क्या मैं उसे कभी जान पाया ?

क्या मैं उसे कभी जान पाया ?

कभी – कभी
या बोलिये अब हर वक्त…
मैं ढूंढता हूँ उसको
जो मेरे अंदर पड़ा है मौन।
कहता कुछ नहीं
पर लगता है
उसकी आवाज दबा दी गई हो
कब ?
ये भी तो मुझे मालूम नहीं ।
लेकिन हाँ ! धीरे-धीरे…

उसके अंदर के टीस
मुझे जब चुभती,
मैं उसे तब
झूठी दिलासा देकर
अक्सर शांत कर देता था ।
वैसे ही जैसे नसों के दर्द को
राहत देता है मलहम
कुछ पलों के लिए।
पर क्या वो यही चाहती थी?
पुरानी घिसी-पिटी सहानुभूति
वही बाहरी लेप मलहम।

नहीं यह वह बच्चा नहीं
जो झुनझुने से अपना दिल बहलाये।
उसकी खामोशी से
मुझे डर सा लगने लगा है
कि उसका विश्वास
अब मुझसे खोने लगा है I
वो अब मौन है
जिद भी नहीं करता।
मुझे पता है
उसका मौन हो जाना
मेरी मौत है।

अब स्वार्थवश,
उसकी तरफ ध्यान गया है।
पर वो मौन नहीं तोड़ता
मुझे नहीं बताता ,
सच्चाई मेरे जीवन की ।
वो मेरी पुरानी आदतें
अच्छी तरह जान गया है
मुझसे भी बेहतर।
पर क्या मैं उसे कभी जान पाया ?
                                    मनीभाई नवरत्न

मनीभाई नवरत्न

यह काव्य रचना छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले के बसना ब्लाक क्षेत्र के मनीभाई नवरत्न द्वारा रचित है। अभी आप कई ब्लॉग पर लेखन कर रहे हैं। आप कविता बहार के संस्थापक और संचालक भी है । अभी आप कविता बहार पब्लिकेशन में संपादन और पृष्ठीय साजसज्जा का दायित्व भी निभा रहे हैं । हाइकु मञ्जूषा, हाइकु की सुगंध ,छत्तीसगढ़ सम्पूर्ण दर्शन , चारू चिन्मय चोका आदि पुस्तकों में रचना प्रकाशित हो चुकी हैं।

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