विश्व बाल दिवस पर कविता

बाल दिवस पर कविता

विश्व बाल दिवस पर दोहा:-

बाल दिवस पर विश्व में,
हों जलसे भरपूर!
बच्चों का अधिकार है,
बचपन क्यों हो दूर!!१


कवि , ऐसा साहित्य रच,
बचपन हो साकार!
हर बालक को मिल सके,
मूलभूत अधिकार!!२


बाल श्रमिक,भिक्षुक बने,
बँधुआ सम मजदूर!
उनके हक की बात हो,
जो बालक मजबूर!! ३

बाबूलाल शर्मा

अलबेला बचपन पर हास्य कविता

मेरा बचपन बड़ा निराला,कुचमादों का डेरा था!
अंतरमन में भरा उजाला,बाहर सघन अँधेरा था!


खेतों की पगडँडियाँ मेरे,जोगिँग वाली राहें थी!
हरे घास की बाँध गठरिया,हरियाली की बाँहें थी!
चलता रहता में अनजाना,माँ बापू का पहरा था!
मेरा बचपन बड़ा निराला,कुचमादों का डेरा था!!…….!!(१)

गाय भैंस बहुतेरी मेरे,बकरी बहुत सयानी थी!
खेतों की मैड़ों पर चरकर,बनती सबकी नानी थी!
चरवाहे की नजरें चूकी,दिन में घना अँधेरा था!
मेरा बचपन बड़ा निराला,कुचमादों का डेरा था!!……..!!(२)  

साथी ग्वाले सारे मेरे, ‘झुरनी’ सदा खेलते थे!
गहरी ‘नाडी’ भरी नीर से,मिलकर बहुत तैरते थे!
चिकनी मिट्टी का उबटन था,मुखड़ा बना सुनहरा था!
मेरा बचपन बड़ा निराला,कुचमादों का डेरा था!!…….!!(३)

मोरपंख की खातिर सारे,बाड़ा बाड़ा हेर लिया!
तब जाकर पंखों का बंडल,घर में मैनें जमा किया!
एक रुपये में बेचे सारे,हरख उठा मन मेरा था!
मेरा बचपन बड़ा निराला,कुचमादों का डेरा था!!……!!(४)

‘बन्नो’ की बकरी को दुहकर, हम छुप जाते खेतों में!
डाल फिटकरी बहुत राँधते,और खेलते रेतों में!
‘कमली- काकी’ देय ‘औलमा’,दूध चुराया मेरा था!
मेरा बचपन बड़ा निराला,कुचमादों का डेरा था!!……!!.(५)  

भवानीसिंह राठौड़ ‘भावुक’
टापरवाड़ा!!

अच्छा था बचपन मेरा

कहाँ फँस गए
जिम्मेदारियों के दलदल में
होकर जवान
इससे तो अच्छा था
बचपन मेरा

न कोई दिखावा
न कोई बहाना
सब कुछ अपना ही अपना
न मेरा
न तेरा
इससे तो अच्छा था
बचपन मेरा

सब कुछ मिल जाता था
छोटी सी जिद्द से
रोकर आँसू बहाने से
अब तो
बहाना पड़ता है पसीना
शाम हो या सवेरा
इससे तो अच्छा था
बचपन मेरा

सुबह खेलते, खेलते शाम
न कोई चिंता
न कोई काम
हर एक का प्यारा
हर कोई था प्यारा
पर अब
रिश्ते नाते भूल कर
पैसे कमाने में
बीत रहा जीवन तेरा
इससे तो अच्छा था
बचपन मेरा

बलबीर सिंह वर्मा “वागीश”
गॉंव – रिसालियाखेड़ा
जिला – सिरसा (हरियाणा)

नई सदी का बचपन

न मिट्टी के खिलौनें,
न वो पारम्परिक खेल।
जहाँ पकड़म-पकड़ाई, छुपम-छुपाई
चोर-सिपाही, बच्चों की रेल।
अब न दादी के हाथ का मक्खन
न नानी का वो दही-रोटा,
राजा-रानी की कहानियाँ
जो सुनाती थी दादी-नानी
अब बन कर रह गई
एक कहानी।


