नववर्ष पर हिंदी कविता

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नववर्ष पर हिंदी कविता

नववर्ष पर हिंदी कविता : महदीप जँघेल

निशिदिन सुख शांति की उषा हो,
न शत्रुता, न ही हो लड़ाई।
प्रेम दया करुणा का सदभाव रहे,
सबको नववर्ष की हार्दिक बधाई।

विश्व बंधुत्व की भावना हो विकसित,
भाईचारा और प्रेम की हो पढाई।
प्रेम से जियो और जीने दो सभी को,
सबको नववर्ष की हार्दिक बधाई।

सदियों से विश्व गुरु रहा है भारत,
शांति व शिक्षा की जोत है जगाई।
संस्कृति सभ्यता की नित रक्षा करें,
सबको नववर्ष की हार्दिक बधाई।

निर्धनों व असहायों की मदद कर,
जीवन में करें पुण्य की कमाई।
मानव जीवन को सार्थक बनाएँ,
सबको नववर्ष की हार्दिक बधाई।

नशा,ईर्ष्या,मद, लोभ, त्याग दे,
अहंकार प्रतिकार त्यागें हर बुराई।
नेक कर्म कर कुछ नाम कमाएं,
सबको नववर्ष की हार्दिक बधाई।

नारियों का सम्मान करें हम,
ये सब कसम खा ले हर भाई।
दया धर्म और मान रखे हम,
सबको नववर्ष की हार्दिक बधाई।

महदीप जँघेल
ग्राम- खमतराई
वि.खँ- खैरागढ़,राजनांदगांव
छत्तीसगढ़

नई साल पर कविता

(दोहा छंद)
नई ईसवी साल में, बड़े दिनों की आस।
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स्वागत नूतन वर्ष का, करते भाव विभोर।
गुरु दिन भी होने लगे, मौसम भी चित चोर।।
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माह दिसंबर में रहे, क्रिसमस का त्यौहार।
संत शांता क्लाज करे, वितरित वे उपहार।।
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सकल जगत में मानते, ईसा ईश महान।
चला ईसवीं साल भी, इसका ठोस प्रमान।।
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साज सज्ज सर्वत्र हो, खूब मने यह रीत।
रहना मेल मिलाप से, भली निभाएँ प्रीत।।
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ईसा के उपदेश का, सब हित है उपयोग।
जैसे सब के हित रहे, प्राणायाम सुयोग।।
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देख सुहाना दृश्य कवि, गँवई, मंद,गरीब।
भाव उठे मन में कई, करते नमन सलीब।।
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नूतन वर्ष विकास की, संगत क्रिसमस रात।
गृह लक्ष्मी दीपावली , सजे उजाले पाँत।।
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उच्च मार्ग देखें निशा , मन में उठे विचार।
सुन्दर पथ ऐसा लगे, इन्द्र लोक पथ पार।।
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ऊँचे चढ़ते मार्ग से, लगता हुआ विकास।
लगातार ऊँचे चढ़े, छू लें चन्द्र प्रकाश।।
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नीचे सागर पर्व सा, ऊपर लगे अकाश।
तारक गण सी रोशनी, फैले निशा प्रकाश।।
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नभ को जाते पंथ को, खंभ रखें ज्यों शीश।
नव विकास सदमार्ग की, राह बने वागीश।।
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आए शांता क्लाज जो, शायद यही सुमार्ग।
उपहारों से पाट दें, गुरबत और कुमार्ग।।
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शहर सिंधु सरिता खड़े, ऐसे पुलिया पंथ।
लगते पंख विकास के, त्यागें सभी कुपंथ।।
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नई ईसवीं साल का , नया बने संकल्प।
तमस गरीबी क्यों रहे, नवपथ नया विकल्प।।
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अभिनंदन नव साल का, करिए उभय प्रकार।
युवकों संग किसान के, श्रमी सपन साकार।।
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बिटिया प्राकृत शक्ति है, बढ़े प्रकाशी पंथ।
पथ बाधाओं रहित हो, उज्ज्वल भावि सुपंथ।
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सत पथ भावी पीढियाँ, चलें विकासी चाल।
सबको संगत लें बढ़ें, रखलें वतन खयाल।।
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नये ईसवीं साल में, बड़े दिनों की आस।
रोजगार अवसर मिले, नूतन पंथ विकास।।
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जीवन में किस मोड़ पर, हों खुशियाँ भरपूर।
साध चाल चलते चलो, दिल्ली क्यों हो दूर।।
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विकट मोड़ घाटी मिले, अवरोधक भी साथ।
पार पंथ खुशियाँ मिले, धीरज कदमों हाथ।।
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सड़क पंथ जड़ है भले, करते हैं गतिमान।
सही चाल चलते चलो, नवविकास प्रतिमान।
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पथ में अवरोधक भले, पथ दर्शक भी होय।
पथिक,पंथ मंजिल मिले, सागर सरिता तोय।
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उच्च मार्ग अवधारणा, सोच विचारों उच्च।
जातिवर्ग मजहब नहीं,उन्नति लक्ष्य समुच्च।।
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पाँव धरातल पर रहें, दृष्टि भले आकाश।
चलिए सतत सुपंथ ही, होंगे नवल विकास।।
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रोशन करो सुपंथ को, सुदृढ स्वच्छ विचार।
रीत प्रीत विश्वास का, करिए सदा प्रचार।।
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नई साल नव पंथ से , मिले नए सद्भाव।
दीन गरीब किसान के, अब तो मिटे अभाव।।
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नव पथ नूतन वर्ष के, संकल्पी संदेश।
नूतन सृजन सँवारिए, नूतन हो परिवेश।।
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क्रिसमस का त्यौहार है, सर्व देश परदेश।
सबको ये खुशियाँ रहें, मिले न दुखिया वेश।!
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शांता क्रिसमस में बने, जैसे दानी कर्ण।
दीन हीन दिव्यांग को, लगता अन्न सुवर्ण।।
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बनो शांता क्लाज करो, उपहारी शृंगार।
मानव बम आतंक सब, करदें शीत अंगार।।
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नव पथ नूतन साल के, लिख दोहे इकतीस।
शर्मा क्रिसमस पे करे, नमन मसीहा ईस।।


© बाबू लाल शर्मा “बौहरा”, विज्ञ

नव वर्ष का अभिनंदन

१)
बीते लम्हों की तरह
अब के पल यूँ  ना बीत जाए
तो आओ कुछ इरादों को ,कुछ वादों को
संकल्पों से पूरा करें
मस्त होकर जन-जन।
नव वर्ष का अभिनंदन।।


२)
दुख के घड़ी  बहुत बितायें
अब कुछ अच्छा हो जीवन में
हमें नित प्रगति  करना है
गांधी मत की संगति करना है
तोड़ परवश का बंधन।
नव वर्ष का अभिनंदन।।

३)
गुजरे जमाने को दबाए हुए
इतिहास के पन्नों पर।
खुली किताब रहे नया जमाना
ताकि भीनी खुशबू से उड़े,
प्रेम ,अहिंसा ,अमन।
नव वर्ष का अभिनंदन।।


४)
चेहरों पर मुस्कान खिले
मन के सारे ग़म घुले
सजाये ऐसी काव्य रंगोली
बने रात दीवाली और दिवस होली
हंसे निश्छल,जैसे कोई बचपन।
नव वर्ष का अभिनंदन।।


✒️ मनीभाई’नवरत्न’

आज लगने लगा मौसम नया

आज लगने लगा मौसम नया ,
नई कुछ बात है ।
सूरज की रज को छेड़ती
शबनम की बरसात है।
खिल उठे सबके मन की कली
हुई कैसी करामात है।
थिरक रहा गगन पवन
गा रहा डाल पात है ।
जुड़ रहे सब के दिल यहां
बंध रहा एक एक नात है।
उत्सव मनाता जन-जन
मानो इस साल की बारात है।
और सही तो है नव वर्ष आया
दूल्हे की तरह ।
और शायद इसी वजह ।
टूट रहे हैं सबके मन के बंधन।
मेरी तरफ से आप लोगों को
“नव वर्ष का अभिनंदन”।

 मनीभाई ‘नवरत्न’, 

नव वर्ष का अभिनंदन

सांसे चलना भूल जाये
दिल धड़कना भूल जाये
सूरज चमकना भूल जाये
पानी बहना भूल जाये
कोई परवाह नही,कोई शिकवा नही
मगर तू भूल जाये
एक पल,एक लम्हा के लिए
मुझे यह गवारा नही
ना भूलो तुम,ना भूले हम
ना भूले ये रिश्ता अपनी बंधन
नव वर्ष की अभिनंदन ।

