पृथ्वी दिवस विशेष : ये धरा अपनी जन्नत है

ये धरा अपनी जन्नत है

ये धरा,अपनी जन्नत है।
यहाँ प्रेम,शांति,मोहब्बत है।

ईश्वर से प्रदत्त , है ये जीवन।
बन माली बना दें,भू को उपवन।
हमें करना अब धरती का देखभाल।
वरना पीढ़ी हमारी,हो जायेगी कंगाल।
सब स्वस्थ रहें,सब मस्त रहें।
यही “मनी” की हसरत है॥1॥


ये धरा ……

चलो कम करें,प्लास्टिक का थैला।
उठालें झाड़ु हाथों में,दुर करें मैला।
नये पौधे लगायें, ऊर्जा बचायें।
रहन-सहन बदल के, पर्यावरण सजायें।
खुद जीयें और जीने दें।
यही तो खुदा की बरकत हैं॥2॥

ये धरा…..

आज विकट संकट है प्रकट हुआ।
ओजोन छतरी में काला चोट हुआ।
ताप बढ़ रही,नदियाँ घट रहीं।
भोग विलास के साधन में,वन चौपट हुआ।
हरा-नीला धरा,श्वेत-श्याम हो रहीं।
इंसान तेरी ही ये हरकत है॥3॥


ये धरा…..

मनीभाई नवरत्न

यह काव्य रचना छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले के बसना ब्लाक क्षेत्र के मनीभाई नवरत्न द्वारा रचित है। अभी आप कई ब्लॉग पर लेखन कर रहे हैं। आप कविता बहार के संस्थापक और संचालक भी है । अभी आप कविता बहार पब्लिकेशन में संपादन और पृष्ठीय साजसज्जा का दायित्व भी निभा रहे हैं । हाइकु मञ्जूषा, हाइकु की सुगंध ,छत्तीसगढ़ सम्पूर्ण दर्शन , चारू चिन्मय चोका आदि पुस्तकों में रचना प्रकाशित हो चुकी हैं।

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