गणतंत्र दिवस पर कविता : गणतन्त्र दिवस भारत का एक राष्ट्रीय पर्व है जो प्रति वर्ष 26 जनवरी को मनाया जाता है। इसी दिन सन् 1950 को भारत सरकार अधिनियम (1935) को हटाकर भारत का संविधान लागू किया गया था।
गणतंत्र पर दोहा
वीरों के बलिदान से,मिला हमें गणतंत्र।
जन-जन के सहयोग से,बनता रक्षा यंत्र।।
गणतंत्र दिवस हो अमर,वीरों को कर याद।
अपनों के बलिदान से,भारत है आजाद।।
भगत सिंह,सुखदेव को,नमन करे यह देश।
आजादी देकर गए,सुंदर सा परिवेश।।
आपस में लड़ना नहीं,हम सब हैं परिवार।
बंद करें संवाद से,आपस के तकरार।।
झंडा लहराते रहें,भारत की यह शान।
गाएँ झंडा गीत हम,राष्ट्र ध्वज हो मान।।
राजकिशोर धिरही
गणतंत्र दिवस पर कविता
सज रहा गांव गली
सज रहा गांव गली, सज रहा देश।
दिन ऐसा आया है , जो है विशेष।
दुनिया बदल रही पल पल में।
चलो आज हम भी लगा लें रेस।
जश्न ए आजादी का ,हम मनाएंगे
चलो इक नया इंडिया, हम बनाएंगे ।
तो आओ मेरे संग गाओ, मेरे यारा
झूमते हुए लगालो ये नारा…
वन्दे मातरम….
सुनो सुनो ध्यान से, मेरी जुबानी।
तकलीफ़ो से भरी, देश की कहानी।
फिरंगियों ने की थी जो , मनमानी।
पड़ गई जिनको भी मुंह की खानी ।
देश के वीरों का नाम, हम जगायेंगे।
चलो इक नया इंडिया, हम बनाएंगे ।
तो आओ मेरे संग गाओ, मेरे यारा
झूमते हुए लगालो ये नारा…
वन्दे मातरम….
-मनीभाई नवरत्न
जन गण मन गा कर देखो- राकेश सक्सेना
बस एक बार छू भर कर देखो,
दिल की तह से महसूस कर देखो,
गांधी भगत पटेल की तस्वीर पर,
ख़ून पसीने की बूंदें तो देखो।।
कितना त्याग किया वीरों ने,
तस्वीर में छिपी सच्चाई तो देखो,
बीवी बच्चे परिवार का मोह,
देश हित में छोड़ कर तो देखो।।
भूखे-प्यासे जंगल बीहड़ों में,
भटक-भटक जी कर तो देखो,
मीलों पैदल चल चलकर,
जनजन में भक्ति जगाकर देखो।।
आज़ादी हमें मिली थी कैसे,
एकबार तस्वीरें छू कर तो देखो,
अनशन आंदोलन फांसी का दर्द,
देशहित में मर कर तो देखो।।
आज़ाद भारत में इतराने वालों,
वीर सेनानियों के आंसू तो देखो,
क्या हमने राष्ट्र धर्म निभाया,
दिल पर हाथ रख कर तो देखो।।
कालाबाजार, भ्रष्टाचारों से,
मुक्त भारत के सपने तो देखो,
वीर सेनानियों की तस्वीरों पर,
सच्ची श्रद्धांजलि देकर भी देखो।।
फिर गर्व से सर उठा कर देखो,
फिर झण्डा ऊंचा लहराकर देखो,
फिर दिल में भक्ति जगाकर देखो,
फिर जन गण मन भी गा कर देखो।।
राकेश सक्सेना
आया दिवस गणतंत्र है
आया दिवस गणतंत्र है
फिर तिरंगा लहराएगा
राग विकास दोहराएगा
देश अपना स्वतंत्र है
आया दिवस गणतंत्र है।
नेहरू टोपी पहने हर
नेता सेल्फ़ी खिंचाएगा।
आज सत्ता विपक्ष का
देशभक्ति का यही मन्त्र है
आया दिवस गणतंत्र है।
चरम पे पहुची मंहगाई
हर घर मायूसी है छाई
नौ का नब्बे कर लेना
बना बाजार लूटतंत्र है
आया दिवस गणतंत्र है।
