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बाल मजदूर पर कविता (लावणी छंद मुक्तक)

बाल मजदूर पर कविता (लावणी छंद मुक्तक)

बाल मजदूरी
बाल मजदूरी पर कविताएँ


राज, समाज, परायों अपनों, के कर्मो के मारे हैं!
घर परिवार से हुये किनारे, फिरते मारे मारे हैं!
पेट की आग बुझाने निकले, देखो तो ये दीवाने!
बाल भ्रमित मजदूर बेचारे,हार हारकर नित हारे!
__
यह भाग्य दोष या कर्म लिखे,
. ऐसी कोई बात नहीं!
यह विधना की दी गई हमको,
कोई नव सौगात नहीं!
मानव के गत कृतकर्मो का,
फल बच्चे ये क्यों भुगते!
इससे ज्यादा और शर्म… की,
यारों कोई बात नही!

यायावर से कैदी से ये ,दीन हीन से पागल से!
बालश्रमिक मेहनत करते ये, होते मानो घायल से!
पेट भरे न तन ढकता सच ,ऐसी क्यों लाचारी है!
खून चूसने वाले इनके, मालिक होते *तायल से!

ये बेगाने से बेगारी से, ये दास प्रथा अवशेषी है!
इनको आवारा न बोलो, ये जनगणमन संपोषी हैं!
सत्सोचें सच मे ही क्या ये, सच में ही सचदोषी है!
या मानव की सोचों की ये, सरे आम मदहोंशी है!
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जीने का हक तो दें देवें ,रोटी कपड़े संग मुकाम!
शिक्षासंग प्रशिक्षण देवें,जो दिलवादें अच्छा काम!
आतंकी गुंडे जेलों मे, खाते मौज मनाते हैं!
कैदी-खातिर बंद करें ये, धन आजाए इनके काम!
. (तायल=गुस्सैल)

बाबूलाल शर्मा

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