ननपन के सुरता (छत्तीसगढ़ी कविता)
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रचनाकार-महदीप जंघेल
ग्राम-खमतराई,खैरागढ़
जिला- राजनांदगांव(छ.ग)
विधा-छत्तीसगढ़ी कविता
पहली के बात, मोर मन ल सुहाथे।
ननपन के सुरता मोला अब्बड़ आथे।।
होत बिहनिया अंगाकर रोटी ल,
खाय बर अभर जावन।
कमती खा के घलो,
दाई के मया अउ
दुलार ले अघा जावन।।
दूध दही मही अउ घीव घलो,
जम के खावन।
दिन भर खेलकूद के ,
सब्बो ल पचावन।।
तिहार के ढिलबरा कोचई कढ़ी,
मोला गजब सुहाथे।
ननपन के सुरता मोला अब्बड़ आथे।।
स्कूल जावत जावत,
हमन बिही बारी म खुसरन।
चोरी के बिही खाके,
गोल्लर कस भुकरन।।
भात खाय के छुट्टी में,
अमली बोइर गिराय ल जावन।
देरी होय पर ले ,
गुरूजी के मार गारी घलो खावन।।
चना,लखोड़ी,राहर खेत में
जाती खानी घुस जावन,
बटरा ल आवत खानी खावन।।
ददा के गारी घलो मोला,
जलेबी कस मिठाथे।
ननपन के सुरता मोला अब्बड़ आथे।।
मंझनी मंझना झांझ झोला में,
आमा बगइचा, कोती जावन।
पक्का पक्का आमा चोहक के,
संझा बेरा आवन।।
मन खुश राहय, त दिन भर इतरावन,
लम्हरी लम्हरी खीरा के
बारी में कूद जावन।।
डोकरी दाई के खिसियई घलो
काहेक मन ल मोर भाथे।
ननपन के सुरता मोला अब्बड़ आथे।।
रुपिया दू रुपिया धरके,
मेला मड़ई जावन।
ढेलवा चक्का झुलके,
कुशियार खात आवन।।
तिहार बार जब आवय,
त मन भर के मनावन।
चीला बरा सोंहारी रोटी ल,
पेट फूटत ले खावन।।
सुरता करके मन मोर,सुघ्घर गीत गाथे
ननपन के सुरता मोला अब्बड़ आथे।।
नदिया तरिया बन जंगल,
डोंगरी पहाड़ी ल घूमे जावन।
नरवा तरिया के पानी अटावय,
मछरी धरके आवन।।
धान के दिन म होत बिहनिया ,
सिला बीने बर जावन।
मिंज कूट के उत्ताधुर्रा,
मुर्रा लाडू खावन।।
भौरा बांटी रेस टिप,
साँझ मुंधियार ले खेलन।
दाई ददा के गारी मार ल
अशीष समझ के झेलन।।
लइकापन के जिनगी के ,
मोला बिकट भाथे।
ननपन के सुरता मोला अब्बड़ आथे।।
न चिंता ,न फिकर,
न टेंशन कोनो बात के।
खेलकूद अउ घूम फिर के,
आवन हमन रात के।।
अइसन जिनगी अब कोनो ल,
कहाँ ले मिल पाही।
हरहर कटकट हाय परान म,
जिनगी गुजर जाही।
संगी जहुँरिया संग खेले घूमे में,
मोर मन खुश हो जाथे।
ननपन के सुरता मोला अब्बड़ आथे।।
ननपन के ……………….
🌹महदीप जंघेल
खमतराई,खैरागढ़