मनीभाई नवरत्न

हैप्पी न्यू ईयर

लम्हा-लम्हा फिसल चला है ,समय की डोर।
छोड़ो भी जाने दो ,आ गई उजली भोर ।
दिल तो खुशियां चाहे ,ज्यादा ज्यादा मोर ।
आज अभी जो मिला है ,मिलेगा क्या और?
तो चले आओ मेरे निअर,
नाचो गाओ मेरे डियर ।
सेलिब्रेट करेंगे ….बोलके चीअर।
हैप्पी न्यू ईयर, हैप्पी न्यू ईयर।
ओ माय डिअर , सेलिब्रेट विथ चीयर ।
हैप्पी न्यू ईयर, हैप्पी न्यू ईयर।

मनीभाई नवरत्न

नव वर्ष आया सखी

शीतल बयार लिये,
       नूतन श्रृंगार किये,
              नव वर्ष आया सखी,
                       कलश  सजाइए !
नव उपहार लिये,
     नवल निखार लिये,
             खुशियाँ अपार लिये,
                          आनंद मनाइए!
बागन बहार लिये
        फूलन के हार लिये,
              भ्रमर गुंजार लिये
                           तोरण बंधाइए!
सुमन सुगंध लिये,
     नव मकरंद लिये,
             हृदय उमंग लिये,
                      उत्सव मनाइए!
विगत बिसार दीजे
     अनुभव सार लीजे
            श्रम अंगीकार कीजे
                        आगे बढ़ जाइए।
छल छिद्र त्याग कर,
       राग द्वेष राख कर,
                निर्मल हृदय धर,
                           प्रेम अपनाइए!
काम ऐसे नेक करें,
     उन्नति की सीढ़ी चढ़ें,
              देश व समाज बढ़े,
                      सोचिए विचारिए!
स्वार्थ भाव फेंक कर,
       विनय विवेक  भर ,
                राष्ट्र के विकास का जी
                             संकल्प बनाइये!

             ——— सुश्री गीता उपाध्याय

स्वागत नव वर्ष

स्वागत नव वर्ष , नूतन रहे हर्ष
स्वागत तुम्हारा , सहर्ष नव वर्ष
नूतन वर्ष का फैला रहे उजास ,
नव वर्ष में हो अब , नया उत्कर्ष ।
दे दो तुम ऐसा अब , सुधा अमृत
पुराना सभी हो जाए , विस्मृत
नसीब बदल जाए , सबका अब तो ,
काम होने लगें सभी के , उत्तम ।
नयी सोच विचार , नया हो अंदाज़
कर दें पुराने को , नजरअंदाज
ईर्ष्या , छल – कपट , निकालें मन से ,
रह न पाये अब , कोई धोखेबाज़ ।
भर लो नव चेतना , हर्षोल्लास
नज़दीकियाँ सभी को , आएँ रास
मुस्काते चेहरे खिलें , फूल सम ,
खुशियाँ लाएँ , पूरी हो हर आस ।
सुख – समृद्धि हो , कायम शांति हो
सुख सपनों में , नयी क्रांति हो
मानवता का दीप , जले हर ओर ,
नव वर्ष में , कोई भी न भ्रांति हो ।
हरित हरियाली लिए , हो संसार
छाये जीवन में , चहुँ ओर बहार
नूतन वर्ष का करने , अभिनंदन ,
शुभकामना देते , हम बार – बार ।

रवि रश्मि ‘ अनुभूति ‘

नये साल की शुभकामना

विधान :—    सुगीतिका छंद ( 25 मात्रा )
       आदि लघु (1)पदांत दीर्घ लघु (21)
                     यति (15,10 )

गुजरते पुराने साल का,
                        हृदय से आभार।
नये साल की शुभकामना,
                        कीजिए स्वीकार।

अबतक जो अनुभव मिले हैं
                          रखेंगे वह याद।
      कुछ नया फिरसे करने का,
                          करके शंखनाद।
      शुभ भावों से हृदय भरकर,
                             करें मंगलचार।
नये साल की शुभकामना,
                          कीजिये स्वीकार!

हम विगत पलों से सीख ले,
                        कर नवल अनुमान।
नव पथ पर चल पड़े हैं अब,
                         नव सृजन की ठान।
नयी सोच लेकर बढ़ चले,
                               भर प्रेम उद्गार।
नये साल की शुभकामना,
                            कीजिये स्वीकार।

शुभमय हो आपका हर पल,
                         मिले सुख उपहार।
खुशियों से हो दामन भरा,
                         मिले न कभी हार।
सदाचार जीवन में भरे,
                          करें सब उपकार।
नये साल की शुभकामना,
                          कीजिये स्वीकार!

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                 ✍सुश्री गीता उपाध्याय

स्वागत! जीवन के नवल वर्ष

स्वागत! जीवन के नवल वर्ष
आओ, नूतन-निर्माण लिये
इस महा जागरण के युग में,
जागृत जीवन अभिमान लिये।

दीनों-दुखियों का मान लिये,
मानवता का कल्याण लिये।
स्वागत! नवयुग के नवल वर्ष
तुम आओ स्वर्ण-विहान लिये।

संसार क्षितिज पर महाक्रान्ति
की चालाओं के गान लिये,
मेरे भारत के लिए नई
प्रेरणा, नया उत्साह लिये;

मुर्दा शरीर में नये प्राण
प्राणों में नव अरमान लिये,
स्वागत! स्वागत! मेरे आगत!
तुम आओ स्वर्ण-विहान लिये।

युग-युग तक नित पिसते आये,
कृषकों को जीवन-दान लिये,
कंकाल मान रह गये शेष,
मज़दूरों का नव माण लिये।

श्रमिकों का नव संगठन लिये,
पददलितों का उत्थान लिये,
स्वागत ! स्वागत! मेरे आगत
आओ तुम स्वर्ण विहान लिये।


जीवन की नूतन क्रान्ति लिये
क्रान्ति में नये-नये बलिदान लिये
स्वागत ! जीवन के नवल वर्ष
आओ, तुम स्वर्ण-विहाल लिये।

नव वर्ष का सवेरा

नये साल का आया पावन सवेरा
पावन पवित्र कर दे मन तेरा मेरा |

फूलों सा कलियों सा मन मुस्करायें
भौंरों के गीतों सा हम गुनगुनायें
धरती गगन गूंजें चिड़ियों का कलरव
आओ मन की माला में हम गूथ जायें

मोहक मनोहर लगे दुनिया प्यारा |
नये साल का आया पावन सवेरा ||

अम्बर के रंगों से धरती सजायें
पतंगों के तारों से नभ जगमगाये
नदियों के निर्मल धारा सा जीवन
झरनों के जल सा प्रेम झरझरायें,

नूतन हवा नव बहे जीवन धारा |
नये साल का आया पावन सवेरा ||

अरुण लालिमा का तिलक हम लगायें
सफलता के पथ पर कदम हम बढ़ायें
सुखमय सुनहरा नवल प्रवाह पल में
कठिन जिंदगी को सरल हम बनायें,

सुख समृद्धि का हो दिल में बसेरा |
नये साल का आया पावन सवेरा ||

हरियाली फसलों सा तन झूम जाए
धन धान्य से पूर्ण आंगन मन भाये
सफलता कदम चूमती जाये हर पल
नव वर्ष की ढेरों शुभकामनाएं |

मिटेगा गमों का कुहासा अंधेरा |
नये साल का आया पावन सवेरा ||

रचनाकार-रामबृक्ष बहादुरपुरी,अम्बेडकरनगर

नए साल की सबको शुभ मंगल बधाई

सुबह सवेरे कूकी कोयल चिड़िया चहचहाई
आँखें खुलते ही नई नवेली पहली किरण मुस्काई
मेरे दिल की गहराइयों से सबसे पहले
नए साल की सबको शुभ मंगल बधाई

धरती पर ओस की चादर लिपट लिपट आई
बाग में खिली कली खुलकर खिलखिलाई
देखो नाच-नाच कर तितलियाँ भी दे रही
नए साल की सबको शुभ मंगल बधाई

ठंडी हवा ने चारों तरफ अपनी हुकूमत जमाई
पर बच्चे-बूढ़े सबने छोड़ी अपनी-अपनी रजाई
दीवानों सा जोश लेकर देने निकले हैं सभी
नए साल की सबको शुभ मंगल बधाई

नए साल के स्वागत में सबने पलकें हैं बिछाई
सभी बालाओं ने द्वार पर रंगोली है बनाई
झूम झूम कर मस्ती में दे रहे हैं सारे
नए साल की सबको शुभ मंगल बधाई

फोड़े पटाखे बच्चों ने फुलझड़ियाँ जलाई
ठूँस-ठूँस कर खिला रहे एक दूजे को मिठाई
सबकी जुबान पर चढ़ा है बस एक ही राग
नए साल की सबको शुभ मंगल बधाई

मंदिर में मूरत के आगे सब ने कतार लगाई
श्रद्धा सुमन अर्पित कर ईश्वर की वंदना गाई
शुभ मंगल प्रीतिमय आशीष की कामना संग
नए साल की सबको शुभ मंगल बधाई

आशीष कुमार
मोहनिया, कैमूर, बिहार

नव वर्ष पर कुण्डलिया छन्द

आया  नूतन  वर्ष यह ,चहुँ दिश भरा उमंग l
हुआ  प्रफुल्लित  देख  मन ,सदा रहे ये रंग ll
सदा  रहे  ये  रंग , मिलें  खुशियाँ  मनचाहीं I
रहे समय अनुकूल , मिटें घड़ियाँ अनचाहीं ll
कह ‘माधव’कविराय ,पड़े न दुःख की छाया I
उन्नति  करो  हज़ार , साल सुन्दर जो आया Il

प्यारा लगता है बहुत , देख  गज़ब उल्लास I
दिन – दूना निशि चौगुना , होता रहे विकास ll
होता   रहे  विकास , मिले  सम्मान  प्रतिष्ठा l
धन  वैभव  भरपूर , सदा  उत्तम  हो  निष्ठा Il
कह ‘माधव’कविराय ,तुम्हें फल दे यह न्यारा l
नशा व्यसन  कर त्याग , वर्ष नूतन ये प्यारा ll

#स्वरचित
#सन्तोष कुमार प्रजापति “माधव”
#कस्बा,पो. – कबरई जिला – महोबा(उ. प्र.) 
     