भुखमरी बेरोजगारी
मरने की है लाचारी
आर्थिक गुलामी के
जंजीरो में जकड़ा
यह कैसा परतन्त्र है
आया दिवस गणतंत्र है।
सरहद पे मरते सैनिक का
रोज होता अपमान यहाँ
अफजल याकूब कसाब
को मिलता सम्मान यहां
सेक्युलरिज्म वोटतंत्र है
आया दिवस गणतंत्र है।
सेवक कर रहा है शासन
बैठा वो सोने के आसन
टूजी आदर्श कोलगेट
चारा खाकर लूटा राशन
लालफीताशाही नोटतंत्र है
आया दिवस गणतंत्र है।
भगत -राजगुरु- सुभाष-गांधी
चला आज़ादी की फिर आँधी
समय की फिर यही पुकार है
जंगे आज़ादी फिर स्वीकार है
आ मिल कसम फिर खाते हैं
देश का अभिमान जगाते हैं।
शान से कहेंगे देश स्वतंत्र है
देखो आया दिवस गणतंत्र है।
©पंकज भूषण पाठक”प्रियम”
अमर रहे गणतंत्र दिवस
अमर रहे गणतंत्र दिवस
ले नव शक्ति नव उमंग
अमर रहे गणतंत्र दिवस।
ले नव क्रांति शांति संग।
हो सबका ध्वज तले संकल्प।
एक रहें हम नेक रहें।
हो हम सबका एक विकल्प।
ममता समता हो हम में
नव भारत की नई नींव
मज़बूत बनाएँ हम सबमें
इस शक्ति का हो संचार
कुर्बां होने की शक्ति हो।
हममें निहित हो सदाचार।
विश्व बंधुत्व पर कर विश्वास।
ऐ बंधु कदम बढाये जा
अंतिम श्वास तक नि:स्वार्थ।
विश्व शांति की लिए मशाल।
फैला दे जग में संदेश
लिए विशाल लक्ष्य विकराल।
जला दे अंधविश्वास की मूल।
तोड़ दे जाति भाषा वाद।
प्रगति के ये बाधक शूल।
अमर रहे गणतंत्र दिवस।
सच कर दो यह विश्वास
अमर रहे गणतंत्र दिवस।
- सुनील गुप्ता सीतापुर सरगुजा छत्तीसगढ
मैंने हिंदुस्तान देखा है
मैंने जन्नत नहीं देखा यारों मैंने हिंदुस्तान देखा है
भाईचारे से रहते हर हिंदू और मुसलमान देखा है
गीता-क़ुरान रहते साथ और पवित्र गंगा कहते हैं
हरे-भगवे की छोड़ बैर सब जय जय तिरंगा कहते हैं
लहराओ तिरंगा और सब जय जयकार करो
दुश्मन से ना लड़ो बुराइयों पर ही वार करो
सलाम ऐसे सैनिक जो स्वार्थ नंगा कहते हैं
घर वालों की फ़िकर छोड़ जय जय तिरंगा कहते हैं
तीन रंग के झण्डे में अद्भुत सामर्थ्यता छाई है
ना जाने कितनों ने इसकी ख़ातिर जान गवाई है
इंक़लाबियों को याद कर सुनाओ उनकी कहानी
गर्व से भरो सर्वदा भले ही आँख में ना आए पानी
आज़ादी के ख़ातिर तुम भी हो जाओ मतवाले
लड़ो अपने आप से बन जाओ हिम्मत वाले
आज़ादी के दीवानों को कल हमने ये कहते देखा
जय जय हिंदुस्तान के नारों को एक साथ रहते देखा
-दीपक राज़
नव पीढ़ी हैं हम
नव पीढ़ी हैं हम हिन्दुस्तान के
वंदे मातरम्,वंदे मातरम् गाएंगे
सबसे बड़ा संविधान हमारा
अम्बेडकर पर हमें है गर्व
लोकतंत्र है अद्वितीय हमारा
चलो मनाते हैं गणतंत्र पर्व
आजादी के हैं परवाने
वतन पे जान लुटाएंगे
नव पीढ़ी हैं……
हम हैं भारत माता के लाल
हमारी बात ही कुछ और है
दुनिया एक दिन मानेगी
हम ही जमाने की दौर हैं
हमारे हौसले हैं फौलादी
कांटों में फूल खिलाएंगे
नव पीढ़ी हैं…..