स्कूल से सीधा पीपल पर जाना
घंटो खेल खेलना और बतियाना
मित्र मण्डली सँग घूमना
वो बारिश में नहाना
वो बच्चों का बचपन
और बचपन की मस्ती
न जाने कहाँ खो गई
विज्ञान की इस नई सदी में
शायद मोबाइल और कंप्यूटर
के भेंट चढ़ गई।

बलबीर सिंह वर्मा “वागीश”
गॉंव – रिसालियाखेड़ा
जिला – सिरसा (हरियाणा)


मिट्टी जैसा होता है बचपन


मिट्टी जैसा होता है बचपन
जैसे ढालो ढल जाए
कूट-पीट कर जैसा चाहो
ये वैसा ही उभर आए!

जल कर सोना कुंदन होता
ऐसे ही बचपन कि कहानी
जितना तपाए कुम्हार बर्तन को
वो पक्का बनता उतना ही !!

नवीन विचारों का प्रभाव
ऐसा ही होता बचपन पर
नीर पड़े जब माटी पर
नव रूप मिले उसको नित पल !!!

पक जाए बचपन बने जवानी
जैसे तपे माटी सुहानी
मिले गुण अब तक जो प्राणी
वही फलेंगे पूरी जवानी !!!

कुट ले पिट ले ऐ माटी तू
बाद में न कहना कुम्हार से
‘मन’ तो थी बावरी बाबा
तुम तो ‘मन’ को समझाते !!

मंजु ‘मन’

चाचा फिर तुम आओ ना

चाचा नेहरु न्यारे थे
हम बच्चों के प्यारे थे
चाचा फिर तुम आओ ना
हमको गले लगाओ ना

दूर जहां तुम जाओगे
बच्चों से मिल आओगे
हमको साथ धुमाओ ना
बच्चों से मिलवाओ ना,

गुब्बारे हम टांगेंगे
केक सभी हम काटेंगे
नवम्बर चौदह आओ ना
बाल दिवस मनवाओ ना,

चाचा नेहरु सबके हो
प्यार दुलार के पक्के हो
स्वर्ग हमें दे जाओ ना
प्यार हमें कर जाओ ना,

तुम बच्चों में बच्चे हो
अपने मन के सच्चे हो
आशीषित कर जाओ ना
हम पर प्यार लुटाओ ना,

जन्म मुबारक तुमको हो
हैप्पी हैप्पी बड्डे हो
बांट मिठाई खाओ ना
खुशियां मिल मनाओ ना।

रचनाकार –रामबृक्ष बहादुरपुरी अम्बेडकरनगर यू पी

बच्चे है कल का भविष्य

बच्चे होते मन के सच्चे,

है भविष्य के तारे,

पढ़ते – लिखते – खेलते रहे,

बने देश के सितारें |

अच्छे – अच्छे पाठ इन्हे,

है सिखाना हमे इन्हें,

आसमा के तारो को,

छुने का सपना इन्हे दिखाना हैं |

प्रगति के मार्ग पर इन्हें बढ़ाना हैं,

देश का भविष्य बदलना हैं,

बच्चों को सजा सवार के,

स्कुल हमे भेजना हैं|

आज के बच्चे को कल का,

देश का भविष्य बनाना हैं |

जब मैं छोटा था – मनीभाई नवरत्न

जब मैं छोटा था
जब मैं छोटा था
तब बहुत मोटा था ।
तब ना थी चिंता ना जलन ना दर्द ।
तब थी फटी हुई पेंट और नाक में सर्द ।

आज फिर उसी पल को पाने की सोचता हूं ।
गुमनाम जीवन में बचपन को खोजता हूं ।
उस पल जब गिरता जमीन में
तब उठाता कोई ।
आज जब गिरता हूं तब दुनिया रहती खोई ।