खुशहाल हो नववर्ष – महदीप जंघेल

भूले बिसरे ,बीते कल को,
भूले दुःख संताप के गम।
पुलकित होगा रोम-रोम,
मन हर्षित होगा अनुपम ।।

रवि स्वरूप उज्ज्वलित हो जीवन,
चाँद -सा दमकता रहे ।
धन संपदा की हो बरसात,
भाग्य का हीरा चमकता रहे।।

नव वर्ष लाए जीवन में उजाले,
खुले आपके भाग्य के ताले।
सदैव आशीर्वाद मिले उस ईश्वर का,
जो सम्पूर्ण जगत को पाले।।

जिंदगी में, न कोई गम हो,
आँखे,न कभी नम हो।
मनोकामनाएँ हो पूर्ण सभी,
कि खुशियाँ, न कभी कम हो।।

सब जीवों से प्रेम करो और,
खुशियाँ बाँटो अपार।
बुराइयाँ दूर करो,नववर्ष में
अपनाओ सदैव सदाचार।।

माँ वसुधा का सम्मान करें,
वृक्ष लगाकर करें श्रृंगार।
जल का हम सदुपयोग करें,
करें सदैव परोपकार।।

सेवा और सत्कार करे हम,
मानवता का कार्य करे हम।
औरों को सुख पहुंचाने को,
परमार्थ का ध्यान धरे हम।।

नूतन वर्ष में ऐसा कुछ कर जाएँ,
कि,जिंदगी खुशियों से भर जाये।
सत्कर्मो की करें कमाई,
नववर्ष की आप सबको,
बहुत बहुत बधाई।।


महदीप जंघेल
निवास-खमतराई
तहसील-खैरागढ़
जिला -राजनांदगांव(छ.ग)

नव वर्ष का स्वागत करें

भुलाकर शिकवा गिले
नव वर्ष का स्वागत करें

आया नववर्ष हमारे द्वार
दस्तक दे रहा बारम्बार
बीते बरस की बातों को
हम दें अब तो बिसार
नये विचारों का नवागत करें ।।1
नववर्ष का स्वागत करें •••

बाँटे खुशियाँ आपस में
हो बस प्यार ही प्यार
नव संकल्प लेकर हम
भेदभाव मिटा दें यार
विचारों में अपने आगत करें ।।2
नववर्ष का स्वागत करें •••

सबसे भाव प्रेम नेह का
दोस्ती का दें उपहार
अभिनंदन के साथ है
सपना का नमस्कार
गलत बातों को अनागत करें ।। 3
नववर्ष का स्वागत करें •••

अनिता मंदिलवार सपना
अंबिकापुर सरगुजा छतीसगढ़

नववर्ष की शुभकामनाएँ

नववर्ष की शुभकामनाएँ ,
आओ हम खुशी मनाएँ ।

विनाश का रास्ता छोड़कर,
प्रगति पथ पर बढ़ते जाएँ ।

संदेश यही है नववर्ष पर,
दीप सा हम जलते जाएँ ।

साहस रखना कभी न डरना,
यही लक्ष्य हम धरते जाएँ ।

जैसे दीप बाती संगी साथी,
हम भी साथ निभाते जाएँ ।

निराश कभी न होना सपना,
उजास दिलों में भरते जाएँ ।

अनिता मंदिलवार सपना
अंबिकापुर सरगुजा छतीसगढ़

नव वर्ष में हो नवसृजन

नव वर्ष में हो नवसृजन
सदभावना से करे अभिनंदन
उज्जवल मय जीवन में हो हषॆ
ऐसा हो सबका नववर्ष

आपकी आँखों में सजे है जो भी सपने,
और दिल में छुपी है जो भी आशायें!
यह नया साल उन्हें सच कर जाए;
आप के लिए यही है हमारी शुभकामनायें

अनिता मंदिलवार “सपना”
अंबिकापुर सरगुजा छतीसगढ़

शुभ आगमन हे नव वर्ष

शुभ आगमन हे नव वर्ष
शुभ आगमन हे नव वर्ष
वंदन अर्चन हे नूतन वर्ष
अभिनंदन हे नवागत वर्ष
नतमस्तक नमन हे नव्य वर्ष।

खुशियों की सौगात लाना,
रोशनी की बरसात लाना,
चंद्रिका की शीतलता बरसाना
नव सृजन मधुमास लाना।


क्लेष, विषाद,कष्ट मिटाना
जो बीत चुका अतीत बुरा
उसको न तुम पुन: दोहराना
कातर मन का क्रंदन धो जाना।


नफ़रत मिटाना उल्फत जगाना
दर्द का तुम मर्ज़ लाना
सावन प्यासा है मेरे मन का
मधुरिम झड़ी फुहार लाना।


मधुर हास परिहास बनकर
पीड़ा का संसार हरकर,
आहट अपनी मुझको दे जाना
तप्त निदाघ में भी कुसुम खिलाना।


दहलीज़ पर रंगोली बनकर
मेरे मन का बुझा दीप जलाना
बचपन की वो हंसी ठिठोली लाना
कैद है जिसमें खुशियों का खज़ाना।

नव प्रीत लिए नव भाव लिए
आशाओं का अंबार लिए
धीरे से हँसकर आना
नव प्राण जीवन में जगाना।


कितने ही नववर्ष आए
मर्म मन का मेरा समझ न पाए
आतप में भी स्निग्धता लाना
शूलों में व्यथित कुसुम खिलाना।


हे नूतन वर्ष आशा है तुझसे
राग द्वेष रहें दूर मुझसे
रूठे हुए को सद्भाव देना
माँ वीणापाणि का आशीष देना।


हर हाल में हर रूप में
शुभ मंगलमय विहान लाना
सुबरन कलम का धनी बनाना
सर्वे भवन्तु सुखिन:का भाव लाना।

कुसुम लता पुंडोरा

साल जो बदला है

साल जो बदला है तो थाली को बदल दो,
कानों में लटकती हुई बाली को बदल दो।
नए साल में कुछ ऐसा कमाल तो कर लो
साले को बदल दो औ साली को बदल दो।।1


काम बदलना है तो सीवी को बदल दो,
गाड़ी को बदल दो औ टीवी को बदल दो।
नए साल में कुछ ऐसा धमाल तो कर लो,
हो गयी पुरानी तो……बीवी को बदल दो।।2


खाना जो पकाना है तो चूल्हे को बदल दो,
दर्द अगर होता है तो कूल्हे को बदल दो।
नए साल में कुछ ऐसा निहाल तो कर लो
हो गया पुराना तो…..दूल्हे को बदल दो।।3


हाल जो बेहाल है तो फिर हाल बदल दो,
धीमी पड़ी रफ्तार तो फिर चाल बदल दो।
नए साल में कुछ ऐसा बवाल तो कर दो,
मिल गया ठिकाना तो ससुराल बदल दो।।4

पैकेट वही रक्खो मगर सामान बदल दो,
पड़ोसन जो तड़पाये तो मकान बदल दो।
राहुल का मरियम से तो निकाह करा दो,
दहेज में फिर पूरा पाकिस्तान बदल दो।।5


शाह को मिलता है जो सत्कार बदल दो।
काम कराने का वो…संस्कार बदल दो
सरकार का जो काम है वो काम तो करे,
सो गयी सरकार तो… सरकार बदल दो।6

दुश्मनी की सारी वो.. तकरार बदल दो,
अपनों के लहू से सने तलवार बदल दो।
पत्थर जो चलाये उसे उसपार तो भेजो,
जो डूब रही नौका तो पतवार बदल दो।।7


अब पाक परस्ती के समाचार बदल दो,
नापाक इरादों का वो व्यवहार बदल दो।
कश्मीर जो मांगे तो तुम लाहौर को घेरो,
भारत का पुराना वही आकार बदल दो।।8


©पंकज प्रियम

ऐ नववर्ष !

