लाभ – हानि पर कविता – मनीभाई नवरत्न

जल पर कविता
HINDI KAVITA || हिंदी कविता

लाभ – हानि पर कविता – मनीभाई नवरत्न

कितने लाभ और कितने हानि-मनीभाई नवरत्न

बादल से गिरती
अमृत बनकर पानी।
प्यास फिर बुझाती
अपनी धरती रानी ।

फुटते कली शाखों पर
बगिया बनती सुहानी ।
आती फिर धरा में
नित नूतन जवानी ।

छम छम करती
सुनो बारिश की जुबानी ।
दिल छू कर गुजरे
ध्वनि ऐसी रूहानी ।

घनघोर घटा चीरती
बिजली की रवानी।
मूरत सी उभर आए
जैसे काली भवानी ।।

बड़ी मदहोश होके
आए हो इस बरस दीवानी ।
यह तो वक्त ही बताएगा
कितने लाभ और कितने हानि?

manibhainavratna
manibhai navratna

-मनीभाई नवरत्न

मनीभाई नवरत्न

यह काव्य रचना छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले के बसना ब्लाक क्षेत्र के मनीभाई नवरत्न द्वारा रचित है। अभी आप कई ब्लॉग पर लेखन कर रहे हैं। आप कविता बहार के संस्थापक और संचालक भी है । अभी आप कविता बहार पब्लिकेशन में संपादन और पृष्ठीय साजसज्जा का दायित्व भी निभा रहे हैं । हाइकु मञ्जूषा, हाइकु की सुगंध ,छत्तीसगढ़ सम्पूर्ण दर्शन , चारू चिन्मय चोका आदि पुस्तकों में रचना प्रकाशित हो चुकी हैं।

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