मैं हूँ एक छोटी सी मछली
मैं हूँ एक छोटी सी मछली।
सपनों के सागर में मचली।।
सोचा था सारा सागर मेरा,
ले आजादी का सपना निकली।।
बड़े – बड़े मगरमच्छ वहां थे,
था आजादी का सपना नकली।।
बड़ी मछली छोटी को खाए,
इनका राग इन्हीं की ढफली।।
छोटी का न होता गुजारा,
बड़ी खाती है काजु कतली।।
सिल्ला’ इस सोच में है डूबा,
भेद नहीं क्या असली नकली।।