आज सारा विश्व उल्लसित है
नव वर्ष में नव-उमंगों के साथ,
विगत की खट्टी-मीठी यादों को,
इतिहास के पन्नों में बाँट,
स्वागत है तेरा.. नया साल !
प्रतिक्षित नयन तुम्हें निहार रहे हैं
लेकर कई सवाल।

शायद!तुम कुछ नया छोड़ सको
और भारत के इतिहास में
स्वर्णिम-पन्ने जोड़ सको

क्या सत्य ही तुम
कुछ कर पाओगे?
देश के गहरे जख़्म भर पाओगे ?

अरे!!
देश का एक वर्ग तो
तुम्हें जानता ही नहीं ।
क्या है नववर्ष?क्या उमंगें?क्या हर्ष?

जिनकी सुबह भूख से होती हो ,
तब रात खाने को सूखी रोटी हो।
और किसी-किसी को वो भी नसीब नहीं,
बदन पर कपड़े
और सिर पर छत भी नहीं,
वो क्या जाने क्या है नया साल ?
जो जीवन जीते हैं खस्ता हाल।

इन झूठे स्वप्न और आडंबरों से,
दिन और महीनों के व्यर्थ कैलेंडरों से
उनका क्या वास्ता?
जिनका जीवन है काँटों भरा रास्ता ।

जिस दिन उनके घर चुल्हा जलता है
आँखों में नववर्ष का सपना पलता है।

झाँककर देखो उनके दिलों में,
उनको साल का कुछ पता नहीं
जो जीते हैं फूटपाथ पर
और मरते भी वहीं हैं।
न हो नसीब जिनके लाशों को क़फन
उनके जीवन में कभी नववर्ष होता नहीं है ।

ऐ नववर्ष!
क्या सच में तुम.. कुछ कर पाओगे ?
भूखों को रोटी, गरीबों को घर दे पाओगे?
हिंसाग्रस्त देश को, कोई राह दोगे?
नफरत भरे दिलों में, चाह दोगे?

गर ऐसा है तुम्हारे दामन में कुछ
तो स्वागत है तुम्हारा हर्षित मन से
वरना तुम भी यूँ ही बीत जाओगे
बीते वर्ष की तरह रीत जाओगे।।

सुधा शर्मा
राजिम छत्तीसगढ़

ऐ नववर्ष !

आज सारा विश्व उल्लसित है
नव वर्ष में नव-उमंगों के साथ,
विगत की खट्टी-मीठी यादों को,
इतिहास के पन्नों में बाँट,
स्वागत है तेरा.. नया साल !
प्रतिक्षित नयन तुम्हें निहार रहे हैं
लेकर कई सवाल।

शायद!तुम कुछ नया छोड़ सको
और भारत के इतिहास में
स्वर्णिम-पन्ने जोड़ सको

क्या सत्य ही तुम
कुछ कर पाओगे?
देश के गहरे जख़्म भर पाओगे ?

अरे!!
देश का एक वर्ग तो
तुम्हें जानता ही नहीं ।
क्या है नववर्ष?क्या उमंगें?क्या हर्ष?

जिनकी सुबह भूख से होती हो ,
तब रात खाने को सूखी रोटी हो।
और किसी-किसी को वो भी नसीब नहीं,
बदन पर कपड़े
और सिर पर छत भी नहीं,
वो क्या जाने क्या है नया साल ?
जो जीवन जीते हैं खस्ता हाल।

इन झूठे स्वप्न और आडंबरों से,
दिन और महीनों के व्यर्थ कैलेंडरों से
उनका क्या वास्ता?
जिनका जीवन है काँटों भरा रास्ता ।

जिस दिन उनके घर चुल्हा जलता है
आँखों में नववर्ष का सपना पलता है।

झाँककर देखो उनके दिलों में,
उनको साल का कुछ पता नहीं
जो जीते हैं फूटपाथ पर
और मरते भी वहीं हैं।
न हो नसीब जिनके लाशों को क़फन
उनके जीवन में कभी नववर्ष होता नहीं है ।

ऐ नववर्ष!
क्या सच में तुम.. कुछ कर पाओगे ?
भूखों को रोटी, गरीबों को घर दे पाओगे?
हिंसाग्रस्त देश को, कोई राह दोगे?
नफरत भरे दिलों में, चाह दोगे?

गर ऐसा है तुम्हारे दामन में कुछ
तो स्वागत है तुम्हारा हर्षित मन से
वरना तुम भी यूँ ही बीत जाओगे
बीते वर्ष की तरह रीत जाओगे।।

नव वर्षारंभ

नव वर्षारंभ पर
मिट जाए सारे कलंक,
हो जायें जुदाई-जुदाई
नव वर्ष की बधाई-बधाई
बज उठी उमंग बिगुल,
अंतरपट की है वफाई।
जिन्दगी जन्नत सी हो,
न हों कोई हरजाई…
नव वर्ष की बधाई-बधाई
दसों दिशाओं से मिले,
सफल प्रखर मधुराई।
मधुर-मधुर जीवन पथ,
बनी रहे सुखदाई…
नव वर्ष की बधाई-बधाई
अनुपम आप जगत के,
न हो कभी तन्हाई ।
सुखद के पीहूर और
विजयी के बजे शहनाई…
नव वर्ष की बधाई-बधाई
नव वर्षारंभ पर
मिट जाए सारे कलंक,
हो जायें जुदाई-जुदाई
नव वर्ष की बधाई-बधाई

जगत नरेश

नए -वर्ष का नया सवेरा आने वाला है :-

कुछ बीत गया है और कुछ आने वाला है ।
एक वर्ष जीवन से और घट-जाने वाला है ।

खट्टे – मीठे कुछ यादें मन मे छुपे हुए है ।
जो कभी हँसाने तो कभी रुलाने वाला है ।

लड़खड़ाना मत नए मोड़ देख कर सफऱ में ,
क्योंकि गिरे तो यहां नही कोई उठाने वाला है ।

अपने मन की बस सुनना आगे इस सफर में ।
क्योंकिं हरेक व्यक्ति राह से भटकाने वाला है।

वक्त के साथ चलोगे ग़र वक्त के हिसाब से ।
तो वो तुम्हें मंजिल के क़रीब लेजाने वाला है ।

सारे गीले-शिकवे मिटा दो हर गम मन से हटा दो ।
आने वाला पल अनन्त खुशियां लाने वाला है ।

जो बीत गई सो बात गई भूला दो बीतें लम्हों को ।
क्योंकिं नए -वर्ष का नया सवेरा आने वाला है ।

-आरव शुक्ला रायपुर , (छ .ग)

है भास्कर तेरी प्रथम किरण

है भास्कर तेरी प्रथम किरण,
जब वर्ष नया प्रारम्भ करे।
जन जन की पीड़ा तिरोहित कर,
नव खुशियो को प्रारम्भ करे।
इस धरती,धरा, भू,धरणी पर,
मानवता का श्रृंगार झरे।
अब विनयशील हो प्राणी यहाँ,
बस भस्म तू सबका दम्भ करे।
है भास्कर तेरी……..

तेरा-मेरा,मेरा-तेरा सब,
त्याग के नव निर्माण करे।
आपस में ऐसा समन्वय हो,
मिल सृष्टि का कल्याण करे।
उत्पात,उपद्रव,झगड़ो का,
क्या मोल है ये आभास रहे।
भाईचारे का कर विकास,
हर धर्म का हम परित्राण करे।
है भास्कर तेरी…..

अब देख मनुज की पीड़ा को,
आँखों में नीर निरन्तर हो।
दुःख दर्द सभी का साझा रहे,
मानवता अंत अनन्तर हो।
उत्तुंग शिखर पर संस्कृतियां,
गाएं केवल भारत माँ को।
निज देश हित बलि प्राणों की,
प्रणनम्य, जन्म जन्मान्तर हो।

जब जब भी धर्म ध्वजा फहरे,
तिरंगा वहाँ अनिवार्य रहे।
उद्घोषित कोम का नारा जहाँ,
जय हिन्द सदा स्वीकार्य रहें।
गीता,कुरान,गुरु ग्रंथ साहब,
बाइबिल के रस की धार बहे।
सब माने अपने धर्म यहाँ,
पर भारत माँ शिरोधार्य रहें।

हर पल हर क्षण जननी का हो,
हर भोंर रम्य,अभिराम रहे।
सुरलोक स्वर्ग धरा पर हो,
मनभावन नित्य जहाँन रहे।
माँ भारती जग में हो विख्यात,
ब्रम्हांड ही हिंदुस्तान बने।
मन में सबके वन्दे मातरम् ,
और मुख से जन गण गान रहे।

   विपिन वत्सल शर्मा
       सागवाडा(राज.)