अब होगा दिग्विजय हमारा
शिखर पर परचम लहराएगा
वो दिन अब दूर नहीं है
जब चांद पे तिरंगा छाएगा
इरादे नेक हैं हमारे
दुनिया को दिखलाएंगे
नव पीढ़ी हैं……
✍सुकमोती चौहान रुचि
बिछिया,महासमुन्द,छ.ग.
बोल वंदे मातरम्
सांसों में गर सांसे है,
और हृदय में प्राण है।
अभिमान तेरा..है तिरंगा,
और राष्ट्र..तेरी शान है।
सिंह-सा दहाड़ तू…
और बोल वंदेमातरम्…
और बोल वंदेमातरम्….।
है ये ओज की वही ध्वनि,
जिससे थी अंग्रेजों की ठनी।
हर कोनें-कोनें में जय घोष था,
बाल-बाल में भरता जो रोष था।
करके मुखर गाया जिसे सबने,
वह गीत है वंदेमातरम्…..
चल तू भी गा और मै भी गाऊं,
हृदय के स्पंदन में वंदेमातरम्,
और बोल वंदेमातरम्….
और बोल वंदे मातरम्….।
वीरों में जिसने अलख जगाया था,
क्रांति लहर..को ज्वार दिलाया था।
जिसने गगन में लहराया जय हिंद,
वो राग है वंदे, वंदे मातरम्…
वो राग है वंदे…..,वंदे मातरम्….।
जिसे सुनकर शत्रु सारे कांपे थे,
डरकर जिससे सरहद से वो भागे थे।
गर्व करता है सैनिक जिसपे,
वो जाप है अमर, वंदे मातरम्…।
वो जाप है वंदे मातरम्,वंदे मातरम्।
पंजाब,सिंध, गुजरात और मराठा,
द्राविड़,उल्कल,बंग एकता का धार है।
पहचान है हिन्द का है वंदेमातरम्,
श्वास में जो ज्वाल सा निकले…,
शब्द-शब्द में है जिसमें बसते मेरे प्राण हैं।
वो गीत मेरा अभिमान है…..
पुक्कू बोल जोर से वंदे मातरम्…..।।
और बोल वंदे….मातरम्….।
और बोल वंदे….मातरम्….।
©पुखराज यादव “प्राज”
पता- वृंदावन भवन-163, विख- बागबाहरा,जिला- महासमुन्द (छ.ग.) 493448
स्वतन्त्रता का दीप
स्वतन्त्रता का दीप है ये दीप तू जलाये जा
भारती जय भारती के गीत को तू गाये जा
(१)
अलख जो जग उठी है वो अलख है तेरी शान की
ये बात आ खडी है अब तो तेरे स्वाभिमान की
कटे नहीं,मिटे नहीं,झुके नहीं तो बात है
अपने फर्ज पर सदा डटे रहे तो बात है
तू भारती का लाल है ये भूल तो ना जायेगा
जो देश प्रति है फर्ज अपने फर्ज तू निभाये जा !!
भारती जय भारती के गीत को तू गाये जा !!
(२)
जो ताल दुश्मनों की है उस ताल को तू जान ले
छुपा है दोस्तों में जो गद्दार तू पहचान ले
भारती की लाज अब तो तेरा मान बन गयी
नहीं झुकेंगे बात अब तो आन पे आ ठन गयी
उठे नजर जो दुश्मनों की देश पर हमारे तो
एक-एक करके सबको देश से मिटाये जा !!
भारती जय भारती के गीत को तू गाये जा !!
(३)
मिली हमें आजादी कितनी माँ के लाल खो गये
हँसते-हँसते भारती की गोद जाके खो गये
आजादी का ये बाग रक्त सींच के मिला हमें
भेद-भाव में बँटे जो साथ में मिला इन्हें
सौंप ये वतन गये जो हमसे उम्मीदें बाँध जो
सँवार के उम्मींदे उनकी देश को सजाये जा !!
भारती जय भारती के गीत को तू गाये जा !!
स्वतन्त्रता का दीप है ये दीप तू जलाये जा !
भारती जय भारती के गीत को तू गाये जा !!
