कूट अकबर के|तेजल छंद (वाचिक) – बाबूलाल शर्मा
वर्णिक- तगण मगण, यगण यगण तगण गुरु
मापनी- २२१ २२२, १२२ १२२ २२१ २
. 🌛 *…कूट अकबर के* 🌜
. *१*
माने नहीं राणा, हठीला थकित हो टोडर गया।
हे शाह माना वह, नहीं वह हठी है राणा नया।
अकबर हुआ कुंठित, विकारी निराशा मन में बहे।
मेरा महा शासन, उदयपुर खटकता भारी रहे।
. *२*
नवरत्न बुलवाए, सभी से सुलह की बातें करे।
अब कौन राणा को, मनाए मुगलिया पीड़ा हरे।
मंत्री सभी बोले, वहाँ भेजिए अब भगवंत को।
रजपूत हैं यह भी, सगुण है मनाएँ कुलवंत को।
. *३*
ये कूट अकबर के, कुटिलता दिखावे बस थे सखे।
राणा बना काँटा, निकाले समर को सज्जित रखे।
रजपूत राणा भी, सनेही सुजन सब यह जानते।
भट भील सेना जन, जरूरी समर है तय मानते।
बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
सिकन्दरा, दौसा, राजस्थान