स्वागत नूतन वर्ष

नूतन वर्ष लेकर आये,
           नव आशाओं का संचार।
नई सोच व नई उमंग से,
            मानवता की हो जयकार।।
कठिन राहों का साहस से,
            डटकर करें सदा सामना।
खुशियाँ लेकर आये उन्नीस।
             नव वर्ष की शुभकामना।।
प्रेम भाव का दीप जले,
             हो हर मन में उजियारा।
सारे जग में अब बन जाये,
             अपना ही यह भारत प्यारा।।
जले ज्ञान का दीपक सदा,
              मिटे जगत से अंधकार।….
नूतन वर्ष लेकर आये,
           नव आशाओं का संचार।
नई सोच व नई उमंग से,
            मानवता की हो जयकार।। …..
बँधे एकता सूत्र में हम सब,
            नव वर्ष में मिले यही वरदान।
भारत भू की एकता जग में,
             बन जाये सबकी पहचान।।
मिट जाये हर मन से अब,
             राग द्वेष का मैल सारा।
किरणें फैले पावनता की,
             हर आँगन खुशियों की धारा।।
अन्तः मन की जगे चेतना,
            बहे मानवता की अब धार।।….
नूतन वर्ष लेकर आये,
           नव आशाओं का संचार।
नई सोच व नई उमंग से,
            मानवता की हो जयकार।। ……
                   ……….भुवन बिष्ट
                   रानीखेत (उत्तराखंड )

नावां बछर आगे

हित पिरित जोरियाइ के एदे आगे रे संगी।
नावां नावां सीखे के करव ,
नावां बछर आगे रे संगी।

जून्ना पीरा बिसरा के , निकता बुता करव ग।
चारी चुगली भूला के , मया के सुरता करव ग।
सत ईमान ल हिरदे म भर ले,
जिन्गी म तोर कदर आगे रे संगी।
नावां बछर आगे रे संगी
नशा ल बैरी बना के, तन ल बने सिरजावव।
नोनी बाबू ल पढ़ा लिखा के, परिवार ल अंजोर करावव।
जम्मो के हांसी मुख म लाके, जिन्गी म तोर सुधार आही रे संगी।
नावां बछर आगे रे संगी। पान झरे ड़ोंगरी अप

न के, हरियाय के परन करले।
सुग्घर होही फूल फुलवारी, जियरा म गुनन करले।
मेहनत कर ले चेत लगाके,
जिन्गी के नावां पीका उलहा जाही रे संगी।
नावां बतर आगे रे संगी।

नावां बछर आगे रे संगी, नावां बछर आगे जी।
नाम बगर जाही रे संगी, नावां बछर आगे जी।

तेरस कैवर्त्य (आँसू)
सोनाडुला, (बिलाईगढ़)
जि. – बलौदाबाजार (छ. ग.)

लेकर आया नूतन वर्ष

नव आशाओं की किरणें,
लेकर आया नूतन वर्ष।
       अब धरा में फैले हरियाली,
       शीश में हो खुशहाल कलश।
हिंसा बैर भाव अज्ञानता,
मिटे जग से यह कटुता।
        ज्ञान के चक्षु खुल जायें,
        मानव मानवता दिखलायें।
बिते वर्ष दशक युगान्तर,
मिटा न पाये कालान्तर।
        व्याप्त जग में है भयंकर,
        राजा रंक का ही अंतर।
एक बगिया के हैं फूल,
रंग भिन्न एक हैं धूल।
        एक है सबका बनवारी,
        सिंचे मानवता की क्यारी।
राग द्वेष की बहे न धारा,
हिंसा मुक्त हो जगत हमारा।
         सद्गगुणों को हम अपनाकर,
         झलक एकता की दिखलाकर।
नमन करें सदा भारत माता को,
चहुँ दिशा में खुशहाली फैलाकर ।
           सोच नई व नई उमंग से,
           भर दें ज्ञान का अब तरकश।
नव आशाओं की किरणें,
लेकर आया नूतन वर्ष।।
         

      …….भुवन बिष्ट
            रानीखेत (उत्तराखंड )

नव वर्ष ये लाया है बहार

नव वर्ष ये लाया है बहार,
  फैले खुशियाँ जीवन अपार।
    मंगल छाये घर घर बसंत,
       दुख दर्द मिटे पीड़ा तुरन्त।।
         
पावन फूलों की बेला हो,
    जीवन बस प्रीति मेला हो।
      हर आँगन गूंजे किलकारी,
         मनभावन फूलों की क्यारी।।
                     
झनके वीणा के सुगम तार,
  सुर की सरिता की सरल धार।
     उन्नति पाओ उतंग शिखर,
       आखर नवल बन हो प्रखर।।

कर दो प्रकृति सुंदर श्रृंगार,
  हर युवा के कांधे पे हो भार।
    जीवन मधुमास सा प्यारा हो,
       ये देश हमारा न्यारा हो।।

सुख जंगल मंगल छा जाये,
   धन की वर्षा मिलकर पाये।
       चहूँ दिश में फैले प्रेम प्यार,
          नव वर्ष का लो मीठा उपहार।।

सरिता सिंघई कोहिनूर

नववर्ष पर कविता

पलकें बिछाए खड़े हम सभी
दिलों में है हमारे अपार हर्ष
शुभ मंगल की कामना संग
स्वागत है तुम्हारा हे नववर्ष!

रसधार बहे सर्वदा प्रेम की
सुख समृद्धि में हो उत्कर्ष
सर्वत्र शांति की कामना संग
स्वागत है तुम्हारा हे नववर्ष!

सत्य अहिंसा परम धर्म बने
नैतिक मूल्य हो हमारे आदर्श
सर्व कल्याण की कामना संग
स्वागत है तुम्हारा हे नववर्ष!

सम्बंधित रचनाएँ

चढ़ें सीढ़ियाँ सफलता की
ज्ञान विज्ञान से छू लें अर्श
जग प्रसिद्धि की कामना संग
स्वागत है तुम्हारा हे नववर्ष!

प्रगति रथ की तीव्र गति से
आनंदित हो हमारा भारतवर्ष
आशीष वर्षा की कामना संग
स्वागत है तुम्हारा हे नववर्ष!

आशीष कुमार
मोहनिया, कैमूर, बिहार

पद्मा के दोहे – मंगल हो नववर्ष

दास चरण नित राखिए, हे सतगुरु भगवान ।
विघ्न हरो मंगल करो, शुभता दो वरदान।।1

मंगल हो नव वर्ष में , ऐसा दो वरदान।
त्रास हरो संसार का, हे कृपालु भगवान।।2

कोरोना के त्रास में, सत्र बिताएँ बीस।
स्वास्थ्य खुशी सौभाग्य दें, मंगल हो इक्कीस।।3

लेकर नूतन वर्ष को, मन में भरे उमंग।
मंगल सबका काज हो, बाजे खुशी मृदंग।।4

बुरे कर्म करना नहीं, करना है सत्कर्म ।
मंगलकारी काज हो, करो परमार्थ धर्म।।5

नए वर्ष में प्रण करें , वसुधा करें श्रृंगार ।
जंगल में मंगल सदा, वृक्ष बने उपहार।।6

नया वर्ष खुशियों भरा , गाओ मंगल गीत ।
छोड़ो कटुता बढ़ चलो, मन में रखकर प्रीत।।7

करें सभी जन प्रार्थना, नया वर्ष हो खास।
हर्षित वसुधा हो सदा, करें पाप का नाश।।8

है कराह रही वसुधा, देख विश्व का ताप ।
शुद्ध वातावरण नहीं, करें घृणित सब पाप।।9

करें ईश से प्रार्थना, नवल सृजन नववर्ष।
सिर पर प्रभु का हाथ हो, करने को उत्कर्ष।।10

नव प्रसंग नव वर्ष में, लेकर चलना साथ ।
धर्म कर्म धारण करो, नवल भोर के हाथ।।11

पद्मा करती कामना, रहें सभी खुशहाल।
मान खुशी ऐश्वर्य से, जीवन सदा निहाल।।12

पद्मा साहू “पर्वणी”
खैरागढ़ राजनांदगांव छत्तीसगढ़

नववर्ष की कामनाएं – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

हर दिन को नए वर्ष की
मंगल कामना से पुष्पित करो
कुछ संकल्प लो तुम
कुछ आदर्श स्थापित करो

हर दिन यूं ही कल में
परिवर्तित हो जाएगा
तूने जो कुछ न पाया तो
सब व्यर्थ हो जाएगा

उद्योग हम नित नए करें
हम नित नए पुष्प विकसित करें
कर्म धरा को अपना लो तुम
हर- क्षण हर -पल को पा लो तुम

समय व्यर्थ जो हो जायेगा
हाथ न तेरे कुछ आएगा
मात – पिता आशीष तले
जीवन को अनुशासित कर
पुण्य संस्कार अपनाकर
अपना कुछ उद्धार करो तुम

इस पुण्य धरा के पावन पुतले
राष्ट्र प्रेम संस्कार धरो तुम
मानवता की सीढ़ी चढ़कर
संस्कृति का चोला लेकर