शिवाँगी मिश्रा
भारत की शान पर हो जाऊंँ कुर्बान,
लब पे सदा रहे भारत का गुणगान।
देश के संविधान का एसा हुआ था आरंभ,
26जनवरी1950 को गणतंत्र हुआ प्रारंभ।
हिंदुस्तान है वीर पराक्रम योद्धाओं से भरा,
देख युद्ध कौशल-साहस दुश्मन हम से डरा।
बनो नेक इंसान न करो अनर्गल-बहस,
मुबारक हो आप सभी को,गणतंत्र दिवस।
इस आजादी की ख़ातिर कितने हुए बलिदान,
मंगल पांडे लक्ष्मीबाई महात्मा गांधी जी महान।
देश-प्रेम को अपनाकर देशद्रोहियों को भगाइए,
परोपकार से नित-दिल में देश प्रेम को जगाइए।
वीरों के पुत्र हो न,रखो हृदय में कशमकश,
मुबारक हो आप सभी को,गणतंत्र दिवस।
भारतीय सविधान के निर्माता को सादर नमन,
भीमराव अंबेडकर जी थे स्वतंत्रता का चमन ।दुश्मन-अंग्रेजों की कूटनीति,हुआ था विफल,
क्रांतिकारियों के कारण ये मुहिम हुआ सफल।
मनाओ सभी 73वें गणतंत्र दिवस की-यश,
मुबारक हो आप सभी को,गणतंत्र दिवस।
हिंदुस्तान के सपूतों एक वादा करना,
देश के दुश्मनों से हरगिज़ न डरना।
नित करो अपने मातृभूमि से प्यार,
देश रक्षा के लिए सदैव रहो तैयार।
आतंकवाद-सांप्रदायिकता को दूर भगाओ,
राष्ट्र रक्षा के लिए अभी से तैयार हो जाओ।
दो सबको खुशियां न करो किसी को विवश,
मुबारक हो आप सभी को,गणतंत्र दिवस।
हिंदू-मुस्लिम,जैन-बौद्ध,और सिख-ईसाई,
न करो लड़ाई आपस में है सब भाई-भाई।
याद रखो,एकता में ही है बल और शक्ति,
सदैव हृदय में रहे हिन्दुस्तान की भक्ति।
देश के वीरों दिल में रहे देश भक्ति का रस,
मुबारक हो आप सभी को,गणतंत्र दिवस।
सब मिलकर फहराएं तिरंगा ये देश की शान है,
सभी राष्ट्रों से अनमोल हमारा हिन्दुस्तान है।
कहता है “अकिल” भारत देश है सबसे प्यारा,
विश्व गुरू कहें-जन,सबके आंखों का है ये तारा।
ज्ञान के प्रकाश से दूर हो अज्ञानता का तमस,
मुबारक हो आप सभी को, गणतंत्र दिवस।
अकिल खान
गणतंत्र दिवस – डॉ एन के सेठी
लोकतंत्र का पर्व मनाएं।
सभी खुशी से नाचे गाएं।।
दुनिया में है सबसे न्यारा।
यहभारत गणतंत्र हमारा।।
इसकी जड़ है सबसे गहरी।
इसकी रक्षा करते प्रहरी।।
सबसे बड़ा विधान हमारा।
नमन करे जिसको जग सारा।।
लोकतंत्र का महापर्व है।
हमको इस पर बड़ा गर्व है।।
भारत प्यारा वतन हमारा।
ये दुनिया में सबसे न्यारा।।
भिन्न – भिन्न जाती जन रहते।
विविध धर्म भाषा को कहते।।
नाना संस्कृतियों का संगम है।
खुशियाँ होती कभी न कम है।।
उत्सव अरु त्यौहार मनाते।
इक दूजे से प्यार जताते।।
नारी का सम्मान यहाँ है।
मेहमान का मान यहाँ है।।
वसुधा को परिवार समझते।
सर्वसुख की कामना करते।।
करती पावन गंगा-धारा।
सूरज फैलाए उजियारा।।
हम दुश्मन को गले लगाते।
सबमिल गीत खुशी के गाते।।
करता हमसे जो गद्दारी।
मिटती उसकी हस्ती सारी।।
रण में पीठ न कभी दिखाते।
दुश्मन के हम होश उड़ाते।।
त्याग शील पुरुषार्थ जगाएं।
लोकतंत्र का मान बढ़ाएं।।
©डॉ एन के सेठी
उत्सव यह गणतंत्र का
उत्सव यह गणतंत्र का , राष्ट्र मनाये आज ।
जनमानस हर्षित सकल , खुशी भरे अंदाज ।।
