इश्क पर कविता -सुशी सक्सेना
इश्क के आगे कलियों की तरूणाई फीकी है।
इश्क में तो हर इक शय जी लेती है।
इश्क से आसमां की ऊंचाई झुक जाती है।
इश्क में नदियों की लहराई भी रुक जाती है।
इश्क से सागर भी कम गहरा लगता है।
इश्क में सारी दुनिया का पहरा लगता है।
इश्क में पत्थर भी पिघल जाता है।
मोम सी जलती है शमां इश्क में,
इश्क में परवाना भी जल जाता है।
इश्क तो गंगा सा पावन है।
इश्क एक महकता सा चंदन है।
इश्क मीरा है, इश्क कृष्ण की राधा है।
इश्क तो संग संग जीने मरने का इरादा है।
इश्क तो जीवन की हरियाली है।
इश्क से महकती मन की फुलवारी है।
इश्क के बिना कुदरत भी सूना है।
ये इश्क प्रकृति का अदभुत नमूना है।
इश्क में कागज भी कोरा रह जाता है।
बिना बोले ही समझ में आ जाए जो,
इश्क आंखों की वो भाषा है।
इश्क तो हर जीवन का सपना है।
इश्क में लगता हर कोई अपना है।
इश्क में हर कोई प्यारा लगता है।
कोई जीता तो, कोई इश्क में हारा लगता है।
इश्क की हवा जिसको लग जाती है।
उसकी तो समझो दुनिया बदल जाती है।
इश्क में मिट जाते हैं, इश्क में बन जाते हैं।
जाने क्या क्या लोग देखो इश्क में कर जाते हैं।
इश्क से ही तो हर रिश्ता कायम है।
जो इश्क नहीं तो मेरे साहिब,
न तुम हो और न हम हैं।