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देख रहा हूँ कल – मनीभाई नवरत्न

देख रहा हूँ कल

सोते हुए जो “कल” को मैंने देखा था।
वह महज सपना था ।
आज इस पल फिर से
देख रहा हूं “कल” मैं जागते हुए ।
हां !यही अपना रहेगा।
इस पल साथ हैं मेरे तीन दोस्त
“जोश जुनून और जवानी “।
और इन्ही के संग मुझे गढ़नी है
नित नूतन कहानी ।
कल कुछ बोलता नासमझ से
निशानी थी बालपन की।
आज मेरी वाणी में धार है
ला सकती है तूफान क्रांति की ।
फिर भी गंभीर हूं मैं अब हर बात पे।
चाहे खेलता कोई अपनी जज्बात से ।
मुझे मालूम है कि
जिस दिन भी टूटेगी धैर्य का धागा ।
पूरा का पूरा आमूलचूल परिवर्तन
होकर ही रहेगा इस दुनिया में ।
क्योंकि आज इस पल फिर से
देख रहा हूं “कल” मैं जागते हुए।

. मनीभाई नवरत्न

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