खुशी भरे अंदाज , गगनभेदी स्वर गाते ।
भारत भूमि महान , प्रणामी भाव दिखाते ।।
कह ननकी कवि तुच्छ , असंभव सारे संभव ।।
लालकिले से गाँव , सभी पर होते उत्सव ।।
उत्सव में उत्साह का , दिखता प्यारा रंग ।
तन मन की संलग्नता , दुनिया होती दंग ।।
दुनिया होती दंग , किये हम काम अजूबे ।
भारत बना अनूप , प्रेम के छंदस डूबे ।।
कह ननकी कवि तुच्छ , सभी जन के अधरासव ।
रंगबिरंगे दृश्य , बने अब प्यारे उत्सव ।।
उत्सव के दिन आज है, गाओ मंगल गान ।
जल थल अरु आकाश में , उड़े तिरंगा शान ।।
उड़े तिरंगा शान , मोद से हर्षित सारे ।
सजे धजे सब लोग , आज हैं अतिशय प्यारे ।।
कह ननकी कवि तुच्छ , सभी सुख होते उद्भव ।
झूमे धरती आज , मनाते है सब उत्सव ।।
रामनाथ साहू ” ननकी “
भारत गर्वित आज पर्व गणतंत्र हमारा
धरा हरित नभ श्वेत, सूर्य केसरिया बाना।
सज्जित शुभ परिवेश,लगे है सुभग सुहाना।।
धरे तिरंगा वेश, प्रकृति सुख स्वर्ग लजाती।
पावन भारत देश, सुखद संस्कृति जन भाती।।
भारत गर्वित आज,पर्व गणतंत्र हमारा।
फहरा ध्वज आकाश,तिरंगा सबसे प्यारा।।
केसरिया है उच्च,त्याग की याद दिलाता।
आजादी का मूल्य,सदा सबको समझाता।।
सिर केसरिया पाग,वीर की शोभा होती।
सब कुछ कर बलिदान,देश की आन सँजोती।।
शोभित पाग समान,शीश केसरिया बाना।
देशभक्त की शान,इसलिए ऊपर ताना।।
श्वेत शांति का मार्ग, सदा हमको दिखलाता।
रहो एकता धार, यही सबको समझाता।।
रहे शांत परिवेश , उन्नति चक्र चलेगा।
बनो नेक फिर एक,तभी तो देश फलेगा।।
समय चक्र निर्बाध,सदा देखो चलता है।
मध्य विराजित चक्र, हमें यह सब कहता है।।
भाँति भाँति ले बीज,फसल तुम नित्य लगाओ।।
शस्य श्यामला देश, सभी श्रमपूर्वक पाओ।।
धरतीपुत्र किसान, तुम इनका मान बढ़ाओ।
करो इन्हें खुशहाल,समस्या मूल मिटाओ।।
रक्षक देश जवान, शान है वीर हमारा।
माटी पुत्र किसान,बनालो राज दुलारा।।
अपना एक विधान , देश के लिए बनाया।
संशोधन के योग्य, लचीला उसे सजाया।।
देश काल परिवेश ,देखकर उसे सुधारें।
कठिनाई को देख, समस्या सभी निवारें।।
अपना भारत देश, हमें प्राणों से प्यारा।
शुभ संस्कृति परिवेश,तिरंगा सबसे न्यारा।।
बँधे एकता सूत्र, पर्व गणतंत्र मनाएँ।
विश्व शांति बन दूत,गान भारत की गाएँ।।
—गीता उपाध्याय’मंजरी’ रायगढ़ छत्तीसगढ़
आओ मिलकर गणतंत्र सफल बनाएँ
सागर जिसके चरण पखारे
गिरिराज हिमालय रखवाला है
कोसी गंडक सरयुग है न्यारी
गंगा यमुना की निर्मल धारा है
अनेकताओ में बहती एकता
अदभुत गणतंत्र हमारा है
केसरिया सर्वोच्च शिखर पर
मध्य में इसके तो उजियारा है
यह चक्र अशोक स्तंभ का देखो
तिरंगे के नीचे में हरियाला है
तीन रंग का ये अपना तिरंगा
ये हम सबको प्राणों से प्यारा है
वीर सपूतों की ये पावन धरती
शहीदों ने स्व लहू से संवारा है
जनता यहां करती है शासन
अकेले आजाद वो रखबारा है
आचार्य गोपाल जी
प्यारा तिरंगा हमारा है
रहे जान से भी प्यारा तिरंगा हमारा है |
