बाल-दिवस पर कविता / पं.जवाहरलाल नेहरू की जयंती पर कविता

बालवृंद के प्रिय चाचा नेहरू ने स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री होने के साथ-साथ एक स्नेहशील व्यक्तित्व के रूप में भी ख्याति पाई। उन्हीं का जन्म दिवस प्रति वर्ष 14 नवम्बर को बाल- -दिवस के रूप में मनाया जाता है। आ गया बच्चों का त्योहार • विनोदचंद्र पांडेय ‘विनोद’ सभी में छाई नयी उमंग, खुशी … Read more

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बाल-दिवस पर कविता

आ गया बच्चों का त्योहार विनोदचंद्र पांडेय ‘विनोद’ सभी में छाई नयी उमंग, खुशी की उठने लगी तरंग, हो रहे हम आनन्द-विभोर, समाया मन में हर्ष अपार ! आ गया बच्चों का त्योहार ! करें चाचा नेहरू की याद, जिन्होंने किया देश आजाद, बढ़ाया हम सबका, सम्मान, शांति की देकर नयी पुकार । आ गया … Read more

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विश्व बाल दिवस पर कविता

बाल दिवस पर कविता

विश्व बाल दिवस पर दोहा:- बाल दिवस पर विश्व में,हों जलसे भरपूर!बच्चों का अधिकार है,बचपन क्यों हो दूर!!१ कवि , ऐसा साहित्य रच,बचपन हो साकार!हर बालक को मिल सके,मूलभूत अधिकार!!२ बाल श्रमिक,भिक्षुक बने,बँधुआ सम मजदूर!उनके हक की बात हो,जो बालक मजबूर!! ३ बाबूलाल शर्मा अलबेला बचपन पर हास्य कविता मेरा बचपन बड़ा निराला,कुचमादों का डेरा … Read more

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राजकिशोर धिरही के बेहतरीन बाल कवितायेँ

बाल कविता

बाल दिवस पर बेहतरीन बाल कवितायेँ राजकिशोर धिरही के द्वारा प्रस्तुत किये जा रहे हैं जो आपको बेहद पसंद आयेगी.

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बाल भिक्षुक -आशीष कुमार

aashis kumar

प्रस्तुत हिंदी कविता का शीर्षक “बाल भिक्षुक” है जोकि आशीष कुमार मोहनिया, कैमुर, बिहार की रचना है. इसे वर्तमान समाज में दीन हीन अनाथ बच्चों की दयनीय स्थिति को ध्यान में रखकर लिखा गया है जिनका जीवन बसर आज भी मंदिर की सीढ़ियों पर या फिर हाट बाजार में भीख मांग कर होता है.

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बाल मजदूर पर कविता (लावणी छंद मुक्तक)

बाल मजदूरी

बाल मजदूर पर कविता (लावणी छंद मुक्तक) राज, समाज, परायों अपनों, के कर्मो के मारे हैं!घर परिवार से हुये किनारे, फिरते मारे मारे हैं!पेट की आग बुझाने निकले, देखो तो ये दीवाने!बाल भ्रमित मजदूर बेचारे,हार हारकर नित हारे!__यह भाग्य दोष या कर्म लिखे,. ऐसी कोई बात नहीं!यह विधना की दी गई हमको,कोई नव सौगात नहीं!मानव … Read more

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ननपन के सुरता (छत्तीसगढ़ी कविता)

ननपन के सुरता (छत्तीसगढ़ी कविता) ➖➖➖➖➖➖रचनाकार-महदीप जंघेलग्राम-खमतराई,खैरागढ़जिला- राजनांदगांव(छ.ग)विधा-छत्तीसगढ़ी कविता पहली के बात, मोर मन ल सुहाथे।ननपन के सुरता मोला अब्बड़ आथे।। होत बिहनिया अंगाकर रोटी ल,खाय बर अभर जावन।कमती खा के घलो,दाई के मया अउदुलार ले अघा जावन।।दूध दही मही अउ घीव घलो,जम के खावन।दिन भर खेलकूद के ,सब्बो ल पचावन।।तिहार के ढिलबरा कोचई कढ़ी,मोला … Read more

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अल्हड़ बचपन -मनीभाई नवरत्न (तांका विधा)

बचपन को आधार मानकर लिखी गई मनीभाई नवरत्न की तांका आप के समक्ष प्रस्तुत

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आओं खेलें सब खेल

आओं खेलें सब खेल आओं खेलें सब खेल ।बन जाओ सब रेल।छुक छुक करते जाओ ।सवारी लेते जाओ ।कोई छुट  ना जाए ।हमसे रूठ ना जाए ।सबको ले जाना जरूरी ।तय करनी लम्बी दूरी ।सबको मंजिल पहुंचायेंगे ।घुम फिरकर घर आयेंगे । मनीभाई नवरत्न

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