देख रहा हूँ कल – मनीभाई नवरत्न

देख रहा हूँ कल

सोते हुए जो “कल” को मैंने देखा था।
वह महज सपना था ।
आज इस पल फिर से
देख रहा हूं “कल” मैं जागते हुए ।
हां !यही अपना रहेगा।
इस पल साथ हैं मेरे तीन दोस्त
“जोश जुनून और जवानी “।
और इन्ही के संग मुझे गढ़नी है
नित नूतन कहानी ।
कल कुछ बोलता नासमझ से
निशानी थी बालपन की।
आज मेरी वाणी में धार है
ला सकती है तूफान क्रांति की ।
फिर भी गंभीर हूं मैं अब हर बात पे।
चाहे खेलता कोई अपनी जज्बात से ।
मुझे मालूम है कि
जिस दिन भी टूटेगी धैर्य का धागा ।
पूरा का पूरा आमूलचूल परिवर्तन
होकर ही रहेगा इस दुनिया में ।
क्योंकि आज इस पल फिर से
देख रहा हूं “कल” मैं जागते हुए।

. मनीभाई नवरत्न

मनीभाई नवरत्न

यह काव्य रचना छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले के बसना ब्लाक क्षेत्र के मनीभाई नवरत्न द्वारा रचित है। अभी आप कई ब्लॉग पर लेखन कर रहे हैं। आप कविता बहार के संस्थापक और संचालक भी है । अभी आप कविता बहार पब्लिकेशन में संपादन और पृष्ठीय साजसज्जा का दायित्व भी निभा रहे हैं । हाइकु मञ्जूषा, हाइकु की सुगंध ,छत्तीसगढ़ सम्पूर्ण दर्शन , चारू चिन्मय चोका आदि पुस्तकों में रचना प्रकाशित हो चुकी हैं।

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