शहीदो खून से सींचा इसे सवारा है |
झुकने ना देंगे लहर रुकने ना देंगे |
पर्वतो शिरमोर हिमालय हमारा है |
चरण पखारता सागर गरजता है |
योगो युगो बहती गंगा नाम प्यारा है |
महाराणा लक्ष्मी रवानी शान कहानी है |
आबरू वतन जंगल जीवन गुजारा है |
गर्व हमे हम भारत के है लाल |
हो पैदा वतन के वास्ते हम दुबारा है |
चाल दुश्मनों अब चलती नही |
दिया जवाब मुकम्मल हिन्द बहारा है |
हो मजहब कोई सब भाई समझते है |
पड़ी जरूरत वतन सबको पुकारा है |
मिली आजादी लाखो कुर्बानियों सिला |
रहे कायम यही स्वर्ग शहिदों इसारा है |
आए चाहे कितनी आंधिया ओ तूफान |
हम डिगे नहीं वतन परस्ती सहारा है |
मांग लेगा जान वतन जब भी हमारी |
रख हथेली गरदन खुद ही पसारा है |
यूं ही चलती रहे जस्ने आजादी सदा |
आंच आये माँ भारती नहीं हमको गवारा हैं |
श्याम कुँवर भारती
तिरंगे का सम्मान
देशभक्ति का गीत आओ फिर दुहराते हैं
पावन पर्व राष्ट्र का रस्मों रीत निभाते हैं।
स्वतंत्र देश के गणतंत्र दिवस पर फिर से
एक दिन के अवकाश का जश्न मनाते है।
सूट-बूट में अफसर,नेता खादी लहराते हैं
भ्रष्टाचार की कालिख़ खादी में छिपाते है।
नौनिहाल बेहाल भूखे सड़क सो जाते हैं।
भ्रस्टाचारी जेल में बैठ बटर नान उड़ाते हैं।
सरहद पे जवान गोली से नहीं भय खाते हैं
अपने देश के गद्दारों की गाली से घबराते हैं।
राजनीति पर चौपाल पे चर्चा खूब कराते है।
गन्दी है सियासत इसबात पे ठहाके लगाते है
पर इस कचरे को साफ करने से कतराते हैं।
घर आकर टीवी और बीबी से गप्पें लड़ाते हैं।
सच्चाई सिसकती कोने में झूठे राज चलाते है
भ्रस्टाचार के डण्डे में, झंडा तिरंगा फहराते हैं।
तिरंगे को देना है तुझको अब सम्मान अगर
देश का रखना है तुझको जो अभिमान अगर।
आओ मिलकर फिर एक कसम हम खाते हैं।
भय भूख और भ्रस्टाचार को देश से मिटाते है।
जंगे-आज़ादी का गीत फिर एकबार दोहराते हैं।
स्वाधीनता के गणतंत्र का फिर त्यौहार मनाते है।
कट्टरता के जंजीरो से समाज को मुक्त कराते हैं
वन्देमातरम जयहिंद का नारा बुलंद कर जाते है।
भीतर बैठे गद्दारों को अब बेनक़ाब कर जाते हैं
दुश्मन की छाती पर चढ़, राष्ट्रध्वज फहराते हैं।
पंकज भूषण पाठक “प्रियम”
आ गया गणतंत्र दिवस प्यारा
जय जय भारत भूूमि तेरी जय जयकार
आ गया गणतंत्र दिवस प्यारा, जश्न देश मना रहा।
लहर लहर तिरंगा आज चहुंओर लहरा रहा।।
स्वतंत्र गणराज्य से , सर्वोच्च् शक्ति भारत आज बन रहा।
न्याय, स्वतंत्रता,समानता की कहानी विश्व पटल पर रख रहा।।
एकता और अखंंडता की मिशाल बना हिंदुस्तान।
बहु सांस्कृतिक भूमि, संंप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य महान।।
भाईचारा, बंंधुत्व की भावना यहां सदा पनपी हैं।
भारत की सभ्यता संस्कृति तो सदा ही चमकी हैं।।
नारी शक्ति सफलता के झंंडे नित गाड़ रही।
सीमा पर दुश्मनों से सीधे टक्कर ले रही।।
शिक्षा, स्वास्थ्य का आज रहा नहीं हैं अभाव।
हमें तो हैं इस भारत भूूमि से अटूट लगाव।।