पुण्य लेखनी बन धरती पर
मानव बन उपकार करो तुम
संकल्पों का बाना बुनकर
नित- नए आदर्श गढो तुम

अपनाकर जीवन में उजाला
नित – नए आयाम बनो तुम
दया पात्र बनकर ना जीना
अन्धकार को दूर करो तुम

हर दिन को नए वर्ष की
मंगल कामना से पुष्पित करो
कुछ संकल्प लो तुम
कुछ आदर्श स्थापित करो

परमेश्वर साहू अंचल: मनहरण घनाक्षरी – नव वर्ष,नव हर्ष

शुरू कर शुभ काज,
मिलेंगे सर पे ताज,
मान भी मिलेंगे ढेरों,
सबको यकीन है।

नव साल मालामाल,
नव काज कर लाल,
नव साल बेमिसाल,
मौसम रंगीन है।।

त्याग आदत बुराई,
कर चल चतुराई,
दूसरों की निंदा करे,
कारज मलिन है।।

वही जन आगे बढ़े,
नित पथ नव गढ़े,
कंटक मेटते चले,,
मनुज शालीन है।।

नव दिन नव वर्ष,
जन-जन नव हर्ष,
स्वागत करने सभी,
मानव तल्लीन है।

पुलकित पोर-पोर,
उमंग है चहुँओर,
इसको मनाने सब,
बिछाए कालीन हैं।

😃🙏🙏🙏😃

✒️पीपी अंचल “गुणखान”

उपमेंद्र सक्सेना: नये वर्ष में मिटे अमंगल

गीत-उपमेंद्र सक्सेना एड.

बीता वर्ष, जुड़ गयीं यादें, वे हमको इतना
दहलाएँ
नये वर्ष में मिटे अमंगल, परम पिता ऐसा कुछ लाएँ।

संघर्षों से जूझ रहे जो, सब दिन उनके लिए बराबर
कोई माथा थामे बैठा, कोई बन जाता यायावर
समय बदल लेता जब करवट, सुख होते उस पर न्योछावर
कोई अब गुमनाम हो गया, कोई दिखता है कद्दावर

दर्द मिला जीवन में इतना, उसको हम कब तक सहलाएँ
नये वर्ष में मिटे अमंगल, परम पिता ऐसा कुछ लाएँ।

आगत का स्वागत हम करते, उस पर हम कितना भी मरते
लेकिन उसको भी जाना है, इस सच्चाई से क्यों डरते
नया नवेला जो भी होता, दु:ख उसको भी यहाँ भिगोता
बीच भँवर में फँसा यहाँ जो, फसल प्रेम की कैसे बोता

वातावरण घिनौना इतना, अब दबंग सबको बहलाएँ
नये वर्ष में मिटे अमंगल, परम पिता ऐसा कुछ लाएँ।

भेदभाव अब फैला इतना, सीधा- सच्चा रोते देखा
कूटनीति पर आधारित क्यों, हुआ योजनाओं का लेखा
कोई धन-दौलत से खेले, कोई भूखा ही सो जाता
कोई चमक रहा तिकड़म से, कोई सपनों में खो जाता

लोग हुए जो अवसरवादी, कैसे वे अपने कहलाएँ
नये वर्ष में मिटे अमंगल, परम पिता ऐसा कुछ लाएँ।

रचनाकार -उपमेंद्र सक्सेना एड०
‘कुमुद- निवास’
बरेली (उ० प्र०)
मोबा० नं०- 98379 44187

फिर वर्ष बदल रहा है : शिवाजी

कहीं पे पानी तो कहीं ओस गिर रही है
कि लगता है यह दिसंबर जाने वाला है
अब इस नव वर्ष की करो तैयारी सभी
अब एक नव वर्ष फिर से आने वाला है

कुछ लोगों की यादें अब, धूमिल होती जा रही हैं
लगता है नए रिश्तों का दामन कोई पकड़ा रहा है
आओ यहां हम सभी मिलजुल कर यूं खुशियां बांटें
हम भुला दें सभी गमों को,नव उत्कर्ष आने वाला है

पुराने साल का गम छोड़ कर हर्षोल्लास भरें हम
अब खुशियां मनाएं हम,नया प्रहर्ष आने वाला है
कि जानें क्या-क्या नया सिखाएगा अब यह साल,
नए तरीके से निखरें,कि पुराना कर्ष जाने वाला है

अब भगाएं हम इस वर्ष यह कोरोना बीमारी को
एक बार फिर से एक और नया वर्ष आने वाला है

शिवाजी के अल्फाज़

राजकुमार मसखरे: नव वर्ष

नववर्ष,नव उत्कर्ष हो
चहुँदिशि हर्ष हो ,
प्रगति के नये सोपान
यथार्थ व आदर्श हो !

कट जाये जीवन में
टीस की झंझावात
बनें सभी क़ाबिल,
अपना ये प्रादर्श हो !

हो माता का आशीष
प्रकृति की हो रक्षा
खुशी से छलके जीवन
हर दिन,हर पल अर्श हो !

राजकुमार मसखरे

इंदुरानी: नव वर्ष दोहे

धीरे धीरे उंगलियाँ, छुड़ा रहा यह वर्ष।
अंग्रेजी नव वर्ष का, मना रहे हम हर्ष।।

उखड़ रही है सांस अब ,बृद्ध दिसम्बर रोय।
जवां जनवरी क्या पता, साथ किस तरह होय।।

पनप रहीं बीमारियां,कैसे मिले निजात।
नव वर्ष,वैक्सीन नई,तभी बनेगी बात।।

बीते वर्ष को अलविदा, ले कर यह विश्वास।
साल नया यह शुभ रहे, हो पूरी हर आस।।

इन्दु,अमरोहा, उत्तर प्रदेश

अकिल खान: नया साल

जीवन में सभी मुश्किल हो जाएं दूर,
चारों दिशाओं में हो हर्ष-उमंग का सूर।
निराश-मन पुनः उठ जाओ,
आलस्य-अहं को दूर भगाओ।
जीवन में हो सफलता का भूचाल,
मुबारक हो सभी को, नया साल।

दूर करो जीवन में अपनी गलती और कमी,
फिर से हमको पुकारा है ये वीरों का ज़मीं।
अपनी कुंठा-द्वेष को है नित हराना,
मुश्किल समय में कभी न घबराना।
मेहनत से करो जीवन में कमाल,
मुबारक हो सभी को, नया साल।

गिरकर उठना जीवन में जिसने सीखा है,
इस जमाने में उसी ने इतिहास लिखा है।
मुड़ कर देखने वालों को कुछ नहीं मिलेगा,
आगे बढ़ने से ही सफलता का चमन खिलेगा।
मेहनत के ताल से मिलाओ ताल,
मुबारक हो सभी को, नया साल।

2021में कोरोना से जीवन हो गया था मुश्किल,
2022में जिन्दगी में खुशियाँ हो जाए शामिल।
जो हो गया भूल जाओ यह जीवन की रीत है,
जो किया मेहनत नित उसी को मिला जीत है।
नव वर्ष में जीवन हो खुशहाल,
मुबारक हो सभी को,नया साल।

घर-परिवार है रिश्तों की क्यारी,
दोस्तों की यारी है सबसे प्यारी।
जिसने खाया है मेहनत का धूल,
उसे मिला है कामयाबी का फूल।
कर्म से पहचानो समय का चाल,
मुबारक हो सभी को,नया साल।

–अकिल खान रायगढ़ जिला- रायगढ़ (छ.ग). पिन – 496440.

स्वागत है नववर्ष तुम्हारा


भूले बिसरे खुशी और ग़म की यादें,
बनती है अतित की इतिहास पुराना।

आने वाले पल में खुशहाली भरा हो,
हार्दिक स्वागत है नववर्ष हो सुहाना।

उगते सूरज की स्वर्णीम मधुर किरणें,
नववर्ष में नव सृजन की सहभागी बनें।

दुःख ग़म से भी दूर रहे दो हजार बाईस,
कोई अनहोनी घटना की दीवार न तने ।

स्वागत है नववर्ष तुम्हारा २०२२ में,
विदा २०२१ के अनेक कष्ट अपार ।

घोर संकट में परिवार की तबाही और,
अनेकों परिवार ने महामारी को झेला है।

अचानक आये अनहोनी की भूचाल को,
प्रकृति ने भी हमारे साथ खूब खेला है।।

बदलते वर्ष की अविस्मरणीय यादें,
कई रहस्यों से भरा दुख भी हजार।

आने वाले वर्ष की शुभ मंगलकामनाएं,
आप सभी के लिए अति लाभदायक हो।

हार्दिक बधाई एवं अनन्त शुभकामनाएं,
तहेदिल से शुक्रिया विदाई में कहने लायक हो।

✍️ सन्त राम सलाम,,,,,✒️
बालोद, छत्तीसगढ़

अर्जुन श्रीवास्तव: (नए वर्ष की हार्दिक बधाई)

