कहाँ गई कागज की कश्ती – प्यारेलाल साहू
कहाँ गई कागज की कश्ती।
कहाँ गई बचपन की मस्ती।।
बचपन कितना था मस्ताना।
कभी रूठना और मनाना।।
साथ साथ खेला करते थे।
आपस में फिर हम लड़ते थे।।
साथ साथ पढ़ने जाते थे।
बाँट बाँट कर हम खाते थे।।
छुट्टी के दिन मौज मनाते।
अमराई से आम चुराते।।
कभी पकड़ में जब आते थे।
खूब डाँट फिर हम खाते थे।।
माँ कहती थी मुन्ना राजा।
पिता बजा देते थे बाजा।।
कभी घूमने मेला जाते।
चाट पकौड़े खूब उड़ाते।।
बचपन की जब याद सताती।
मन को ‘प्यारे’ खूब रुलाती।।
*प्यारेलाल साहू*