समाज, धर्म के साथ सब भाषाएं यहां पनप रही हैं।
सांमजस्य पूूर्ण व्यवहार से मानवता यहां खिल रही है।।
लाल किले की प्रराचीरें गणतंत्र संंग स्वतंत्रता की याद दिलाती है।
गांव की गलियां भी दूूूधिया रोशनी में नहाती हैं।।
गरीबी, बेेेेरोजगारी, अशिक्षा शनैै: शनैः मिट रहे हैं।
भण्डार इस धरा के धान से नित भर रहे हैं।।
याद आती हमेें शहीदों की कुर्बानी खूब।
उग रही है आजादी की सांस में नयी दूब।।
रंगीन अंदाज में खुलकर हम भारतवासी जीते हैं।
आज भी हम भावों से रीते हैं।।
सरहद पर जवान धरती मांं की रक्षा में मुस्तैद हैं।
स्वतंत्र है, गणतंत्र हैैं, बेेेडियों में नहीं कैद हैं।
सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक, आर्थिक रूप से भारत मजबूत हैं।
भारत शांति, अहिंंसा का विश्व में असली दूत हैं।।
आओ हम सब गणतंत्र का सम्मान करेें।
स्वतंत्रता संग गणतंत्र पर अभिमान करें।।
विजयी भव का आशीर्वाद हमने पााया हैं।
खुद भी जागे हैंं,दूसरों को भी जगाया हैैं।।
पल्लवित, पुुष्पित भारत माता, सत्यमेव जयतेे हमारा गहना।
हिंदी, हिन्दू, हिंदोस्तान, हम हैंं विश्वगुरू हमारा क्या हैं कहना।।
जय जय भारत भूमि तेरी जय जयकार।
जय जय भारत भूमि तेरी जय जयकार।।
धार्विक नमन, “शौर्य”, असम
सत्यमेव जयते का नारा भ्रष्टमेव जयते होगा
राजनीति का दामन थामे अपराधों की चोली है|
चोली चुपके से दामन के कान में कुछ तो बोली है|
अपराधी फल फूल रहे हैं नोटों की फुलवारी में|
नेता खेला खेल रहे हैं वोटों की तैयारी में|
अपराधों का उत्पादन है राजनीति के खेतों में|
फसल इसी की उगा रहे नेता चमचों व चहेतों में|
नाच रही है राजनीति अपराधियों के प्रांगण में|
नौकरशाही नाच रही है राजनीति के आँगन में|
प्रत्याशी चयनित होता है जाति धर्म की गिनती पर|
हार-जीत निश्चित होती है भाषणबाजी विनती पर|
मुर्दा भी जिन्दा होकर मतदान जहाँ कर जाता है|
लोकतन्त्र का जिन्दा सिस्टम जीते जी मर जाता है|
जहाँ तिरंगे के दिल पर तलवार चलाई जाती है|
संविधान की आत्मा खुल्लेआम जलाई जाती है|
वोटों का सौदा होता है सत्ता की दुकानों में|
खुली डकैती होती है अब कोर्ट कचहरी थानों में|
निर्दोषों को न्याय अदालत पुनर्जन्म में देती है|
दोषी को तत्काल जमानत दुष्कर्म में देती है|
शोषित जब भी अपने अधिकारों से वंचित होता है|
लोकतंत्र का पावन चेहरा तभी कलंकित होता है|
भ्रष्टाचारियों का विकास जब दिन प्रतिदिन ऐसे होगा|
सत्यमेव जयते का नारा भ्रष्टमेव जयते होगा|
देशभक्ति की प्रथम निशानी सरहद की रखवाली है
देशभक्ति की प्रथम निशानी सरहद की रखवाली है|
हर गाली से बढ़कर शायद देश द्रोह की गाली है|
जिनको फूटी आँख तिरंगा बिल्कुल नहीं सुहाता है|
निश्चित ही आतंकवाद से उनका गहरा नाता है|
राष्ट्रवाद के कथित पुजारी क्षेत्रवाद के रोगी हैं|
देश नहीं प्रदेश ही उनके लिए सदा उपयोगी हैं|
महापुरुष की मूर्ति तोड़ने वाले भी मुगलों जैसे|
गोरी, बाबर, नादिर, गजनी, अब्दाली पगलों जैसे|