आया है नया वर्ष!
मिलकर मनाओ हर्ष!
करो संघर्ष सब प्रेम तरुणाई हो

बिछड़े हुए मीत से!
मिलो जाकर प्रीत से!
दोनों मिल गाओ गीत प्रेम शहनाई हो

ओढ़ करके दुशाला!
आई जब भोर बाला!
पुष्पों की ले माला खुशियां छाई हो

सुनहरे यह पल!
मिलेंगे ना कल!
खुश रहो प्रतिपल नए साल की बधाई हो

स्वरचित अर्जुन श्रीवास्तव सीतापुर (उत्तर प्रदेश)

महदीप जंघेल सर: दोस्ती

दोस्त तुम नववर्ष में,
जीवन में बदलाव जरूर लाओगे।
एक संदेश तेरे नाम,
भरोसा है जरूर निभाओगे।
हर बुराई छोड़ देना,
मेरा साथ मत छोड़ना।
हर वादे तोड़ देना,
मेरा विश्वास मत तोड़ना।
हर धारा मोड़ देना,
मुझसे मुंह मत मोड़ना।
सबसे रिश्ता रखना,
बुराई से मत जोड़ना।
हर वस्तु तोल देना,
मेरी दोस्ती मत तोलना।
वादा कर जीवन भर,
मुझसे संबंध मत तोड़ना।

✍️महदीप जंघेल खमतराई, खैरागढ़ जिला – राजनादगांव(छ.ग)

नववर्ष का अभिनंदन

हर्षोल्लास से सराबोर हुआ
भारतवर्ष का कण कण
शुभ मंगलमय नव वर्ष का
अभिनंदन ! अभिनंदन !

गीत संगीत से गूंज उठा
सुरम्य मधुर वातावरण
रंग बिरंगी फुलझड़ियां जलाकर
अभिनंदन ! अभिनंदन !

नगरी नगरी द्वारे द्वारे
खिल उठा घर आंगन
रंग रंगीली रंगोली बना कर
अभिनंदन ! अभिनंदन !

सुख समृद्धि हो भारतवर्ष में
यश कीर्ति में हो वर्धन
पलक पांवड़े बिछा नूतन वर्ष का
अभिनंदन ! अभिनंदन !

विकास देश का हो अनवरत
खुशहाल हो जनता जनार्दन
मंगल कामना संग नूतन वर्ष का
अभिनंदन ! अभिनंदन !

विनती स्वीकार करो प्रभु
प्रीति पूर्वक है वंदन
सदा बरसे आशीष आपका
अभिनंदन ! अभिनंदन !

– आशीष कुमार, मोहनिया बिहार

राजेश पान्डेय वत्स: सौम्य सवेरा! ( मनहरण घनाक्षरी)

आज रश्मि रसभरी,पौष संग जनवरी,
मकर संक्रान्ति आदि,
पड़े इसी माह में!

नूतन अंग्रेजी वर्ष, सारा जग छाया हर्ष,
सनातन चैत्र मास
दुगुने उत्साह में!

दूसरा जो रविवार,जयन्ती है जयकार,
गुरु श्री गोविंद सिंह,
दिन भी गवाह में!

बारह सवेरा जब, विवेकानंद जन्में तब,
झूमे मास और झूमी
गंगा भी प्रवाह में!
(2)
तेइस दिवस आगे,सुभाष जयन्ती ताके,
जय हिन्द गूँजे नारा,
देश प्रेम चाह में!

गणतंत्र पर्व गिन,शेष है छब्बीस दिन,
तिरंगा भी लहराये,
गली गली राह में!

अट्ठाइस षटतिला,एकादशी पर्व मिला
देव हरि पूजे जायें,
रहना सलाह में!

सवेरा है झिलमिल,नाचे गायें खिल खिल,
वत्स सुख-शांति पाये,
राम की पनाह में!

–राजेश पान्डेय वत्स!

रामनाथ साहू”ननकी”: प्रीत पदावली (वर्तमान)

नववर्ष नवल विधान हो ।
संस्कृति का मधुर गान हो ।।
नवप्रभात नया भान हो
स्थापित अधर मुस्कान हो ।।

चारु चिरंतन चित चंचल ।
मदिर मरुत घुलता संदल ।।
घट घट पर घटे सुमंगल ।
पुलकित प्रस्तर का अंचल ।।

बंधु भावना हो स्थापित ।
प्रेमालय में हों वासित ।।
प्रीत प्रांत प्रिय सुखकर हों ।
हर हिय जगा हृदेश्वर हो ।।

वर्तमान निःश्रृत धारा ।
समय सुदिन हो अति प्यारा ।।
आज श्रेष्ठ कर प्रण जीवन ।
आनंदित गुण उद्दीपन ।।

संभव हो महत जितेन्द्रिय ।
जिजीविषा आनंद सुप्रिय ।।
भाल तिलक सज्जित हर्षित ।
जग में हों गर्वित चर्चित ।।

रामनाथ साहू ” ननकी “मुरलीडीह ( छ. ग. )

ज्ञान भंडारी: नूतन वर्षाभिनंदन

नव वर्ष, नवचेतना, नव उमंगे
नव हर्षित तरंगे लेकर आये,
हर दिन स्वर्णिम दिन हो,
राते हो चांदी जैसी चमकती सितारों भरी ,
भावना सबकी पावन हो ,नदियों के धारा सी,खरी।

भूले हम वेदनामय पीड़ा को , करे हम सबको आत्मसात
सुखी रहे हर मानव जात ,सुख शांति का हो आवास,
खिले हर कली कली, गूंजे हर गली गली झूलो से जैसे झूलते ,
हर शाख शाख ओ अलि अलि।

फले फूले, हर मौसम, तिरंगे की शान बढ़े,
धरा दुल्हन सी लगे,ओढ़नी टेसुओ की ओढ़े,
अमलतास , पलाश श्रृंगार करे,हर फूल झूमे,
हर डाल डाल नूतन परिधान पहनें,
हर टूटे दिल जुड़े, गाए सब मंगल गीत,
सबका स्वास्थ स्वस्थ रहे, सर पे यश का ताज हो ,
आशीर्वाद बना रहे जगत जननी का ,
आशीर्वाद बना रहे, सब स्व जनो का,
ऐसा मंगल नूतन वर्ष होवे।

रचयिता _ज्ञान भण्डारी।

एस के नीरज : नववर्ष का धमाल

नए साल की सुबह सुबह
पड़ोसी ने जोर से शोर मचाया
और मुहल्ले में भोंपू बजाया
सबको नया साल मुबारक हो!

मैंने कहा भाई सुबह सुबह ये
तुम गला क्यों फाड़ रहे हो
खुद तो रात भर सोते नहीं
दूसरों को भी सोने नहीं देते !

रात भर क्यों इसी चिंता में
घुले जा रहे थे क्या आप …
कि सुबह होते ही सबको
मुबारक पर मुबारक दूंगा
भले ही बदले में लोगों से
सत्रह सौ साठ गाली खाऊंगा!

पड़ोसी ने कहा – भाई आप
समझते नहीं मेरी बात बुझते नहीं
आज तो बस नया साल है
चारों तरफ धमाल ही धमाल है
फिर भी कमाल ही कमाल है
आपको नए साल का पता नहीं है

आज मजे करोगे तो भाया
पूरा साल मजे में बीतेगा
आज रोओगे तो पूरे साल
रोते ही रह जाओगे…..!

मैंने कहा – ना तो मुझे रोना है
ना किसी के लिए कांटे बोना है
मेरा बस चले तो साल भर मुझे
घोड़ा बेचकर सोना है …..!

मगर पड़ोसी हों अगर मेहरबान
तो गधे भी बन जाएं पहलवान
पूरी रात भर डी जे बजाया
फिर भी आपको रास ना आया
सुबह सुबह ये भोंपू बजा रहे हो
और सारी दुनिया को दिखा रहे हो
कि नया साल सिर्फ तुम्हे ही
मनाना और एंजॉय करना आता है
हमें कुछ भी नहीं आता जाता है !

लेकिन यदि हम मनाना शुरू कर दें
तो तुम मुहल्ले मुहल्ला क्या
शहर छोड़कर भाग जाओगे…
इसलिए मि.नया साल मनाना है
पड़ोसियों को अपना बनाना है
तो ये राग अलापना बंद कर दो
और नववर्ष का स्वागत करना है
तो कोई एक बुराई दफन कर दो ।

*@ एस के नीरज*

अनिल कुमार वर्मा: मंगला मंगलम 2022

जीवन पथ के सारे सपने,
सच हो सच्ची राह मिले.
उम्मीदों से अधिक स्नेह हो,
जितनी भी हो चाह मिले.
मन हो निर्मल धार सरीखा,
गहराई में थाह मिले.
कृत्य करें आओ ऐसे कि,
दसो दिशाएँ वाह मिले.
नूतन मन में नूतन चिंतन,
नये सृजन साकार करें.
सुखद सुनहरी सुंदर छाया,
जनहित में तैयार करें.
कर्मरती हों सबसे आगे,
श्रम का ही सम्मान हो.
नये वर्ष क्या जीवन भर,
आपका श्री मान हो.

