी

HINDI KAVITA || हिंदी कविता
HINDI KAVITA || हिंदी कविता

भूखी नजर कलयुग के पापी
असंख्य आँखों में आँसू ले आई!

लालची नजर *सूर्पनखा* की
इतिहास में नाक कटा आई!!

मैली नजर *जयंत काग* के
नयन एक ही बच पाई!!!

बिना नजर के *सूरदास* को
*कृष्ण-लीला* पड़ी दिखाई!!

नजर में श्रद्धा *मीरा* भरकर
तभी गले विष उतार पाई!!

तीसरी नजर *शिवशंम्भु* की
*कामदेव* को पड़ी न दिखाई!!

तकती आँखें *शबरी* रखकर
युगों युगों तक नजर बिछाई!!

खुली नजर *अहिल्या* की
जब धूलि *राम* के पग पाई!!

नजर प्रेम की *राधा* रखी
संग नाम *कृष्णा* जोड़ लाई!!

रखिये नजर *सुमित्रानंदन* सी,
जो *सीता* के सिर्फ पायल पहचान पाई!

– – राजेश पान्डेय *वत्स*

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