उस पल ऊटपटांग बातें
दिल में घर कर जाती थी ।
आज सच्ची कड़वी बातें
नया संकट को लाती हैं
तब नोट थे कागज के चिट्ठे ।
जो लाती थी बेरकुट व नड्डे ।

आज बन गए वे जिंदगी और जुनून ।
जिसे पाने को लोग कर जाएं बंदगी और खून।
बड़ा घिनौना ये जवानी की मारामारी ।
बचपन में ही छुपी जीवन की खुशियां सारी ।

तभी तो कहूं –
“समाज को बाल अपराध से बचाएं ।
बाल शिक्षा से उनको काबिल बनाए ।
तब भ्रष्टाचार ना टिक पायेगी ।
खुली बाजार में उसकी इज्जत लूट जाएगी।”

मनीभाई नवरत्न

हां मैं बच्चा हूं

हां मैं बच्चा हूं ।
अकल का थोड़ा कच्चा हूं।
मुझे आता नहीं झूठ बोलना
और फरेब करना
मैं तो दिल से नेक और सच्चा हूं ।
हां मैं बच्चा हूं ।
(🖋मनीभाई रचित)

बाल दिवस पर रुचि के तीन कविता

1 बाल कविता – “बच्चे”

शीर्षा छंद
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बच्चों की आई बारी |
है मस्ती की तैयारी ||
आई छुट्टी गर्मी की |
ठंडी – ठंडी कुल्फी की ||

भोले -भाले प्यारे हैं |
मीठे खारे तारे हैं ||
कच्ची माटी के भेले |
मिट्टी की रोटी बेलें ||

छक्का मारे राहों में |
टेटू छापे गालों में ||
नाना -नानी आये हैं |
ढेरों खाजे लाये हैं ||

कवियित्री – सुकमोती चौहान “रुचि”

2 भारत के वीर बच्चे हम

भारत के वीर बच्चे हम
वचन के पक्के,मन के सच्चे हम
काट डालें अत्याचार का सर
तलवार की वो धार हम।
जला दें बुराइयों को
आग की ओ लपटें हैं हम।
उखाड़ दें अन्याय की जड़ें
तूफान की ओ शबाब हम।
बहा ले चलें गिरि विशाल
नदी की हैं ओ सैलाब हम।
मिलकर जिधर चलें हम
बाधाओं से न डरें हम
टकरायें हमसे किसमें है दम
ओ मजबूत फौलाद हैं हम।
वतन के रखवाले हम
आजादी के मतवाले हम
मातृभूमि के दुलारे हम
वीरों ने अपने रक्त से सींचा
उस चमन के महकते सुमन हम
भारत के वीर बच्चे हम।

कवियित्री – सुकमोती चौहान रुचि
बिछिया, महासमुंद, छ. ग.

3 शिशु

कितनी अनुपम है यह छवि
मस्ती में चूर अलबेली चाल
कितनी प्यारी कितनी नाजुक
नन्हें नरम हाथों की छुअन।
क्या , है ऐसा कोमल? दुनिया का कोई स्पर्श?
वह चपलता वह भोलापन
प्यारी सूरत दर्पण सा मन
पल में रोना पल में हँसना
इतना सुखद इतना सुंदर
क्या है ऐसा आकर्षक? दुनिया का कोई सौंदर्य?
मन को आनंदित करे
तुतली बातों की मिठास
कितना मोहक ,कितना अनमोल
अधरों की निश्छल मुस्कान
क्या है ऐसा पावन? दुनिया में हँसी किसी की?
पहले पग की सुगबुगाहट से
थुबुक – थाबक चलना वह
पग नुपूर की छन – छन में
लहर सा नाचना वह
बाल सुलभ वह चेष्टाएँ
फीकी लगे परियों की अदाएँ
क्या है इतना सुखदायी ? दुनिया का कोई वैभव विलास?

कवियित्री – सुकमोती चौहान रुचि
बिछिया, महासमुंद, छ. ग.



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