शुभेच्छु
अनिल कुमार वर्मा
सेमरताल

परमेश्वर साहू अंचल: नूतन वर्ष पर दोहा (नए साल,बेमिसाल)

हृदय सुमन सम जानिए,प्रेम मिले खिल जाय।
घृणा नीर मत सिंचिए, फौरन ही मुरझाय।।

जीवन में पतझड़ नहीं , हो जी सदा बहार।
खुशियों की बारिश रहे,हो न कभी तकरार।।

करे खुशी नित चाकरी, चँवर डुलाए हर्ष।
हरपल उन्नति की कली, सुरभित हो नव वर्ष।।

शीतलता बन धूप में, रहे साथ नित छाँव।
घर आँगन हो स्वर्ग से, मधुबन जैसे गांव।

मानवता हो मनुज में, और दिलों में प्यार।
रहें मनुज नित एकता,अखिलविश्व गुलजार।।

सकल जीव सम प्रेम हो, जन-जन में संस्कार।
हिलमिल जीवन मन्त्र से,पुलकित हो संसार।।

शिक्षा की दीपक जले, घर-घर हो उजियार।
गांव-गली उपवन लगे, रिश्तों में मनुहार।।

प्रेम सुमन आँगन खिले, और शुभ्र नव भोर।
खुशियों की बरसात हो, उन्नति हो चहुँओर।।

✒️पीपी अंचल “गुणखान”

हरिश्चंद्र त्रिपाठी”हरिश” : मन उसको नव वर्ष कहेगा

फिर-फिर याद करेगा कोई,
फिर-फिर याद सतायेगी।
मंगलमय हो जीवन अनुपल,
सुखद घड़ी फिर आयेगी।1।

सुख-समृद्धि का ताना-बाना,
तार-तार उर -बीन बजे।
खुशहाली की मलय सुरभि से,
कलम और कोपीन सजे ।2।

समरसता की प्रखर धार में,
भेदभाव बह जायें सब।
सबसे पहले राष्ट्र हमारा,
नव विकास अपनायें सब।3।

नहीं किसी का मन दुख जाये,
सबको स्नेह लुटायें हम ।
अमर संस्कृति के रक्षक बन,
मॉ का कर्ज चुकायें हम।4।

साथ प्रकृति का यदि हम देंगे,
धन-धान्य पूर्ण नव हर्ष रहेगा।
दिशा बहॅकती फसल मचलती,
मन उसको नव वर्ष कहेगा।5।

चलो एक क्षण मान रहा मैं,
नव वर्ष तुम्हारा आया है।
आप मुदित हैं यही सोच कर,
मन मेरा भी हरषाया है।6।

नश्वर जीवन,कर्म हमारे,
सुख-दुःख के निर्णायक हैं।
सबके हित की सुखद कामना,
मातृभूमि गुण गायक हैं।7।

सबका साथ विकास सभी का,
ना शोषण की गुंजाइश हो।
मिले प्रकृति का संरक्षण यदि,
सुखकर दो हजार बाइस हो।8।

हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’,
रायबरेली -229010 (उ प्र)

आर आर साहू :नव वर्ष पर कविता

वर्ष की माला बनी है, पुष्प क्षण से,
नव्यता शिव,सत्य के सुंदर वरण से।
चित्रपट की भाँति ही,समझो समय को,
दृश्य बनते या बिगड़ते आचरण से।
नव सृजन के गीत गूँथे जा सकेंगें,
लोकहित सद्भावना के व्याकरण से।
हर्ष देशी या विदेशी से परे है,
मुक्त है यह क्षुद्रता के संस्करण से।
विश्व है परिवार,का उद्घोष जिसका,
है अटल वह वह देश इस पर प्राण-प्रण से।
एक नन्हा दीप, तम का नभ उठाकर,
ज्योति का अध्याय लिखता है किरण से।
व्यर्थ कोई भी कभी खाली न लौटा,
हाथ हो या माथ लग प्रभु के चरण से।

रेखराम साहू(बिटकुला/बिलासपुर)

शची श्रीवास्तव : इन सालों में हमने देखा

नया साल फिर से आया
साल पुराना जाते देखा,
आते जाते इन सालों में
उम्र को हमने ढलते देखा,
ऐसे कितने साल बदलते
इन सालों में हमने देखा।

माँ पापा का वरदहस्त
दादीमाँ का स्नेहिल स्पर्श,
भाई बहन का प्यार अनूठा
नहीं बदलते हमने देखा,
सालों साल बदलते रिश्ते
इन सालों में हमने देखा।

मन उपवन के संगी साथी
नववर्ष पे बेहद याद आएं,
मन की परतों में दबी छुपी
यादें कभी न मिटते देखा,
स्मृतिपट से हर बात बिसरते
इन सालों में हमने देखा।

ढलती सांझ की बेला में
ढल रहा पुराना वर्ष सतत्,
लम्हा लम्हा ढल रही उम्र
उत्साह उमंग न घटते देखा,
काश कसक कुछ रह जाते
इन सालों में हमने देखा।

नववर्ष का वंदन अभिनंदन
जाते हुए साल, प्रनाम तुम्हें,
ये काल चक्र चलता यूं ही
कभी न इसको रुकते देखा,
सुख दुख नित आते जाते
इन सालों में हमने देखा।।

शची श्रीवास्तव , लखनऊ

नववर्ष विद्या-मनहरण घनाक्षरी

नव वर्ष की बेला में,मिल जुल यार सँग,
खुशियां मनाओ सब,मस्ती करो भोर से।
कोई चाहे कुछ कहे,जीवन के चार रंग,सुनो नहीं किसी की,जाने सब शोर से।।
बधाई नये साल की,बोले जब अंग अंग,गूँजे बस यही बात,मीत चारो ओर से।
अनमोल पल मिला,होना नहीं आज दंग,प्रेम को बढाओ तुम,नाचो वन मोर से।।

राजकिशोर धिरही
तिलई,जाँजगीर छत्तीसगढ़

नव वर्ष में सपने सूरज के: माला पहल

शुभ प्रभात,शुभ सबेरा कहकर शुभचिंतन करते,
नई सुबह ,नया सवेरा कह सबका तुम अभिनन्दन करते,
पर कभी क्या तुमने मुझको परखा?
नित सुबह चलाता हूँ अविरत चरखा।

मुस्कराकर कर दो मेरा भी स्वागत,
मुझको भी कह दो
तुम सुप्रभात,
हर दिन भूमंडल मे स्वर्ण बिखेरता,
सृष्टि की हर रचना मे आभा भर देता,

हर वर्ष देखता मैं कई सपने,
पर इस वर्ष देखे स्वप्न सुनहरे,
नित बहे शान्ति समानता का स्रोत,
जिससे हो जाए जग ओतप्रोत,
भूमंडल मे बिखरे छटा सुनहरी,

न हो प्रदूषण, न हो कोई महामारी ,
नव वर्ष में हर बाला,
दुर्गा का रूप धरे विशाला,
हर बालक छू ले ऊचाईयां,
जिसकी कीर्ति से महकेगी ये दुनिया,
हर मानव के मन का महके कोना कोना,
जिसमें उत्साह, आशा नवचेतना का सजा हो पलना,
धूमिल होगा तम,तिमिर ,अवसाद सारा,
जगपटल हो जायेगा उज्जवल सारा।
(माला पहल मुंबई से)

नव वर्ष एक उत्सव की तरह पूरे विश्व में अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग तिथियों तथा विधियों से मनाया जाता है। विभिन्न सम्प्रदायों के नव वर्ष समारोह भिन्न-भिन्न होते हैं और इसके महत्त्व की भी विभिन्न संस्कृतियों में परस्पर भिन्नता है।नववर्ष पर कविता बहार की कुछ हाइकु –

नववर्ष पर हाइकु – क्रान्ति

01)
रात गुजरी
नववर्ष आते ही
महका फूल ।

02)
महक उठी
फूलों की फुलवारी
झूमते भौंरे।।

03)
नया तराना
आया है नया साल
झूमे जमाना ।

04)
नदी किनारे
उमड़ती लहरें
मुझे पुकारे ।

05)
रखो उम्मीद
ईश की कृपा से ही
खुले नसीब ।

06)
नया सबेरा
नूतन वर्ष आते
छंटे अंधेरा ।

07)
सुलगे तन
पिया मिलन को
तरसे मन।।

08)
उषा किरण
संग अपने लाया
वर्ष नूतन।

09)
पुराने ख्याल
नव वर्ष के जैसे
बदल डाल ।

10)
मिलते नहीं
नदियों के किनारे
अटल सत्य।।

11)
बहती नदी
चट्टानों को चीरती
पानी की धार ।

क्रान्ति, सीतापुर सरगुजा छग

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