मीरजाफरों, जयचन्दों, का जब जब पहरा होता है|
घर हो चाहे देश हो अपनों से ही खतरा होता है|
पूत कपूत भले होंगे पर माता नहीं कुमाता है|
ऐसा केवल एक उदाहरण मेरी भारत माता है|
माँ की आँखों के तारे ही माँ को आँख दिखाते हैं|
आँखों में फिर धूल झोंककर आँखों से कतराते हैं|
भारत माँ के मस्तक पर जब पत्थर फेंके जाते हैं|
छेद हैं करते उस थाली में जिस थाली में खाते हैं|
कुछ बोलें या ना बोलें बस इतना तो हम बोलेंगे|
देशद्रोहियों की छाती पर बंदेमातरम् बोलेंगे|
भारत माता की जय कहने से जो भी कतराते हैं|
भारत तेरे टुकड़े होंगे कहकर के गुर्राते हैं|
ऐसे गद्दारों को चिन्हित करके उनकी नस तोड़ो|
किसी धर्म के चेहरे को आतंकवाद से मत जोड़ो|
प्रतिशोधों की चिंगारी को आग उगलते देखा है
प्रतिशोधों की चिंगारी को आग उगलते देखा है|
काले धब्बे वाला उजला धुँआ सुलगते देखा है|
नफरत का सैलाब भरा है पागल दिल की दरिया में|
भेदभाव का रंग भरा है अब भी हरा केशरिया में|
गौरक्षक के संरक्षण में गाय को काटा जाता है|
जाति-धर्म के चश्में से इन्सान को बाँटा जाता है|
धरती से अम्बर तक जिनकी ख्याति बताई जाती है|
उन्हीं पवन-सुत की भारत में जाति बताई जाती है|
जातिवाद जहरीला देखा सामाजिक संरक्षण में|
भारत बंद कराते देखा जातिगत आरक्षण में|
हमने जिन्दा इंसानों को जिन्दा ही सड़ते देखा|
मुर्दों को हमने कब्रों-शमशानों में लड़ते देखा|
देखा हमने धर्मग्रंथ के आयत और ऋचाओं को|
ना हो दंगा, नहीं करेंगे आपस में चर्चाओं को|
देख लिया धर्मान्धी ठेकेदारों वाली पगदण्डी|
देख लिया है हमने मुल्ला,पण्डित पापी पाखण्डी|
धर्मान्धी लिबास पहन जब मानव नंगा होता है|
अमन-शान्ति की महफिल में फिर खुलकर दंगा होता है|
आजादी गुलाम हुई
फसल बाढ़ में चौपट भी है नहर खेत भी सूखे हैं|
सबकी भूख मिटाने वाले अन्न-देवता भूखे हैं|
सबका महल बनाने वाले मजदूरों की छतें नहीं|
पेड़ के नीचे सोते परिवारों के घर के पते नहीं|
उजियारे के बिन अँधियारा कैसा दृश्य बनाएगा|
फुटपाथों पर भूखा बचपन कैसा भविष्य बनाएगा|
माँ के गहने बेंच के शिक्षा सब पूरी करते देखा|
पी. एच. डी. बेरोजगार को मजदूरी करते देखा|
पाकीज़ा रिश्तों को हमने तार-तार होते देखा|
अपनी अस्मत को लुटते एक बेटी को रोते देखा|
दरिन्दगी, वहशी, हैवानी, लालच बुरी निगाहों पर|
घर में जलती बहू, बहन-बेटी जलती चौराहों पर|
नही समझ में आता है अब सुबह हुई या शाम हुई|
गुलामी आजाद हुई या आजादी गुलाम हुई|
—-“अली इलियास”—-
चलो तिरंगा लहराएँ
गणतंत्र दिवस का नया सबेरा,
यूँ ही ना मुस्काया।
चढ़े सैकड़ों बलिवेदी पर,
तब ये शुभदिन आया।
लाखों जुल्म सहे हमने,
तब आजादी को पाया।
विधि लिखा विद्वानों ने,
भारत गणतंत्र बनाया।
जन मन के प्राँणों से प्यारा,
भारत देश सजाया।
श्रद्धा से कर वंदन उनको,
आज प्रदीप जलाएँ।
उनके तप का पावन ध्वज,
चलो तिरंगा लहराएँ।
रविबाला ठाकुर”सुधा”