पाप-कुण्डलियाँ
निर्जन पर्वत में अगर ,
करो छुपाकर पाप ।
आज नहीं तो कल कभी ,
करें कलंकित आप ।।
करें कलंकित आप ,
पाप की दूषित छाया ।
उत्तरोत्तर विकास ,
बढ़े हैं इसकी माया ।।
कह ननकी कवि तुच्छ ,
बुराई करता दुर्जन ।
मिलता है परिणाम ,
अश्रु पथ बनता निर्जन ।।
~ रामनाथ साहू ” ननकी “
मुरलीडीह
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद