मैं तेरा बीज – पिता पर विशेष

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मैं तेरा बीज – पिता पर विशेष

मैं तेरा बीज – पिता पर विशेष
हे पिता!
मैं तेरा बीज हूँ।
माँ की कोख में
जो अंकुरित हुया ।
जब-जब भुख लगी माँ,
तेरे धरा का रसपान किया।
गोदी में बेल की भांति
लिपटा और भरपूर जीया।

तेरे खाद-पानी से पिता
पौधा से बना पेड़।
मेरे आँखो में सदा बसा रहा
माली की छवि में एक ईश्वर।

आँधी-तूफान से आज
मैं लड़ लूँगा थपेड़े सहते।
सह ना पाऊँ तेरा तिरस्कार।
आदी हो चुका मैं,
पाने को तेरा प्यार॥

मजबूत हैं आज मेरी डालियाँ।
खिल उठेंगे तेरे लिये कलियाँ।
समेट लूँगा तुझे अपनी छाया में
क्षुधा मिटाऊँगा तेरे,
अपने कर्मफल से।
(रचयिता:- मनी भाई)

मनीभाई नवरत्न

यह काव्य रचना छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले के बसना ब्लाक क्षेत्र के मनीभाई नवरत्न द्वारा रचित है। अभी आप कई ब्लॉग पर लेखन कर रहे हैं। आप कविता बहार के संस्थापक और संचालक भी है । अभी आप कविता बहार पब्लिकेशन में संपादन और पृष्ठीय साजसज्जा का दायित्व भी निभा रहे हैं । हाइकु मञ्जूषा, हाइकु की सुगंध ,छत्तीसगढ़ सम्पूर्ण दर्शन , चारू चिन्मय चोका आदि पुस्तकों में रचना प्रकाशित हो चुकी हैं।

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