बाल भिक्षुक -आशीष कुमार

बाल भिक्षुक -आशीष कुमार

चीथड़ों में लिपटे
डरे सहमे, पड़े
मंदिर की सीढ़ियों पर

तन सपाट
ज्यों मात्र
एक अस्थि पिंजर

कृशकाय नन्हे-मुन्ने
हाथ फैलाए
सिहर सिहर

देने वाले दाता राम
बोल पड़े – कांपते अधर
नगर सेठ को देख कर

एक पल निहारा
फटकारा दुत्कारा
किया तितर-बितर

परिक्रमा चल रही
अंदर-बाहर
नयन टिके आस में
अपने-अपने भगवान पर

जूठे प्रसाद के दोने
ऐसे चुनते रह रह कर
मिल जाए खाने को कुछ
शायद उनमें बचकर

काया पलट जाती
जिन के दर पर
चीथड़ों में लिपटे
डरे सहमे, पड़े उन्हीं
मंदिर की सीढ़ियों पर

वेदना हरते उनकी
देकर उनके कर पर
भगवान उनके वह हैं
मिलते जो सीढ़ियों पर

दिवस आधारित कविता