मर गया कवि सम्मान के चक्कर में – मनीभाई नवरत्न

वर्तमान परिस्थितियों में कवियों की सम्मान के प्रति अति मोह पर व्यंग्य करती कविता

 

मर गया कवि

मर गया कवि
सम्मान के चक्कर में।
अब मिठास कहाँ
गुड़ जैसे शक्कर में।
ये कैसा काव्य युग,
अजीब कवियों की पीढ़ी है।
कागजी टुकड़े को समझता
अपनी मंजिल की सीढ़ी है।
जिसके लेखनी उगलते
दिन रात जात-पात की गरल।
निर्भाव अभिमानी बनके
स्वविचार थोपे हर पल।
गायब हैं काव्य में
दीन हीन की कराह।
ये तो वही लिखेगा
जिसमें मंच कहे वाह-वाह।
पंत,निराला,अज्ञेय
दिनकर, बच्चन… को पढ़ लीजिए।
तब कुछ समझ आये
तो काव्य गढ़ लीजिए।
यूं ना अधुरे सच का
खुल के दुष्प्रचार कीजिए।
सत्य की तह जाइये
तब तक इंतजार कीजिए।
काव्य होती भावपरक
भाव का गला ना घोटिये।
यूं ना दंभ, क्रोध में आके
मुख मोड़के ना लोटिये।
कवि है साधक,
ज्ञानदीप से आलोक करें।
क्या हुआ जो मंच ने भुला दिया
तनिक भी इसका ना शोक करें।
काव्य रंग से रंगे
समाज की हर दीवार।
रब ने यह हुनर दिया
ये तो कम नहीं मेरे यार।
पर चंद पंक्ति लिख देने से
तू कहाँ और कब माना है?
करेगा वही
जो तेरे दिमाग ने ठाना है।
तो सोचता हूँ अब
उस कवि को क्या बताऊँ
लिखकर मैं।
जो मर गया कवि
सम्मान के चक्कर में।

*✍मनीभाई”नवरत्न”*
रचनाकाल:-
30अप्रैल 2018,1:00 AM से 1:30 AM

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